निषाद ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को पिछड़े व अतिपिछड़े वर्ग की ताकत का पता चल गया है और उसे अच्छी तरह अहसास हो गया है कि भाजपा जिस सोच की राजनीति करती रही है, उसकी बदौलत उसे बिहार में सत्ता मिलना मुश्किल है।
भाजपा के कुछ नेता पिछड़ों का वोट बैंक हथियाने के लिए उन्हें भ्रमित करने की राजनीति के तहत हवा दे रहे हैं कि पिछड़ा या अतिपिछड़ा ही बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री। लेकिन भाजपा के अंदरखाने पिछड़े व अतिपिछड़े को दरकिनार करने की सोच है, वरना वह संभावित मुख्यमंत्री का चेहरा आगे कर चुनाव लड़ती।
निषाद ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के समय गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे, हरियाणा चुनाव में गुर्जर, जाट या सैनी को तथा झारखंड में आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया गया, लेकिन जब सरकार बनाने की बारी आई तो महाराष्ट्र में पंडित देवेंद्र फड़नवीस, हरियाणा में पंजाबी मनोहर लाल खट्टर और आदिवासियों के झारखंड में मोदी की ही जाति वाले रघुवर दास को मुख्यमंत्री बना दिया गया।
उन्होंने कहा कि बिहार में भी भाजपा पिछड़ों, अतिपिछड़ों को नकार कर राधामोहन सिंह, सुशील कुमार मोदी या गिरिराज सिंह में से किसी को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति बना चुकी है।
निषाद ने कहा कि आरक्षण की समीक्षा के मुद्दे पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान से घिर जाने के बाद अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित बड़े-बड़े नेता आरक्षण के संदर्भ में सफाई देते फिर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा का रिमोट कंट्रोल हमेशा से आरएसएस के ही हाथ में होता है और भाजपा के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आरएसएस की इच्छा के विरुद्ध एक भी निर्णय नहीं ले सकते, सच्चाई यही है।
निषाद ने कहा कि यदि भाजपा की मंशा पिछड़े वर्ग के प्रति ठीक होती तो मोदी एससी, एसटी व अल्पसंख्यक की ही भांति अन्य पिछड़े वर्ग की जनगणना का भी खुलासा कर देते, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इससे भाजपा की मंशा समढी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि आरएसएस और भाजपा कोई भी खेल करें, अब पिछड़े वर्ग को भी अपनी ताकत का अहसास हो गया है। उन्होंने कहा कि धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए भाजपा सांप्रदायिकता का माहौल बनाने के षड्यंत्र में लगी हुई है, लेकिन उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी सपा के हाथों भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ेगा।