पन्ना, 17 जुलाई (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगर पन्ना में निकलने वाली जगन्नाथ जी की भव्य रथयात्रा पुरी की रथयात्रा की याद दिला जाती है। यह रथयात्रा न केवल भव्य होती है, बल्कि इस आयोजन में हजारों लोग शामिल होते हैं। इस रथयात्रा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यहां के मंदिर में स्थापित जगन्नाथ जी की प्रतिमा दो शताब्दी पूर्व पुरी से ही लाई गई थी।
बुंदेलखंड के पन्ना जिले की पहचान ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी के तौर पर है। यहां जगन्नाथ जी का जो मंदिर है वह पुरी के जगन्नाथ मंदिर की याद ताजा कर जाता है। विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला पर स्थित इस मंदिर की निर्माण शैली पुरी के मंदिर से काफी मेल खाती है, इतना ही नहीं पुरी में मंदिर के करीब समुद्र है तो पन्ना के मंदिर के सामने इंद्रामन नाम का सरोवर है जो मंदिर के आकर्षण को और बढ़ा देता है।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 1816 में तत्कालीन पन्ना नरेश किशोर सिंह जू देव पुरी से भगवान जगन्नाथ की प्रतिमाएं पन्ना लेकर आए थे। राजा के साथ कई और लोग भी गए थे, उनमें योगेंद्र अवस्थी के पूर्वज भी शामिल थे।
योगेंद्र ने आईएएनएस को बताया कि प्रतिमा को रथ से पन्ना लाया गया था, पन्ना नरेश रथ के पीछे-पीछे पैदल चलकर आए थे, प्रतिमा को लाने में चार माह का समय लगा था। भगवान के लिए भव्य मंदिर बनाया गया। जिस तरह पुरी में समुद्र है, उसी तर्ज पर पन्ना में मंदिर के सामने तालाब का निर्माण कराया गया और भगवान की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गई।
अवस्थी बताते हैं कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के 36 वर्ष बाद पन्ना में भी आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकालने की शुरुआत हुई। बीते 163 वर्षो से रथयात्रा निकालने का सिलसिला यहां अनवरत चला आ रहा है। इस रथ यात्रा में हजारों की भीड़ के साथ घोड़े-हाथी, ऊंट की सवारी निकलती है। पूर्व काल में यात्रा की शुरुआत तोपों की सलामी के साथ होती थी। आजादी के बाद पुलिस द्वारा यात्रा के प्रारंभ में गार्ड ऑफ आनर देने की शुरुआत हुई। यह परम्परा आज भी जारी है।
नगर पालिका के पूर्व उपाध्यक्ष और जानकार बृजेंद्र सिंह बुंदेला ने आईएएनएस को बताया कि रथयात्रा की शुरुआत किशोर सिंह के पुत्र महाराजा हरवंश सिंह द्वारा थी। रथयात्रा के लिए मंदिर से पांच किमी दूर जनकपुरी बसाई गई। जहां एक मंदिर का निर्माण भी हुआ। यह रथयात्रा पन्ना से शुरू होकर जनकपुरी तक जाती है।
मंदिर के महंत राकेश गोस्वामी बताते हैं कि पन्ना के मंदिर में जगन्नाथपुरी की तरह प्रसाद में अटका (चावल का प्रसाद) चढ़ाया जाता था। ऐसी मान्यता है कि राजा को भगवान जगन्नाथ स्वामी ने दर्शन दिए कि यहां अटका न चढ़ाया जाए, इससे पुरी का महत्व कम होगा। तब से पन्ना में अंकुरित मूंग का प्रसाद चढ़ाने की परम्परा शुरू हुई, जो आज भी जारी है।
आजादी से पहले रथयात्रा का आयोजन राज परिवार द्वारा किया जाता था मगर अब जिला प्रशासन रथयात्रा का आयोजन करता है। इस रथयात्रा की भव्यता को देखते हुए प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्री यात्रा में शामिल होते थे। मगर अब ऐसा नहीं है, वर्ष 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह यात्रा में शामिल हुए थे। उसके बाद से कोई सरकार का कोई प्रतिनिधि इस यात्रा में शामिल नहीं हुआ।