भोपाल (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद में पिछले माह हुए विस्फोट में मारे गए 78 लोगों का गुनहगार राजेंद्र कासवा जिंदा है, मगर पुलिस की गिरफ्त से अब भी दूर है। पुलिस अपने सक्रिय होने का दावा कर रही है, मगर कासवा के न पकड़े जाने से उसकी सक्रियता भी सवालों के घेरे में आ गई है। सवाल उठ रहा है कि क्या पुलिस इतनी अक्षम है कि वह 78 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार शख्स को भी नहीं पकड़ सकती?
पेटलावद में 12 सितंबर को जिलेटिन छड़ों के गोदाम में हुए विस्फोट में 78 लोग मारे गए थे, मौतों के आंकड़े को लेकर अरसे तक भ्रम की स्थिति रही। पुलिस और प्रशासन ने पहले मौतों का आंकड़ा 89 बताया, लेकिन एक पखवाड़े बाद यह संख्या 78 हो गई। इनमें से 74 मृतकों की पहचान कर ली गई, लेकिन चार अब भी अज्ञात हैं, जिनके शव इंदौर के एमवाई अस्पताल में सुरक्षित रखे गए हैं।
हादसे के बाद एक अफवाह ने जोर पकड़ा था कि मुख्य आरोपी राजेंद्र कासवा भी विस्फोट में मारा गया, इसकी हकीकत जानने पुलिस ने मृतकों के शव और कासवा के परिजनों का डीएनए टेस्ट कराया। विस्फोट की जांच के लिए बने विशेष जांच दल (एसआईटी) की प्रमुख सीमा अल्वा ने शनिवार को आईएएनएस को बताया कि सागर फॉरेंसिक लैब से जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है, इसका आशय साफ है, मृतकों में कासवा नहीं है।
अल्वा ने आगे बताया कि विस्फोट के बाद की कार्रवाई में राजेंद्र के दो भाई और विस्फोटक की आपूर्ति करने वाला धर्मेद्र गिरफ्तार किया जा चुका है, वहीं राजेंद्र की तलाश में कई स्थानों पर दबिश दी गई है, मगर सफलता नहीं मिली है।
विस्फोट के बाद इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गंभीरता से लेते हुए कासवा पर एक लाख का इनाम घोषित किया था, इतना ही नहीं वह स्वयं भी दो दिन तक पेटलावद में रहकर पीड़ितों के घर तक गए थे। साथ ही लोगों को भरोसा दिलाया था कि आरोपी जल्द सलाखों के पीछे होगा। हादसे को हुए लगभग एक माह का वक्त गुजर गया है, मगर कासवा पुलिस की गिरफ्त से दूर है।
हादसे के बाद कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने जहां कासवा को भाजपा का कार्यकर्ता बताया था, वहीं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने कासवा को कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया का करीबी करार दिया था। साथ ही दोनों ओर से कासवा को ‘राजनीतिक संरक्षण’ प्राप्त होने की भी बात कही गई।
विस्फोट की एक तरफ न्यायिक जांच चल रही है तो दूसरी ओर एसआईटी जांच में जुटी है। उसके बाद भी कासवा पुलिस की पकड़ से दूर है। यही बात कई सवाल खड़े करती है। क्या कासवा का तंत्र पुलिस से मजबूत और सक्रिय है, क्या उसे आज भी राजनीतिक संरक्षण है, क्या पुलिस उसे पकड़ना नहीं चाहती या प्रभावशाली लोग उसे पकड़ने नहीं दे रहे हैं या कासवा को न पकड़ने का कोई राजनीतिक फरमान है या पुलिस की अपनी थ्योरी है।
वैसे तो राज्य की पुलिस को सरकार से लेकर पुलिस के अफसर तक सक्रियता का प्रमाण-पत्र देते रहते हैं, राज्य में डकैतों के खात्मे से लेकर सिमी के नेटवर्क को समाप्त करने का श्रेय इसी पुलिस के खाते में जाता है, मगर कासवा अब भी फरार है। अब देखना होगा कि पुलिस झाबुआ-रतलाम लोकसभा क्षेत्र में प्रस्तावित उपचुनाव से पहले या बाद में कासवा को पकड़ पाती है या नहीं।