पटना, 10 जून (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा चुनाव की आहट से ही सभी राजनीतिक दल जोड़तोड़ में लग गए हैं। चुनावी समर में उतरने से पहले बड़े राजनीतिक दल छोटे दलों को रिझाकर अपने-अपने पक्ष में करने में लगे हैं। बड़े दलों को अभी से ही खेल बिगाड़ने के लिए छोटे दलों की भूमिका बड़ी लगने लगी है।
पटना, 10 जून (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा चुनाव की आहट से ही सभी राजनीतिक दल जोड़तोड़ में लग गए हैं। चुनावी समर में उतरने से पहले बड़े राजनीतिक दल छोटे दलों को रिझाकर अपने-अपने पक्ष में करने में लगे हैं। बड़े दलों को अभी से ही खेल बिगाड़ने के लिए छोटे दलों की भूमिका बड़ी लगने लगी है।
बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में गठबंधन तय हो चुका है तथा कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) भी इस गठबंधन का हिस्सा बनने के करीब नजर आ रही हैं। ऐसे में यह तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और राजद-जद (यू) गठबंधन के बीच सीधी टक्कर होगी। परंतु पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा, सांसद पप्पू यदव की नई पार्टी जनाधिकार मोर्चा और पूर्व सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री नागमणि की समरस पार्टी सहित वामदल भी इस चुनावी समर में ताल ठोंकने की तैयारी में जुटी है।
इधर, मतों के बिखराव को लेकर भी सभी बड़े राजनीतिक दल डरे ओर सहमे नजर आ रहे हैं। राजद से निष्कासित पप्पू यादव को जहां धर्मनिरपेक्ष बताकर कांग्रेस के नेता अपनी ओर आकर्षित करने में लगे हैं वहीं मांझी को भी राजग अपनी ओर आकर्षित करने में जुटा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद्र मिश्रा कहते हैं कि पप्पू शुरुआत से ही धर्मनिरपेक्ष दल के साथ रहे हैं। उनकी पत्नी रंजीता रंजन भी कांग्रेस की सांसद हैं। ऐसे में पप्पू यादव ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे भाजपा को चुनाव में फायदा पहुंचे। उन्होंने कहा कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से भिन्न है।
इधर, भाजपा नेता संजय मयूख भी मांझी के हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के साथ गठबंधन को लेकर खुलकर तो कुछ नहीं बोलते हैं, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि राजग में आने वाले सभी दलों का स्वागत है।
इन बयानों से स्पष्ट है कि सभी बड़े दल ‘छोटे उस्तादों’ से डरे हुए हैं। इधर, राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में राजग और राजद-जद (यू) गठबंधन में सीधी टक्कर होगी, लेकिन छोटे दल सभी बड़े दलों की परेशानी बढ़ाएंगे।
राजनीति के जानकार ज्ञानेश्वर कहते हैं, “अगर छोटे दल स्वतंत्र रूप से चुनावी समर में हाथ आजमाने उतरते हैं तो बड़े दलों की परेशानी तय है।” उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में देर है और चुनाव नजदीक आते-आते कई और छोटे दल चुनावी समर में नजर आएंगे।
उनका मानना है कि पप्पू यादव और मांझी का अपना वोट बैंक है जिसे नकारा नहीं जा सकता है और कई विधानसभा क्षेत्रों के परिणाम को भी इनमें प्रभावित करने की क्षमता है। वैसे अभी चुनाव में समय है, इसलिए अभी बहुत कुछ कहना जल्दबाजी है।
बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। ऐसे में गठबंधन में शामिल हुए दलों में तालमेल बैठा पाना किसी भी गठबंधन के लिए आसान नहीं है। इधर, छोटे दल भी बड़े दलों पर दबाव बनाने को लेकर कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाह रही है।