महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रार्थना आत्मा की खुराक है। स्तुति, उपासना न तो ढोंग है और न ही शब्दों या कानों के विलास। प्रार्थना हमारे खाने-पीने, सोने और चलने-फिरने जैसे आवश्यक क्त्रियाकलापों से भी अधिक महत्वपूर्ण है। ईश्वर की स्तुति या प्रार्थना की महिमा का सभी धर्मो में बखान किया गया है। संसार भर के महापुरुषों का जीवन यही संदेश देता है कि प्रार्थना उनके जीवन का अनिवार्य अंग रही है। आत्म-बल और उत्कर्ष की प्राप्ति प्रार्थना के बिना संभव नहीं। अपने भीतर दिव्य ज्योति जगाने की छटपटाहट प्रार्थना से ही शांत होती है। एक विचारक का कहना है कि प्रार्थना मानव जीवन का सबसे सशक्त व सुगम एक ऐसा ऊर्जा स्नोत है, जिसे हर कोई उत्पादित करके स्वयं को प्राणवान, परिष्कृत और प्रतिभा संपन्न व्यक्तियों की श्रेणी में शामिल कर सकता है। हमारी अभिलाषाओं, आकांक्षाओं व आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तीन प्रकार के मार्ग- कर्म, चिंतन और प्रार्थना निर्धारित किए गए हैं। इन तीनों के समन्वित प्रयास से ही जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति होती है। यह देखा जाता है कि लोग कर्म और चिंतन के मार्ग पर चलने का प्रयत्न तो करते हैं, परंतु अति महत्वपूर्ण पक्ष प्रार्थना की उपेक्षा कर देते हैं। चिंतन और कर्म के सामान्य जीवन क्त्रम से जुड़े रहने पर अपने अस्तित्व की जानकारी आसानी से की जा सकती है, परंतु जीवन में महानता की प्राप्ति ईश्वर की अनुभूति से ही संभव है।
यदि दैनिक जीवन में पांच मिनट का समय प्रार्थना के लिए निकाला जाए तो इतने भर से दुष्प्रवृत्तियों से पीछा छुड़ाया जा सकता है, जो संपूर्ण समाज को त्रास दे रही हैं। प्रार्थना को प्रभावशाली बनाने के लिए विद्वानों ने पांच सूत्र बताए हैं। पहला, जीवन-व्यापार के हर क्षेत्र में ईश्वर को प्रमुखता देना। दूसरा, ईश्वरीय अस्तित्व का सतत आभास करते रहना। तीसरा, ईश्वर की पुकार को अंत:करण की गहराई से सुनना। चौथा, प्रार्थना के समय चिंतन की दिशाधारा सकारात्मक होना। पांचवां, अहित चाहने-सोचने वालों के प्रति भी सद्भावना रखना।