नई दिल्ली, 4 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की उन याचिकाओं पर बुधवार को अपना फैसला सुरिक्षत कर लिया, जिनमें उन्होंने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से उनके खातों की जांच के सरकार के निर्णय को चुनौती दी थी।
नई दिल्ली, 4 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की उन याचिकाओं पर बुधवार को अपना फैसला सुरिक्षत कर लिया, जिनमें उन्होंने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से उनके खातों की जांच के सरकार के निर्णय को चुनौती दी थी।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति आर.एस. एंडलॉ की पीठ ने मामले में सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित किया। पीठ ने डिस्कॉम के खातों की जांच सीएजी से कराने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर भी फैसला सुरक्षित कर लिया।
दिल्ली सरकार ने न्यायालय में कहा है कि सीएजी को निजी विद्युत कंपनियों के खातों की व्यापक जांच करने का पूरा अधिकार है, क्योंकि मामला सार्वजनिक हित से जुड़ा हुआ है।
दिल्ली सरकार ने न्यायालय में कहा, “विद्युत कंपनियां बिजली वितरण करती हैं, जो एक सार्वजनिक कार्य है और इसलिए वे सीएजी जांच के दायरे में आती हैं।”
सरकार ने मांग की है कि बिजली कंपनियां सीएजी को अपने खाते उपलब्ध कराएं ताकि व्यापक जांच हो सके।
न्यायालय बिजली कंपनियों की सीएजी जांच की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर और टाटा पॉवर दिल्ली डिस्ट्रब्यूशन लिमिटेड, बीएसईएस राजधानी और बीएसईएस यमुना सहित विद्युत कंपनियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। बिजली कंपनियां ये याचिकाएं पूर्व की आप (आम आदमी पार्टी) सरकार के उस आदेश के खिलाफ दायर की थीं, जिसमें सरकार ने कंपनियों के खातों की जांच सीएजी से कराने का निर्देश दिया था।
आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने 2013 में अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में तीनों बिजली कंपनियों के खातों की जांच करने का आग्रह सीएजी से किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं से अधिक धन वसूल रही हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करने वाली विद्युत कंपनियों ने आग्रह किया है कि वे निजी कंपनी हैं, लिहाजा वे किसी सीएजी जांच के दायरे में नहीं आतीं।
कंपनियों ने आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार का आदेश एक राजनीतिक जुमला है।
कंपनियों ने कहा कि सरकार द्वारा खातों की जांच का आदेश देना कानूनन गलत है, और इसमें बिजली कंपनियों को अपना पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया गया।
दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियां, निजी कंपनियों और दिल्ली सरकार के बीच 51:49 प्रतिशत का एक संयुक्त उपक्रम हैं।