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 बुंदेलखंड राज्य की मांग बन न पाई चुनावी मुद्दा | dharmpath.com

Friday , 29 November 2024

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बुंदेलखंड राज्य की मांग बन न पाई चुनावी मुद्दा

झांसी/टीकमगढ़, 31 मार्च (आईएएनएस)। तमाम कोशिशों के बाद भी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बंटे ‘बुंदेलखंड’ को अलग राज्य बनाने की मांग दशकों से राजनीतिक दलों के एजेंडे में जगह नहीं बना पाई और न ही कोई दल इसे अपना चुनावी मुद्दा बनाने को तैयार है, जबकि देश में बुंदेलखंड से कम जनसंख्या और क्षेत्रफल वाले 10 राज्य वजूद में हैं।

झांसी/टीकमगढ़, 31 मार्च (आईएएनएस)। तमाम कोशिशों के बाद भी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बंटे ‘बुंदेलखंड’ को अलग राज्य बनाने की मांग दशकों से राजनीतिक दलों के एजेंडे में जगह नहीं बना पाई और न ही कोई दल इसे अपना चुनावी मुद्दा बनाने को तैयार है, जबकि देश में बुंदेलखंड से कम जनसंख्या और क्षेत्रफल वाले 10 राज्य वजूद में हैं।

उत्तर प्रदेश के बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, जालौन, झांसी व ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह और दतिया जिले में विभाजित बुंदेलखंड को पृथक राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग दशकों साल पुरानी है, लेकिन इसे अब तक किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने इसे अपने एजेंडे में शामिल नहीं किया और न ही इसे चुनावी मुद्दा बनाने को तैयार हैं, जबकि 1955 में गठित प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग ने बुंदेलखंड को अलग राज्य का दर्जा देने की सिफारिश की थी।

बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शंकरलाल (झांसी निवासी) ने पहली बार अलग राज्य की मांग को लेकर 1989 में आंदोलन शुरू किया था। तब से लगातार बांदा, झांसी, महोबा और हमीरपुर के समाजसेवी इसके समर्थन में आंदोलन कर रहे हैं। बुंदेलखंड कांग्रेस के संस्थापक और फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला ने बुंदेलखंड में आने वाले यूपी और एमपी के सभी 13 जिलों में पदयात्रा तक की थी और बाद में वह इसी मांग की शर्त पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल भी हुए थे। लेकिन, सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि सभी राजनीतिक दलों के नेता मौखिक तौर पर बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाए जाने के पक्षधर हैं, मगर दल के भीतर दबाव बनाने से कतरा रहे हैं।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में झांसी से भाजपा उम्मीदवार उमा भारती ने जीतने और केंद्र में भाजपा की सरकार बनने पर अलग राज्य के गठन का वादा किया था। वह जीतीं और केंद्र में मंत्री भी हैं, लेकिन पूरे पांच साल बुंदेलखंड बनाने की दिशा में कोई पहल नहीं की। इस बार वह चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं।

अपनी सरकार में उत्तर प्रदेश की विधानसभा से प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती भी अपने एजेंडे में इसे नहीं शामिल कर रही हैं।

बुंदेलखंड में बसपा के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री गयाचरण दिनकर कहते हैं, “‘बसपा अलग राज्य के गठन के पक्ष में है, केंद्र की भाजपा सरकार को विधानसभा के प्रेषित प्रस्ताव पर अमल कर अलग राज्य की घोषण करना चाहिए।”

पार्टी के घोषणपत्र में इसे न शामिल किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि लोकसभा का चुनाव बसपा और सपा मिलकर लड़ रही हैं, दोनों दल मिलकर ही घोषणापत्र तैयार करेंगे। ऐसे में यह कोई जरूरी नहीं कि सपा अलग राज्य की पक्षधर रहे।

केंद्र में कांग्रेस की अगुआई वाली डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में राज्यमंत्री रहे प्रदीप जैन आदित्य ने रविवार को कहा, “कांग्रेस ने भले ही अपने एजेंडे में बुंदेलखंड राज्य के गठन की बात न शामिल किया हो, लकिन अगर केंद्र में अगली सरकार कांग्रेस की अगुआई में बनती है तो अबकी बार बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित कराने की पहल जरूर की जाएगी।”

राजनीतिक विश्लेषक व अधिवक्ता रणवीर सिंह चौहान कहते हैं कि देश में दस ऐसे राज्य हैं जिनका क्षेत्रफल बुंदेलखंड से बहुत कम है। इतना ही नहीं, इन राज्यों की आबादी भी बुंदेलखंड की आबादी से बेहद कम है।

वह बताते हैं कि जनसंख्या और क्षेत्रफल का आधार लेकर बुंदेलखंड राज्य की मांग को नकारा नहीं जा सकता। 13 जिलों वाले बुंदेलखंड का क्षेत्रफल करीब 70 हजार वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या दो करोड़ के आस-पास है, जो जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और गोवा जैसे राज्यों से अधिक है।

बकौल चौहान, “उत्तराखंड की जनसंख्या डेढ़ करोड़ और क्षेत्र 53,484 वर्ग किलामीटर है, जिसमें 13 जिले हैं। 12 जिले वाले हिमाचल प्रदेश का क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है। त्रिपुरा का क्षेत्रफल 10,493 वर्ग किलोमीटर, आबादी महज 37 लाख और सिर्फ चार जिले हैं। मेघालय में करीब 30 लाख की आबादी और सात जिले हैं। मणिपुर की जनसंख्या 28 लाख, नौ जिले और क्षेत्रफल 22,327 वर्ग किलोमीटर है। इन सभी को अलग राज्य का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन, प्राकृतिक संपदा से भरपूर बुंदेलखंड अब भी अलग राज्य के लिए तरस रहा है।”

चौहान कहते हैं कि सभी राजनीतिक दल बुंदेलखंड में अपना परचम तो फहराना चाह रहे हैं, लेकिन अलग राज्य के समर्थन में कोई भी खुलकर सामने नहीं आना चाहता।

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