पटना, 19 दिसम्बर – बिहार में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के विवादित बयान वर्ष 2014 में सुर्खियां बनते रहे। इस कारण उन्हें अपनी पार्टी जनता दल-युनाइटेड (जदयू) के वरिष्ठ नेताओं की नसीहतें भी सुननी पड़ी।
राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग में माहिर समझे जाने वाले जद (यू) के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद नैतिक दायित्व अपने ऊपर लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर महादलित परिवार से आए जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना तो दिया, लेकिन मांझी के कई बयानों ने पार्टी को कई बार मुश्किलों में डाल दिया।
इस वर्ष 20 मई को बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान होने के बाद विपक्षी दलों ने मांझी को ‘खड़ाऊ मुख्यमंत्री’ का विशेषण दिया था।
मांझी के लगातार विवादास्पद बयानों के कारण जहां बिहार की राजनीति गर्म रही, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश के समर्थक माने जाने वाले विधायकों ने भी पार्टी नेतृत्व से कई मौकों पर मांझी से इस्तीफा लेने की मांग भी की।
मांझी ने अपने गृह जिले गया में 12 अगस्त को आयोजित एक कार्यक्रम में नीतीश की भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि नीतीश सरकार में राज्य का विकास भले ही हुआ हो, लेकिन भ्रष्टाचार तब भी कम नहीं हुआ था।
मांझी साफगोई में यकीन रखते हैं। उस समय उन्होंने यहां तक कह दिया था कि उन्होंने खुद बिजली विभाग के बिल को कम कराने के लिए रिश्वत दी थी।
बिहार में आई बाढ़ से प्रभावित लोगों के चूहा खाकर जिंदा रहने की खबर पर मुख्यमंत्री मांझी ने अजीबोगरीब बयान देकर पूरे बिहार की राजनीति को गरमा दिया था।
उन्होंने कहा था कि चूहा मारकर खाना खराब बात नहीं है। मांझी ने कहा कि वह खुद भी चूहा खाते थे।
इसके पूर्व भी मांझी ने दलितों और पिछड़ी जातियों के लड़कों को अंतर्जातीय विवाह करने की नसीहत देते हुए जनसंख्या बढ़ाने की बात कही थी। इन सभी बयानों पर काफी विवाद हुआ था, जिसके बाद जद (यू) के नेताओं को सफाई देने के लिए सामने आना पड़ा था।
मांझी ने इस दौरान बिहार के केंद्रीय मंत्रियों को बिहार में नहीं घुसने देने की चेतावनी भी दी थी। इस बयान से भी राज्य की राजनीति गरमाई थी। उन्होंने कहा था, “अगर वे बिहार के विकास में मदद नहीं कर पाए तो उन्हें बिहार में घुसने नहीं देंगे। वे सभी दिल्ली में ही रहें।”
इस वर्ष 17 अक्टूबर को मांझी ने मोतिहारी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए चिकित्सकों के ‘हाथ काट देने’ जैसी चेतावनी दे दी थी। चिकित्सकों के संगठन की नाराजगी के बाद हालांकि उन्होंने इस बयान को मुहावरे के तौर पर उपयोग करने की बात कही थी।
इसके पूर्व पटना में पत्रकारों से चर्चा करते हुए 13 अक्टूबर को उन्होंने अच्छे स्वास्थ्य और बाल कुपोषण को दूर करने के लिए विवाह की उम्र 25 वर्ष करने की सलाह दी थी।
इन सब के अलावा भी मांझी अपने कई विवादित बयानों के कारण अपने ही दलों के नेताओं तथा विपक्षियों के निशाने पर रहे।