चर्च के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि किसी भी धर्म के खिलाफ हिंसा को बर्दाश्त नही किया जाएगा तथा सभी को अपनी पसंद से धर्म ग्रहण करने और उस पर अमल करने की आज़ादी है । एक ऐसी पार्टी का नेता जिसके लोग सड़को पर आग उगल रहे हों और कुछ खास धर्मो को लगातार निशाना बना रहे हों और यदि ऐसी पार्टी का नेता इस तरह का अचानक बयान दे तो इसके पीछे कुछ अहम कारण ज़रूर होंगे । इन अहम कारणों की विवशता के चलते ही शायद प्रधानमंत्री ने एक ऐसा बयान दिया जो भाजपा और संघ की सोच के बिलकुल विपरीत है ।
प्रधानमंत्री के बयान के ठीक बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत का भी एक ऐसा बयान आया जिससे संघ के कई कार्यक्रमों की धज्जियाँ उड़ गयीं । संघ प्रमुख ने भाजपा, विहिप और संघ के कुछ नेताओं द्वारा दिए जारहे हालिया बयानों के विपरीत कहा कि हमारी माताएं बच्चे पैदा करने की फैक्ट्रियां नही हैं । हिन्दू परिवारो को कितने बच्चे पैदा करने चाहिए इस पर भाजपा सांसदों के अलावा विश्व हिन्दू परिषद और संघ के लोगों की अलग अलग राय आती रही है । खुद भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने हिन्दू परिवारो को कम से कम 4 बच्चे पैसा करने की नसीहत दी थी तो वहीँ विहिप नेताओं ने बच्चे पैदा करने की तादाद को 10 तक पहुंचा दिया । ज़्यादा बच्चे पैदा करने के पीछे भाजपा सांसद और विहिप नेताओं का तर्क हिंद्त्व को बढ़ाना था ।
इतना ही नही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी मर्ज़ी से धर्म चुनने और उस पर अमल करने की आज़ादी का बयान संघ द्वारा चलाये जा रहे घर वापसी कार्यक्रम के बिलकुल पलट है । पूरी दुनिया जानती है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारतीय जनता पार्टी की रीड की हड्डी है । लोकसभा चुनावो में भाजपा को जो सफलता मिली है उसमे भी संघ की भूमिका बेहद अहम है । फिर ऐसी क्या आवश्यकता पैदा हो गयी कि प्रधानमंत्री को संघ की सोच के विपरीत बयान देना पड़ा ?
असल में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत यात्रा के अंतिम दिन अपने एक कार्यक्रम के दौरान भारत में धर्मिक भेदभाव पर सवाल उठाये थे । यह बात यहीं ख़त्म नही हुई बल्कि अमेरिका तक पहुंची । अमेरिका में भी एक कार्यक्रम के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत में कुछ संगठनो द्वारा चलाये जा रहे धर्म परिवर्तन कार्यक्रम का हवाला देते हुए यहाँ तक कह दिया था कि यदि आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ज़िंदा होते तो भारत में हो रहे धार्मिक उन्मादों पर उनकी आत्मा रो पड़ती । बराक ओबामा के इस बयान के कई मायने इसलिए भी थे क्यों कि भारत के बारे में यह सन्देश पूरी दुनियाभर में गया ।
एक आंकलन के अनुसार प्रधानमंत्री की सोच में अचानक आये परिवर्तन के पीछे अंतराष्ट्रीय दबाव है जिसमे अमेरिका भी शामिल है । देश में संघ और विहिप द्वारा शुरू किये गए घर वापसी कार्यक्रम से अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सेकुलर छवि को नुकसान पहुंचा है । शायद इसी दबाव के चलते प्रधानमंत्री ने संघ को अपनी मजबूरियां बताते हुए समझाने के प्रयास किये होंगे । यही कारण है कि देश में हिन्दुओं की तादाद बढ़ाने के लिए हिन्दू परिवारो द्वारा अधिक बच्चे पैदा करने की सोच रखने वाले आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के ठीक दो दिन बाद 4 बच्चे पैदा करने के संघ के एजेंडे से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि ‘ हमारी माताएं बच्चे पैदा करने की फैक्ट्रियां नही हैं ‘ ।
संघ प्रमुख के इस बयान में आत्मविश्वास की जगह मजबूरियां झलक रही हैं । संघ चाहे तो कई विवादित मुद्दो पर अपने सहयोगी संगठनो विहिप और बजरंग दल को घर वापसी जैसे कार्यक्रम चलाने को मना कर सकता है लेकिन संघ प्रमुख ने अपने बयान में ऐसा कोई आश्वासन नही दिया जिससे ये लगे कि देश में अब धर्म को लेकर घटिया सियासत बंद हो जायेगी । फिलहाल ऐसा माना जा सकता है कि संघ और भाजपा संवेदनशील धार्मिक मुद्दो पर प्रत्यक्ष रूप से किसी तरह की भागेदारी लेने से परहेज करें लेकिन अपने एजेंडे को एक्टिव रखने के लिए अपने सहयोगी संगठनो को आगे बढ़ाएं ।
सच टाइम्स से