अनिलसिंह(भोपाल)–प्रेस फोटोग्राफरों की दयनीय स्थिति पर न तो प्रशासन की नजर जाती है और न ही किसी राजनैतिक या सामाजिक संगठन की।पत्रकारिता की ये फोटोग्राफर बंधु वो कड़ी हैं जिनके बिना समाचार प्रस्तुति में जान नहीं पड़ती।इनकी दिनचर्या की तरफ ध्यान दें तो किसी घटना का कोई समय नहीं होता अतः इन्हें भी सूचना मिलने पर तुरंत ही निकलना पड़ता है जहाँ घटना हुई है या कोई कार्यक्रम है।सही समय पर पहुचना इनकी प्रतिबद्धता है,यदि नहीं पहुचे और सही फोटो नहीं पहुचाया तो सारी मेहनत खराब न तो फोटो ली जायेगी और भुगतान की तो बात ही नहीं है,आख़िरकार कैसे चलाते हैं ये घर अपना कितनी दिक्कतें इन्हें होती हैं अपने कार्य और व्यवसाय में ताल मेल बैठने में क्या इनके पास अपने लिए कुछ समय है या फिर ये मशीन बन गए हैं जब तक चले ठीक नहीं तो चाइना आयटम की तरह रिजेक्ट कोई रिपेयरिंग भी नहीं होती है।आइये इनके लिए इनके और आश्रितों के बेहतर जीवन व्यवस्थापन हेतु इस लेख के माध्यम से हम आवाज उठा सकें इस नक्कारखाने में मानवता का कोई तो पुजारी हो जो इनके लिए सोच सके ये प्रेस फोटोग्राफर तो हैं हीं इंसान भी हैं।मैंने जो देखा और इनके बीच में रह कर जो महसूस किया वह जीवन के प्रति असंवेदनशीलता और क्षोभ उत्पन्न करता है,एक कार्यक्रम में देखा की मुख्यमंत्री ने इन्हें अपने पास मंच पर बुला लिया जबकि सुरक्षा अधिकारी इन्हें वहां जाने नहीं दे रहे थे इसके पीछे यह मंशा थी की कार्यक्रम का सही फोटो आये और सभी वी आई पी प्रदेश और देश स्तर पर विस्तृत रूप से प्रदर्शित हो सकें,लेकिन उन प्रेस फोटोग्राफरों को जो उनकी ही व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं उनके लिए कोई चिंता नहीं ,कोई संवेदना नहीं।नजदीक से देखने पर छुपा दर्द सामने आया इस कार्य में ये इतने मशगूल हो जाते हैं की इनके पास परिवार के लिए भी समय नहीं होता,अपने स्वयं के लिए तो कोई पूछे ही नहीं।ये दिन भर यहाँ से वहां दुपहिया वाहन पर दौड़ते रहते हैं ट्राफिक अव्यवस्था के बीच,मोबाइल की घंटी इनके गंतव्य से ध्यान बटा देती है ,वाहन चलाते 2 ही फ़ोन पर बात करना कोई भी दुर्घटना हो सकती है,कोई सुरक्षा नहीं,साथ ही कैमरा और साधन हेलमेट की चिंता यदि कहीं छूट गया तो 400 रुपये अर्थदंड की चिंता फिर घर की चिंता।इनके चेहरे देखिये हमेशा तनाव में कही इनके चेहरे पर चमक नहीं आखिर कहाँ गयी इनके चेहरे की कांति यह सब है सुविधाओं की कमी,कमाई कम होना और मेहनत एवं तनाव ज्यादा होना आखिर इनके लिए कौन सोचेगा कोई संगठन कोई राजनेता या कोई अधिकारी है जो इस मानवधर्म के लिए आगे कदम बढ़ाएगा इस विचार को लेकर हम जायेंगे सभी अगुआ लोगों के पास और उनके विचार क्या वे कोई पहल करते हैं इस मानवधर्म की पूजा में ……..धर्मपथ आपके सामने एक लेख नहीं अभियान प्रस्तुत कर रहा है अपने मत दीजिये इसके सम्बन्ध में ………………..धर्मपथ की प्रस्तुति
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