पटना, 23 दिसम्बर (आईएएनएस)। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और जनता दल (युनाइटेड) के महागठबंधन की सरकार का भले ही एक वर्ष पूरा हो गया है, पर कई मामलों में महागठबंधन में शामिल दल एक-दूसरे के आमने-सामने दिखे। फिर भी, इस साल सबसे ज्यादा सुर्खियां ‘बंदी’ ने बटोरी, चाहे बात ‘शराबबंदी’ की रही हो या ‘नोटबंदी’ की।
पटना, 23 दिसम्बर (आईएएनएस)। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और जनता दल (युनाइटेड) के महागठबंधन की सरकार का भले ही एक वर्ष पूरा हो गया है, पर कई मामलों में महागठबंधन में शामिल दल एक-दूसरे के आमने-सामने दिखे। फिर भी, इस साल सबसे ज्यादा सुर्खियां ‘बंदी’ ने बटोरी, चाहे बात ‘शराबबंदी’ की रही हो या ‘नोटबंदी’ की।
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करते हुए नीतीश कुमार ने न केवल बिहार में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की, बल्कि इसे लागू करने के लिए कड़े कानूनी प्रावधान भी बनाए।
इस बीच विधानमंडल की मंजूरी के बाद बिहार सरकार ने उत्पाद अधिनियम 1915 के स्थान पर नए कड़े शराबबंदी कानून को पांच अप्रैल से लागू करते हुए राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर दी। हालांकि जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने राज्य के शराबबंदी कानून को 30 सितंबर को खारिज कर दिया।
राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और गांधी जयंती के मौके पर दो अक्टूबर को नया मद्य निषेध कानून, 2016 को लागू कर दिया।
विपक्ष ने हालांकि कड़े शराबबंदी कानून के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए इसे ‘तालिबानी’ फरमान बताया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस कानून में संशोधन तथा इसे और बेहतर बनाने के उद्देश्य से लोगों से संवाद किया और सर्वदलीय बैठक भी की।
हालांकि, इस कानून में ताड़ी पर प्रतिबंध का महागठबंधन में शामिल राजद ने विरोध किया, जबकि विपक्ष ने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। इसके बाद सरकार ने स्पष्ट किया कि ताड़ी पर प्रदेश में कोई रोक नहीं है।
इस बीच कड़े कानून के बावजूद गोपालगंज में 17 अगस्त को जहरीली शराब पीने से 19 लोगों की मौत हो गई, जिससे कड़े शराबबंदी कानून पर प्रश्न चिह्न लग गया। इतना ही नहीं राज्य में प्रतिदिन अवैध शराब की बरामदगी भी हो रही है।
उधर, वर्ष के अंतिम महीने में केंद्र सरकार की नोटबंदी का फैसला भी बिहार में सुर्खियां बनीं। नोटबंदी को लेकर लोगों की परेशानियों की चर्चा भले ही कम हुई, परंतु महागठबंधन में इस फैसले को लेकर दरार की चर्चा खूब हुई।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां नोटबंदी के समर्थन में खड़े हैं, वहीं राजद और कांग्रेस इसके विरोध में हैं। इसको लेकर महागठबंधन के घटकों के बीच मतभेद तब उभरा जब गत 30 नवंबर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने पटना में आयोजित रैली में राजद नेताओं की मौजूदगी में नोटबंदी के समर्थन के लिए इशारों इशारे में नीतीश कुमार को ‘गद्दार’ तक कह दिया।
उधर, दोनों दल के नेताओं के बयानों से भी गठबंधन में दरार की खबरों को पूरे साल बल मिलता रहा। राजद के उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते रहे, वहीं जद (यू) ने सिंह को राजद से निकालने तक की मांग कर डाली।
इस बीच, मुख्यमंत्री हालांकि इन विवादों से दूर सरकार के सात निश्चयों में शामिल कार्यक्रमों को सरजमीं पर उतारने के लिए लगातार प्रयासरत रहे। आम लोगों की मूलभूत समस्याओं- पेयजल, शौचालय, सड़क और बिजली समेत सात निश्चय कार्यक्रम की शुरुआत की और निश्चय यात्रा पर निकले। नीतीश राज्य के सभी जिलों में जाकर सात निश्चय के तहत हो रहे विकास कार्यक्रमों का खुद जायजा ले रहे हैं।
इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जद (यू) के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने के बाद अन्य प्रदेशों में भी पार्टी के विस्तार हेतु भी सजग दिखे। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, झारखंड सहित कई अन्य प्रदेशों में नीतीश ने सभाओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। इसके अलावा अगले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात जाने का भी उनका कार्यक्रम है।
हालांकि, इस साल बिहार में कई घटनाएं चर्चा में रहीं, परंतु वर्ष 2016 को लोग ‘बंदी’ (शराबबंदी व नोटबंदी) के लिए याद रखेंगे।