नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (आईएएनएस)| हिंदू धर्म प्यार और एकता का संदेश देता है, इसमें बंटवारे की विचारधारा की कोई जगह नहीं है। यह कहना है जानी मानी लेखिका मनी राव का। वह अपनी पुस्तक ‘भगवद् गीता’ के बारे में बात कर रही थीं जो संस्कृत ग्रंथ े’श्रीमद्भगवद् गीता’ का अनुवाद है।
मणि राव हिंदू धर्मग्रंथों पर काफी शोध कर चुकी हैं। राव कहती हैं कि आज के दौर की असहिष्णुता के लिए केवल लेखकों को ही नहीं बल्कि और अधिक लोगों को आवाज उठानी चाहिए।
मणि ने आईएएनस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “हम असहिष्णुता के एक नए निचले स्तर तक पहुंच चुके हैं। लगता है कि यह एक विचारधारा के अनुसार है, लेकिन वास्तव में यह धर्म की गलत समझ है। जो लोग हिंदुत्व को मानते हैं वे जानते हैं कि हिंदू धर्म का आधार ही प्रेम और सद्भभावना है।
समाज में व्याप्त असहिष्णुता के बारे में बात करते हुए मणि ने गीता में लिखी एक पंक्ति दोहराते हुए कहा, “पांडित्य की शिक्षा लेने वाले ज्ञानी पंडित, गाय, हाथी, कुत्ते सभी को एक समान देखते हैं।”
भगवद् गीता का कई लेखकों ने अनुवाद किया है। उन्होंने महिलाओं को दोयम दर्जे का दर्शाया है, लेकिन मणि ने इसमें नारीवादी परिप्रेक्ष्य को भी रखा है।
मणि राव ने कहा, “जब हम किसी प्राचीन ग्रंथ को पढ़ते हैं तो हमें प्रसंग के फर्क के बारे में समझना होगा और उसके अनुरूप अपनी समझ में भी बदलाव लाना होगा। इसलिए मैंने अपने अनुवाद में पुरुष प्रधान शब्दों की बजाय स्त्री प्रधान शब्दों का चयन किया है। मेरी गीता इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि मैं आज के दौर में जी रही हूं।”
वह कहती हैं कि अधिकांश अनुवादक धार्मिक पुस्तकों के अनुवाद करते समय शब्दों को जोड़ने और हटाने से डरते हैं। जैसे कालिदास की ‘मेघदूतम्’ और ‘रघुवंशम्’ में शैली अलग है, लेकिन अधिकांश अनुवादक बिल्कुल ठीक वैसा ही अनुवाद कर देते हैं।
हिंदूवादी गुटों की यह दलील कि ‘वेदों में गोहत्या करने वाले अधर्मियों की हत्या का आदेश दिया गया है’ के बारे में मणि राव ने कहा कि किसी भी आधिकारिक धर्मग्रंथ में यह नहीं कहा गया है कि लोगों को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं।
आज के दौर में गीता की प्रासंगिकता के सवाल पर वह कहती हैं, “यह संभव है कि किसी ग्रंथ के एक हिस्से से एक श्लोक को उठा लिया जाए और दूसरे श्लोक के खिलाफ बहस के लिए उसका इस्तेमाल किया जाए। जरूरत इस बात की है कि उसके केवल एक हिस्से को पढ़ने की जगह उसे पूरा पढ़ा जाए।”
मणि के मुताबिक, “कोई भी अनुवाद व्याख्या रहित नहीं होता। खासतौर पर अगर उसमें इतने दर्शनशास्त्र की बात हो। लिखने के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जैसे श्लोकों की शब्दावली का अनुवाद आसान नहीं होता और पहले के अनुवाद और टीकाकारों की टिप्पणियों के बीच कई बार अंतर्विरोध भी होता है।”