भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद भगवत गीता मे बसंत को अपनी विभूति के रूप मे प्रतिष्ठापित किया है. प्रकृति का एक नियम है परिवर्तन, इस संसार मे कुछ भी स्थिर नहीं है जो कुछ भी है गतिशील है, परिवर्तनशील है. हर पल एक नया सृजन है, एक पुनर्निर्माण है. बसंत ऋतु में प्रकृति में यही पुनर्निर्माण स्पष्ट दिखाई पड़ता है. वृक्षों में नए पत्तो का आगमन होता है. उनमें नए कोपलें फूटती हैं. प्रकृति की छठा अनुपम सौन्दर्य के साथ खिलखिला उठती है. बसंत ऋतु रसात्मकता से परिपूर्ण है. बसंत ऋतु इस की परिचायक है की मानव जीवन में कोई भी दुखद घटना और अवांछिनिय परिस्थितियां स्थिर नहीं है. जो आज है वो कल नहीं रहेगा. जीवन दुखात्मक नहीं रसात्मक है. जीवन में रस खीजने की शक्ति देता है अध्यात्म.
कला और साहित्यिक जगत में माँ सरस्वती की विशेष रूप से पूजा होती हैं.
बसंत पंचमी ज्योतिष का अबूझ मुहूर्त है, इस दिन विवाह, नामकरण संस्कार, गृहप्रवेश आदि निःसंकोच किये जा सकते हैं वो भी बिना पंचांग शुद्धी और ज्योतिषि सलाह के. माघ मास में जप, तप, ब्रत और गंगा स्नान का अपना महत्व है.
बसंत पंचमी अपने अन्दर के गुणों को विकसित कर, अपनी यत्र तत्र बिखरी हुई शक्तियों को पुनः संजोकर कुछ नया कर गुजरने की शक्ति प्राप्त करके सुर से सुर और ताल से ताल मिलकर जीवन के हर आयाम में सफलता प्राप्त करने का पर्व है. आज के दिन माँ की पूजा, जाप व व्रत करने से माँ अपना विशेष अनुग्रह अपने भक्तों पर रखती हैं. बसंत ऋतु के प्रमुख देवी व देवता कामदेव व रति भी हैं और अधि देवता श्री कृष्ण हैं अतः आज के दिन कम देव व रति की पूजा का भी विधान है. बसंत ऋतु में प्रकृति के सौन्दर्य में एक कमनिये निखार आ जाता है, पक्षियों के व्यवहार में कलरव, पुष्पों पर भौरों का गुंजार होने लगता है. बसंत ऋतु में प्रकृति में एक आकर्षण उत्पन्न होता है जो की कामदेव का ही एक स्वरुप है. भारतीय दर्शन शास्त्र ने काम को भीं देव मानकर पूजा की है क्योंकि काम के वगैर जीवन गतिहीन है, नीरस है काम नहीं तो सृष्टि नहीं परमात्मा भी इच्छा करता है की में एक से अनेक हो जाऊं लेकिन काम देव हैं शैतान नहीं, काम मर्यादित होना चाहिए, शास्त्र सम्मत होना चाहिए उन्मुक्त और अश्लील नहीं. कई जगह खासकर उत्तर भारत में आज के दिन से होली की भी शुरुआत हो जाती है जैसे की आज के दिन से व्रज में गुलाल उड़ाने की परंपरा है.