नई दिल्ली, 19 अगस्त – वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दायर की है, जिसमें अवमानना मामले के संबंध में उनकी सजा पर सुनवाई टालने की गुहार लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि जब तक इस संबंध में एक समीक्षा याचिका दायर नहीं की जाती और अदालत द्वारा इस पर विचार नहीं किया जाता, तब तक सजा पर सुनवाई को टाल दिया जाए।
भूषण को दो ट्वीट के माध्यम से न्यायपालिका पर टिप्पणी करने के मामले में अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है और गुरुवार को उनकी सजा सुनाने के बारे में फैसला होना है।
अधिवक्ता कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर एक आवेदन में उन्होंने कहा है किया कि मानव निर्णय अचूक नहीं है और सभी प्रावधानों के बावजूद निष्पक्ष सुनवाई तथा न्यायपूर्ण निर्णय सुनिश्चित करने में गलती संभव है और त्रुटियों से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अर्जी में कहा गया है, आपराधिक अवमानना कार्यवाही में यह अदालत एक ट्रायल कोर्ट की तरह काम करती है और यह अंतिम अदालत भी है। धारा 19 (1) हाईकोर्ट द्वारा अवमानना का दोषी पाए गए व्यक्ति को अपील का वैधानिक अधिकार देती है। यह फैक्ट है कि अदालत के फैसले के खिलाफ कोई भी अपील नहीं है और यह दोगुना आवश्यक हो जाता है कि यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत सावधानी बरती जाए कि न्याय केवल किया ही नहीं जाए, बल्कि यह होता हुआ दिखे भी।
शीर्ष अदालत में 2009 के अवमानना मामले में भूषण की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि भूषण 14 अगस्त के फैसले के खिलाफ एक समीक्षा दायर कर सकते हैं, जिन्हें अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है।
भूषण ने सुप्रीम कोर्ट और प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबड़े के खिलाफ कथित तौर पर ट्वीट किया था, जिस पर स्वत: संज्ञान लेकर अदालत कार्यवाही कर रही है।
प्रशांत भूषण ने 27 जून को अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ और दूसरा ट्वीट प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ किया था। 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रशांत भूषण को नोटिस मिला।
प्रशांत भूषण ने अपने पहले ट्वीट में लिखा था कि जब भावी इतिहासकार देखेंगे कि कैसे पिछले छह साल में बिना किसी औपचारिक इमरजेंसी के भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा चुका है, वो इस विनाश में विशेष तौर पर सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी पर सवाल उठाएंगे और प्रधान न्यायाधीश की भूमिका को लेकर सवाल पूछेंगे।