मधुबनी (बिहार), 7 जुलाई (आईएएनएस)। बिहार के सुपौल और मधुबनी जिले के कई गांवों के ग्रामीणों ने जलसंकट से निपटने के लिए जलसंचय को मूलमंत्र मानते हुए जल जमा करने का अनोखा तरीका अपनाया है। ये ग्रामीण बारिश के दौरान किसी खाली स्थान पर प्लास्टिक शीट टांग देते हैं और उस पर गिरने वाले पानी को टंकी में जमा करते हैं। बाद में गांव के लोग उस पानी का इस्तेमाल करते हैं।
मधुबनी (बिहार), 7 जुलाई (आईएएनएस)। बिहार के सुपौल और मधुबनी जिले के कई गांवों के ग्रामीणों ने जलसंकट से निपटने के लिए जलसंचय को मूलमंत्र मानते हुए जल जमा करने का अनोखा तरीका अपनाया है। ये ग्रामीण बारिश के दौरान किसी खाली स्थान पर प्लास्टिक शीट टांग देते हैं और उस पर गिरने वाले पानी को टंकी में जमा करते हैं। बाद में गांव के लोग उस पानी का इस्तेमाल करते हैं।
सुपौल और मधुबनी जिला बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। जमा किया हुआ बारिश का पानी बाढ़ के दौरान बहुत काम आता है।
मधुबनी जिले के घोघराडीह प्रखंड के जहलीपट्टी गांव की रहने वाली पुष्पा कुमारी बताती हैं कि वे लोग बारिश के दौरान गांव में किसी खाली जगह में प्लास्टिक शीट टांग देते हैं और उसके बीच में छेद कर देते हैं। छेद के नीचे एक बड़ी बाल्टी रख जाते हैं। बारिश का पानी बाल्टी में भर जाता है, तो दूसरा बर्तन लगा देते हैं। बाद में इकट्ठा किए गए पानी को अपने घर की टंकी में डाल देते हैं। वह कहती हैं, “पीने के लिए भी हमलोग इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं।”
उन्होंने बताया, “बारिश के पहले पांच मिनट का पानी संग्रह नहीं करते हैं, क्योंकि उसमें गंदगी रहती है। अगर अच्छी बारिश हो और एक मीटर की प्लास्टिक शीट का इस्तेमाल किया जाए, तो ठीकठाक पानी संग्रह हो जाता है।”
ऐसा नहीं है कि बारिश का पानी संग्रह करने वाली में केवल पुष्पा ही हैं। घोघराडीह प्रखंड के आधा दर्जन गांवों के 2000 से ज्यादा परिवार इस तकनीक के माध्यम से बारिश का पानी संग्रह कर रहे हैं। इन घरों में 5000 लीटर से 15 हजार लीटर तक की क्षमता वाली टंकी लगाई गई हैं, जहां बारिश का पानी संग्रह कर रखा जाता है।
वर्षाजल संग्रह करने और भूगर्भ जल को संरक्षित करने के लिए लंबे अरसे से काम कर रहे संगठन घोघरडीहा प्रखंड ‘स्वराज्य विकास संघ’ के अध्यक्ष रमेश कुमार ने आईएएनएस से कहा, “वर्षाजल का संग्रह तो हम करते ही हैं, साथ ही इस पानी से भूगर्भ जल भी रिचार्ज हो जाए, इस पर भी हमलोग गंभीरता से काम कर रहे हैं। कई तालाबों को हमने पुनर्जीवित कराया है।”
उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में सहभागिता आधारित भूगर्भ जल प्रबंधन पर जोर लगातार दिया जा रहा है। हम लोगों ने 20 तालाबों व डबरों का भी जीर्णोद्धार कराया, जिसमें बारिश का पानी जमा हो रहा है।”
कुमार ने कहते हैं, “समुदाय आधारित समेकित जलस्रोत प्रबंधन के लिए मधुबनी और सुपौल जिले के 18 गांवों में ग्राम विकास समिति का गठन एवं सशक्तीकरण किया गया है, जिसके तहत करीब 40 गांवों में अस्थायी वर्षाजल संग्रहण के लिए कार्य किए जा रहे हैं। स्थायी वर्षाजल संग्रहण के तहत 500 लीटर से 10 हजार लीटर तक की क्षमता वाला फिल्टर सहित टैंक का निर्माण कराया गया है।”
उन्होंने कहा कि टंकियों में ईंट के टुकड़े, कोयला और रेत के द्वारा पानी के शुद्धिकरण की व्यवस्था की ही गई है, इसके अलावा आयरन मुक्त शुद्ध पेयजल प्रोत्साहन के लिए करीब 1000 परिवारों में ‘मटका फिल्टर’ का नियमित उपयोग करते हैं।
रमेश का दावा है कि इलाके के बहुत सारे लोग उनके दफ्तर आते हैं और पीने के लिए बारिश का पानी ले जाते हैं। उन्होंने कहा, “लोगों का कहना है कि खाली पेट वर्षाजल का सेवन करने से उन्हें कब्ज, गैस्ट्रिक व पेट की अन्य बीमारियां नहीं होतीं।”
स्वराज्य विकास संघ के जगतपुर स्थित कार्यालय में भी वर्षाजल के संग्रह के लिए 10 हजार लीटर क्षमतावाली टंकी लगाई गई है। इस टंकी को दफ्तर की छत से जोड़ दिया गया है। जब बारिश होती है, तो छत का पानी पाइप के जरिए टंकी में चला जाता है।
इसी तरह, जहलीपट्टी गांव के आंगनबाड़ी केंद्र में भी वर्षाजल संरक्षण की व्यवस्था कायम की गई है। इसी पानी का इस्तेमाल बच्चों के लिए मिड डे मील बनाने और पीने में होता है। इसके अलावा कुछ घरों में भी वर्षाजल संचयन का स्थायी ढांचा विकसित किया गया है।
परसा उत्तरी पंचायत के मुखिया मनोज शाह भी कहते हैं कि कई गांव के लोग पहले बारिश के जलसंग्रह को सही नहीं मानते थे, लेकिन अब करीब सभी गांवों में यह किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि इस साल भूगर्भ के जलस्तर में गिरावट के कारण मधुबनी के 21 प्रखंडों में से 18 प्रख्ांडों में टैंकर से पेयजल की आपूर्ति कराई गई है। इस स्थिति में सभी लोग जलसंग्रह के प्रति उत्सुक हैं। उन्होंने स्वराज विकास संघ की तारीफ करते हुए कहा कि पिछले 15 वर्षो से यह संगठन जलसंग्रह के लिए जागरूकता अभियान चला रहा है।