गंगा के गुनहगार अब छुप नहीं पाएंगे। गंगा में गंदगी डालने वाली औद्योगिक इकाइयों के नाम अब सार्वजनिक होंगे।
इतना ही नहीं, गंदगी फैलाने के स्तर के हिसाब से उन्हें रेड, ऑरेंज और ग्रीन श्रेणियों में विभाजित भी किया जायेगा। पतितपावनी के गुनहगारों को बेनकाब करने का यह आदेश राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने दिया है। एनजीटी ने गंगा में गंदगी डालने वाली औद्योगिक इकाइयों के नाम सार्वजनिक करने का आदेश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को दिया है।
गंगा नदी में प्रदूषण के मामले की सुनवाई करते हुए एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने शुक्रवार को यह आदेश दिया और प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों की तीन श्रेणियां- रेड, ऑरेंज और ग्रीन बनाने को भी कहा है। सीपीसीबी ने एनजीटी को 956 औद्योगिक इकाइयों की सूची सौंपी थी, जिनसे गंगा में प्रदूषण हो रहा है।
एनजीटी ने सीपीसीबी से कहा है कि वह इन औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण फैलाने के आधार पर तीन श्रेणियों में रखकर सूची सार्वजनिक करे। रेड श्रेणी में उन औद्योगिक इकाइयों को रखा जाये जो सबसे ज्यादा प्रदूषण कर रही हैं। उसके बाद ऑरेंज श्रेणी में उन इकाइयों को रखा जाये जो कम प्रदूषण करती हैं और ग्रीन श्रेणी में प्रदूषण न करने वाली इकाइयों को रखा जाये। एनजीटी ने कहा कि सबसे पहले वह रेड श्रेणी के उद्योगों को देखेगा, उसके बाद ऑरेंज श्रेणी के उद्योग आयेंगे। एनजीटी अब इस मामले की सुनवाई छह अगस्त को करेगा। इस बीच सीपीसीबी इस सूची को सार्वजनिक करेगा ताकि संबंधित औद्योगिक इकाइयों को पता चल सके कि उनका नाम किस श्रेणी में है। एनजीटी में गंगा से संबंधित यह मामला सिंभोली सुगर मिल से हो रहे प्रदूषण के बाद आया। एनजीटी ने सिंभोली सुगर मिल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से अपशिष्ट शोधित करने के बाद ही उसे बहाने की अनुमति दी है। इस सुगर मिल ने जरूरी कदम उठाने के बाद एनजीटी को उसकी रिपोर्ट दी है।
गौरतलब है कि गंगा में प्रदूषण फैलाने के मामले में कानपुर के आसपास स्थित टेनरीज और बूचड़खाने, चीनी मिल और कागज मिलों की अहम भूमिका है। इसके अलावा शहरों से निकलने वाले सीवेज के रूप में भी गंगा में गंदगी गिर रही है।