बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार नए मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। करीब-करीब हर निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में 32,000 नए मतदाता जुड़े हैं और ये नतीजों पर असर डालने वाले साबित हो सकते हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार नए मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। करीब-करीब हर निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में 32,000 नए मतदाता जुड़े हैं और ये नतीजों पर असर डालने वाले साबित हो सकते हैं।
पिछले दो विधानसभा चुनावों में जीत का अंतर आमतौर से 12 से 13 हजार मतों के बीच का रहा था। इसे देखते हुए हर क्षेत्र में सामने आए ये 32 हजार नए मतदाता काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं।
लेकिन, राज्य में चुनाव से पहले कई तरह के किंतु-परंतु नजर आ रहे हैं। गंगा के मैदानी क्षेत्र में चुनाव पर जातिगत समीकरण हावी रहते हैं। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जातिगत राजनीति के पुरोधा लालू प्रसाद यादव ने गठजोड़ कर और सीट बंटवारे का ऐलान कर अपनी बढ़त साबित कर दी है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास जवाब में जाति का ऐसा बड़ा पत्ता नहीं है और इसीलिए वह विकास के नारे पर आ गई है। प्रधानमंत्री की तरफ से राज्य के लिए ‘सवा लाख करोड़’ का पैकेज इसी का हिस्सा है।
लोकसभा चुनाव में ‘विकास’ और ‘राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य’ के तालमेल से राजग को राज्य की 40 में से 31 सीटों पर जीत मिली थी। राजग की सभी पार्टियों का मत प्रतिशत 38.8 था। लेकिन अगर जनता दल-युनाइटेड (जद-यू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के मतों को मिला दिया जाए तो यह राजग से अधिक था। भाजपा के लिए यह चिंता का विषय है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा 14 फीसदी उच्च जाति के वोट, 6 फीसद वैश्य वोट, राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के 6 फीसदी वोट, उपेंद्र कुशवाहा की लोक समता पार्टी के 4 फीसदी वोट और महादलितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले जीतन राम मांझी के 5-6 फीसदी वोट पर आस लगाए हुए है। लेकिन ये जीत के लिए काफी नहीं होंगे।
इस परिदृश्य में नए मतदाता भाजपा के लिए काफी अहम हो गए हैं। पार्टी मानती है कि इन्हें अभी जातिवाद के कीड़े ने नहीं काटा होगा।
भाजपा की सबसे बड़ी चिंता मुस्लिम मतों को लेकर है जो राज्य के कुल मतदाताओं का 15 फीसदी हिस्सा हैं। मुस्लिम लंबे समय तक लालू यादव के समर्थक रहे हैं, लेकिन इस बार माना जा रहा है कि मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की तरफ भी झुक सकते हैं। इससे जदयू-राजद-कांग्रेस गठजोड़ को अतिरिक्त लाभ मिलता नजर आ रहा है।
लेकिन दोनों ही गठबंधनों की निगाह खास तौर से 24 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग पर टिकी हुई है। वर्ष 2014 में इनमें से 53 फीसदी ने भाजपा को मत दिया था। इस बार ये किसके पक्ष में जाते हैं, ये देखना महत्वपूर्ण होगा।
माना जा रहा है कि पूर्व में जद यू को मिला 16.4 फीसदी मत और कांग्रेस को मिला 8.56 फीसदी मत इस बार भी दोनों दलों को मिलेगा। लेकिन लालू यादव की पार्टी राजद को साधु यादव के गरीब जनता दल (सेक्युलर) और पप्पू यादव के जन अधिकार मंच से चुनौती मिल सकती है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बिहार चुनाव के नतीजों पर अंतिम समय तक रहस्य का पर्दा पड़ा रह सकता है। और, यह मोदी के लिए कड़ी परीक्षा साबित हो सकता है।
(लेख में व्यक्त लेखक के निजी विचार हैं।)