मुंबई, 1 अप्रैल (आईएएनएस)। बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक दूरगामी फैसले में कहा कि कोई भी कानून पूजास्थलों में महिलाओं को प्रवेश करने से नहीं रोकता। इस मामले में लैंगिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.एच.वाघेला और न्यायमूर्ति एम.एस.सोनक की पीठ ने यह फैसला एक जनहित याचिका पर दिया। याचिका सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल और वरिष्ठ वकील नीलिमा वर्तक ने दायर की थी। इसमें अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती दी गई थी।
जनहित याचिका को निपटाते हुए न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को कानून पालन सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि ‘यह महिलाओं का बुनियादी अधिकार है’ और इसकी हिफाजत की जानी चाहिए।
राज्य सरकार ने न्यायालय से कहा कि वह लैंगिक भेदभाव के बिल्कुल खिलाफ है और वह महाराष्ट्र हिदू धर्मस्थल (प्रवेश प्राधिकार) अधिनियिम 1956 को पूरी ईमानदारी से लागू करेगी। इस कानून में प्रावधान है कि धर्मस्थल में किसी को रोकने पर छह महीने तक की जेल हो सकती है।
कार्यवाहक महाधिवक्ता रोहित देव ने न्यायालय से कहा कि सभी जिला आयुक्त और पुलिस अधीक्षकों को सर्कुलर भेजकर उन्हें इस कानून के प्रति आगाह किया जाएगा।
अदालत ने देव के आश्वासन को मानते हुए राज्य के गृह सचिव से इस कानून का पालन सुनिश्चित करने और जिला आयुक्तों व पुलिस प्रमुखों को जरूरी निर्देश जारी करने को कहा।
वकील नीलिमा वर्तक ने संवाददाताओं से कहा कि अदालत के फैसले के बाद अब महिलाएं किसी भी मंदिर में प्रवेश कर अपनी धार्मिक आजादी के अधिकार का इस्तेमाल कर सकती हैं।
उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक कानून पर अमल कराने के लिए हमें अदालत जाना पड़ा। जब कानून है, तो उस पर अमल भी होना चाहिए।”
महिलाओं के पूजास्थलों में प्रवेश के मुद्दे को उठा रहे भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड नामक संगठन की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने अदालत के फैसले पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि वह शनिवार को महिलाओं के एक दल के साथ शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में पूजा-अर्चना करेंगी, जहां सदियों से महिलाओं को प्रवेश की मनाही रही है।