भोपाल, 4 जून (आईएएनएस)। जुनून जब हद को पार कर जाए तो वह पागलपन में बदल जाता है। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में भी एक ऐसा ही दीवाना रहता है, जिसे पर्यावरण से कुछ इस तरह का प्यार है कि वह उसकी खातिर बीबी-बच्चों तक की परवाह नहीं करता है।
भोपाल, 4 जून (आईएएनएस)। जुनून जब हद को पार कर जाए तो वह पागलपन में बदल जाता है। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में भी एक ऐसा ही दीवाना रहता है, जिसे पर्यावरण से कुछ इस तरह का प्यार है कि वह उसकी खातिर बीबी-बच्चों तक की परवाह नहीं करता है।
मध्य भारत के सूखाग्रस्त इलाकों में से एक है मध्य प्रदेश का श्योपुर जिला। इस जिले की सीमा राजस्थान के सवाई माधवपुर को स्पर्श करती है। मुख्य मार्ग से गुजरते वक्त दूर-दूर तक पेड़ नजर नहीं आते मगर बड़ौदा विकासखंड के एक छोटे-से गांव बसोंद के रास्ते पर मुड़ते ही हालात बदल जाते हैं।
बसोंद गांव तक जाने वाले रास्ते से लेकर पूरे गांव में हर तरफ हरियाली नजर आती है। सड़क के दोनों ओर बड़े-बड़े पेड़ नजर आते हैं। यही कारण है कि गर्मी की भरी दोपहरी में भी लोग नीम, बरगद के नीचे बैठकर गपें मारते मिल जाएंगे।
गांव की हरियाली के पीछे जयराम मीणा की 35 वर्ष की तपस्या है, जिसने गांव के खुले स्थान पर पेड़ लगा डाले। गांव के रामस्वरूप भी मानते हैं कि अगर वे गर्मी में पेड़ की छांव में बैठे हैं तो जयराम की बदौलत।
जयराम जब महज 15 साल के थे, तभी उनके मन में पेड़ लगाने से लेकर पक्षियों को दाना-पानी मुहैया कराने का जुनून सवार हो गया था। उन्होंने अपने दादा मथुरा लाल मीणा को पेड़ लगाते देखा था।
प्रारंभ में उन्होंने सड़क किनारे पेड़ों की सिंचाई शुरू कर दी। वक्त गुजरने के साथ जयराम ने अपने ही खेत में छोटी नर्सरी बना डाली। नर्सरी में वह नीम, बरगद, आंवला, अमरूद, आम के साथ फूल वाले पौधे तैयार करते। पौधे जैसे ही लगाने लायक होते वह सरकारी, या खाली पड़ी जगह ढूढ़कर उन्हें रोप देते। इन पौधों की वह खुद रखवाली और नियमित सिंचाई करते।
उम्र बढ़ने के साथ जयराम की परिजनों ने शादी कर दी। जयराम का फिर भी पर्यावरण से प्रेम बना रहा। वह सुबह चार बजे जागकर साइकिल पर दो डिब्बे टांगकर लगाए गए पेड़ों की सिंचाई के लिए निकल पड़ते। उनकी इस आदत से पत्नी भी नाराज रहने लगी और शादी के कुछ माह बाद ही जयराम का साथ छोड़कर मायके चली गई ।
जयराम ने आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा कि वह बीते 35 वर्षों में लगभग 11 लाख वृक्षों के पौधे लगा चुके हैं। वह यह सारा काम बगैर किसी की मदद के करते आ रहे हैं।
जयराम का कहना है कि उनके हिस्से में लगभग बारह बीघा जमीन है। इसमें से एक हिस्से में नर्सरी है, तो एक हिस्से मे पक्षियांे को चुगने के लिए नियमित दाना डालते हैं। जमीन के शेष बचे हिस्से में खेती करते हैं। पैदावार का दस प्रतिशत हिस्सा पक्षियों का, तो 10 प्रतिशत समाज के लिए और शेष परिवार के भरण पोषण के लिए होता है।
पर्यावरण प्रेमी के घर का नजारा देखकर ही ऐसा एहसास हो जाता है कि वह किस तरह का दीवाना है। घर के आंगन में लगे हर पेड़ पर एक बर्तन लटकता दिखता है, जो पानी से भरा होता है, और पक्षी उससे अपनी प्यास बुझा रहे होते हैं। वहीं किचन नर्सरी में पेड़ नजर आ जाते हैं। इन पौधों की सिंचाई गंदे पानी से की जाती है।
जयराम के गांव बसांेद का कोई भी इलाका ऐसा नहीं है, जहां खेतों के अलावा खाली स्थान नजर आ जाए, हर तरफ पेड़ नजर आते हैं। उन्हें जहां भी खाली स्थान दिखता है, वहां पौधा रोप देते हैं।
पेड़ को जानवर आदि नुकसान पहुचा सकें, इसके लिए वह अपने तरीके से प्रबंध करते हैं।
जयराम बीते दिनों को याद कर कहते हैं, “उन्हें लोग पहले पागल कहा करते थे, पत्नी भी साथ छोड़कर चली गई थी, मगर बाद में लौट आई। अब तीन बेटी और एक बेटा है। दो बेटियों की शादी हो गई है। वह शादी के बाद बेटियों को हरे रंग की साड़ी में विदा करते हैं और दामाद को दहेज में 11 पेड़ देते हैं। सरकारी अस्पताल में बालिका के जन्म पर वह पौधर लगाते हैं।”
बसोंद सरकारी विद्यालय के शिक्षक राम सेवक का कहना है कि जब जयराम छोटे थे तब उनके स्कूल में आए और पेड़ लगाने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने न केवल पेड़ लगाया, बल्कि उसकी देखरेख भी की। आज वह पौधा विशाल वृक्ष बन चुका है।
जयराम के पर्यावरण प्रेम का हर कोई कायल है। वन विभाग के अधिकारी राकेश कुमार का कहना है कि एक व्यक्ति का पर्यावरण के लिए दिया गया योगदान अकल्पनीय है। उन्होंने सिर्फ श्योपुर ही नहीं आसपास के क्षेत्रों में भी पौधे लगाए हैं।