संयुक्त राष्ट्र, 16 जनवरी (आईएएनएस)। हैदराबाद में साल 2016 में पैदा हुए सैयद अकबरुद्दीन जहां इस समय संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हैं, वहीं पाकिस्तान ने, 67 वर्ष पहले हैदराबाद के भारत में हुए विलय के मुद्दे को सुरक्षा परिषद के सामने उठाया है। जबकि वह कश्मीर मामले का अंतर्राष्ट्रीयकरण की कोशिश में हमेशा विफल रहा है।
अब तक हैदराबाद में सालारजंग पुल के नीचे से काफी पानी बह चुका है और हैदराबाद भी अब ‘साइबराबाद’ के नाम से जाना जाने लगा है। लेकिन पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से ‘धर्मनिरपेक्ष भारत में विभिन्न रियासतों के विलय’ से संबंधित प्रश्न पूछा है।
सबसे पहले 1948 में निजाम मीर उस्मान अली खान सिद्दीकी आसफ जाह सांतवें ने परिषद को यह संदेश भेजा था कि वे नए-नए आजाद हुए भारत को हैदराबाद से दूर रखे। हालांकि खुद हैदराबाद की जनता भारत में मिलना चाहती थी और भारत ने अपनी सेना लोगों की मदद के लिए भेजी थी। उसके बाद हैदराबाद भारत में शामिल हो गया और निजाम ने भी भारत के साथ समझौता कर सुरक्षा परिषद में की गई अपनी शिकायत वापस ले ली।
इस मुद्दे के खत्म होने के बाद भारत ने परिषद को बताया कि हैदराबाद को यह शिकायत करने का अधिकार ही नहीं था। हालांकि अब इस शिकायत को स्पष्ट रूप वापस ले लिया गया है। इसे परिषद ने भी स्वीकार कर लिया था और मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। लेकिन पाकिस्तान बीते वक्त की याद में 1949 से ही हर साल सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे को उठाता रहा है।
लोदी ने परिषद के अध्यक्ष को सात जनवरी को पत्र लिखा था, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को जारी किया। इस पत्र में 1965 और 1971 को याद करते हुए लिखा गया है कि पाकिस्तान तीन मुद्दों पर सुरक्षा परिषद का ध्यान आकर्षिक कराना चाहता है, जिसे परिषद ने अचानक बंद कर दिया था। लोदी ने तथाकथित ‘भारत-पाकिस्तान के प्रश्न’ को एक बार फिर जिंदा करते हुए कश्मीर पर अधिकार के लिए 1948 और 1965 की लड़ाइयों का हवाला दिया।
1948 में सुरक्षा परिषद ने एक संकल्प पारित किया था, जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच ‘शांति-व्यवस्था’ बहाली के लिए और वहां जनमत संग्रह कराने के लिए एक आयोग के गठन की बात थी। इसमें पाकिस्तान से कहा गया था वह कश्मीर से अपने तथाकथित ‘कबायलियों’ और नागरिकों को वापस बुला ले। लेकिन पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव की बुनियादी बातों को धता बताते हुए इसका पालन नहीं किया।
2001 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव कोफी अन्नान ने कहा था कि यह संकल्प केवल एक सिफारिश है और इसे जबरदस्ती लागू नहीं कराया जा सकता। वहीं 2010 में सुरक्षा परिषद ने अनसुलझे अंतर्राष्ट्रीय विवादों की सूची से कश्मीर का नाम हटा दिया।
सुरक्षा परिषद के सामने ‘भारत-पाकिस्तान प्रश्न’ एक बार फिर 1965 की लड़ाई के दौरान आया। उस साल सुरक्षा परिषद के संकल्प में दोनों ही देशों से युद्धविराम को कहा गया और महासचिव के प्रतिनिधि से मिलकर सेना को अपने-अपने पूर्व स्थान पर वापस भेजने की बात थी। हालांकि अगले ही साल प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद में द्विपक्षीय समझौता हो जाने के कारण मामला विवादित हो गया।
लोदी ने सुरक्षा परिषद के सामने जो तीसरा मुद्दा उठाया है, वह यह है कि ‘भारत-पाकिस्तान उपमहाद्वीप के बीच जो स्थिति है’ वह 45 साल पहले बंगमुक्ति संग्राम से शुरू होती है। जबकि आजाद बांग्लादेश के संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बनने के साथ ही यह मुद्दा खत्म हो चुका है। इसके अलावा भारत और पाकिस्तान ने बांग्लादेश बनने के बाद अपने मुद्दों को सुलझाने के लिए शिमला समझौता किया था, जिसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप के बिना कश्मीर मुद्दा सुलझाने की बात है।