डॉ. डेवीड ग्रे -(१)”वैज्ञानिक विकास में भारत हाशिये पर की टिप्पणी नहीं है।”
*(२)”वैश्विक सभ्यता में भारत का महान योगदान नकारता इतिहास विकृत है।”
*(३)सर्वाधिक विकसित उपलब्धियों की सूची, भारतीय चमकते तारों की. आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, महावीर, भास्कर, माधव के योगदानों की।”
**(४)”पश्चिम विशेषकर भारत का ऋणी रहा है।
*प्रो. स्टर्लिंग किन्नी –(५) “हिंदू अंकों के बिना, विज्ञान विकास बिलकुल असंभव।
(६) “किसी रोमन संख्या का वर्ग-मूल निकाल कर दिखाएँ।”
*लेखक: (७) *अंको के बिना, संगणक भी, सारा व्यवहार ठप हो जाएगा।
अनुरोध: अनभिज्ञ पाठक,पूर्ण वृत्तांत सहित जानने के लिए, शेष आलेख कुछ धीरे धीरे आत्मसात करें। कुछ कठिन लग सकता है।
(एक)सारांश:
गत दो-तीन सदियों की पश्चिम की, असाधारण उन्नति का मूल अब प्रकाश में आ रहा है, कि, उस उन्नति के मूल में, हिन्दू अंकों का योगदान ही, कारण है।
इन अंकों का प्रवेश, पश्चिम में, अरबों द्वारा कराया होने के कारण, गलती से, उन्हें अरेबिक न्युमरल्स माना जाता रहा।
पर, वेदों में उल्लेख होने के कारण, और अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से (गत २-३ दशकों में) इस भ्रांति का निराकरण होकर अब स्वीकार किया जाता है, कि तथाकथित ये अरेबिक अंक, वास्तव में हिन्दू-अंक ही थे। साथ में एक-दो विद्वान भी, मान रहें हैं, कि, हमारी गणित की अन्य शाखाएं भी इस उत्थान में मौलिक योगदान दे रही थी।
(दो) हिंदु अंको के आगमन पूर्व:
हिंदु अंको के आगमन पूर्व, रोमन अंकों का उपयोग हुआ करता था। निम्न तालिका में कुछ उदाहरण दिए हैं; जो अंकों को लिखने की पद्धति दर्शाते हैं। आप ने घडी में भी, ऐसे रोमन अंक I, II, III, IV, V, VI, VII, VIII, IX, XI, XII देखे होंगे। ये क्रमवार, १,२,३,४,५,६,७,८,९,१०, ११. १२ के लिए चिह्न होते हैं।
बडी संख्याएँ, निम्न रीति से दर्शायी जाती हैं।
3179 =MMMCLXXIX, 3180=MMMCLXXX
3181 =MMMCLXXXI, 3182=MMMCLXXXII
3183 =MMMCLXXXIII, 3184 =MMMCLXXXIV
3185 =MMMCLXXXV, 3186 =MMMCLXXXVI
3187 =MMMCLXXXVII, 3188 =MMMCLXXXVIII
3189 =MMMCLXXXIX, 3190 =MMMCXC
रोमन अंको की कठिनाई थी; उनका जोड, घटाना, गुणाकार, भागाकार इत्यादि, जैसी सामान्य प्रक्रियाएं कठिन और कुछ तो असंभव ही होती थी। फिर वर्गमूल, घनमूल और अनेक गणनाएँ तो असंभव ही थी।
जिन्हें सन्देह हो, उन्हें, निम्न रोमन संख्याओं का गुणाकार कर के, देखना चाहिए।
(MMMCLXXXVIII) x{ MMMCLXXXVI} =?