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 प्लास्टिक कचरे से निपटने में जुटे वैज्ञानिक, उद्यमी और इंजीनियर | dharmpath.com

Wednesday , 27 November 2024

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प्लास्टिक कचरे से निपटने में जुटे वैज्ञानिक, उद्यमी और इंजीनियर

नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)। दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे पर बढ़ती चिंता के मद्देनजर वैज्ञानिकों, उद्यमियों और इंजीनियरों ने अपने अपने स्तर पर समाधान निकालने का काम शुरू कर दिया है। इस दिशा में वैज्ञानिकों ने कुछ प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के तरीके सुझाए हैं जबकि उद्यमी और इंजीनियर ऐसे उत्पाद विकसित कर रहे हैं जो सुरक्षित और बायोडिग्रेडेबल हैं।

मदर स्पर्श की संस्थापक रिशु गांधी ने कहा, “उपभोक्ता वस्तुओं की श्रेणी में वाइप्स दुनिया में प्लास्टिक आधारित प्रदूषण के तीन सबसे बड़े योगदानकर्ता हैं, इन वाइप्स को मिट्टी में मिलने में सदियों लगते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए ब्रांड्स को जैविक उत्पादों की ओर ध्यान देना होगा जैसे कि हमने अपने प्रोडक्ट्स के साथ किया जो कि बाजार में प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल हैं।”

उन्होंने कहा, “चिंताजनक विषय यह है कि भारत में कचरा प्रबंधन अभी भी एक समस्या ही है इसलिए प्लास्टिक कचरा प्रबंधन बहुत खराब है। इस प्लास्टिक कचरे को या तो जला दिया जाता है या जमीन में दबा दिया जाता है या फिर समुद्र में बहा दिया जाता है जो कि समुद्र के पर्यावरण को खराब करता है।”

सामाजिक कार्यकर्ता विनीत पी. यादव के अनुसार, प्लास्टिक पर्यावरण के लिए विशेष रूप से मनुष्यों के लिए एक चिंता का विषय है अगर हम इसे जलाते हैं, तो यह कभी भी पूरी तरह से जल नहीं पाता और स्टाइरीन जैसी हानिकारक गैसों को छोड़ता है जो आंख और नाक की झिल्ली, केंद्रीय तंत्रिका को प्रभावित करता है।

उन्होंने कहा, “डाइऑक्सिन, जोकि एक कार्सिनोजेन और हार्मोन विघटनकारी है, वह हवा में उत्सर्जित होता है और हमारी फसलों और पानी पर बैठ जाता है। इस प्रकार से वह हमारे भोजन में भी आ जाता है। डाइऑक्सिन शरीर में वसा पर जमा हो जाता है और गर्भवती माताओं के बच्चों तक पहुंच जाता है। प्लास्टिक जैसे एक उपयोगी आविष्कार का इतना दुरुपयोग किया गया है कि यह ग्रह के लिए एक चिंता का विषय बन गया है।”

वैज्ञानिकों ने पाया कि सूक्ष्म प्लास्टिक, जो नहीं देखा जा सकता है वह हमारे हवा और पानी में मिश्रित हो रहा है। भारतीय बुनियादी ढांचे की स्थिति को देखते हुए हमने रसायनों और कणों के मामले की लंबी सूची में प्रदूषक के रूप में सूक्ष्म प्लास्टिक को सफलतापूर्वक जोड़ा है।

ब्रिटेन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हम एक दिन में लगभग 130 छोटे प्लास्टिक कणों को सांस के साथ लेते हैं, इसलिए अगर हम भारतीय परिदृश्य को देखें तो चीजें बेहद खतरनाक हैं क्योंकि यहां सामान्य तौर पर हवा की गुणवत्ता बहुत की खराब है।

प्लास्टिक कचरे से निपटने में जुटे वैज्ञानिक, उद्यमी और इंजीनियर Reviewed by on . नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)। दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे पर बढ़ती चिंता के मद्देनजर वैज्ञानिकों, उद्यमियों और इंजीनियरों ने अपने अपने स्तर पर समाधान निकालने नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)। दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे पर बढ़ती चिंता के मद्देनजर वैज्ञानिकों, उद्यमियों और इंजीनियरों ने अपने अपने स्तर पर समाधान निकालने Rating:
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