पहले पर्यावरण का स्वरूप अलग था, आज उसमें बड़ा बदलाव हुआ है। आज इसका विस्तार वैश्विक स्तर पर हुआ है। उदारीकरण और वैश्वीकरण मंे पर्यटन का बडा महत्व है। पर्यटन और होटल व्यवसाय एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इसमें अन्य सुविधाएं भी शामिल हैं। जो देश इन सुविधाआंे को जितना सुलभ और उच्च स्तरीय बना लेता है, उसे पर्यटन से उतना ही अधिक लाभ मिलता है ऐसे देश पर्यटन को उद्योग बनाने में सफल रहे हैं।
पहले पर्यावरण का स्वरूप अलग था, आज उसमें बड़ा बदलाव हुआ है। आज इसका विस्तार वैश्विक स्तर पर हुआ है। उदारीकरण और वैश्वीकरण मंे पर्यटन का बडा महत्व है। पर्यटन और होटल व्यवसाय एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इसमें अन्य सुविधाएं भी शामिल हैं। जो देश इन सुविधाआंे को जितना सुलभ और उच्च स्तरीय बना लेता है, उसे पर्यटन से उतना ही अधिक लाभ मिलता है ऐसे देश पर्यटन को उद्योग बनाने में सफल रहे हैं।
पर्यटन का आर्थिक ही नहीं, सांस्कृतिक महत्व भी है। पर्यटन से सांस्कृतिक संबंधों का भी विस्तार होता है। यह केवल लोगों का आवागमन नहीं है। गेस्ट का असर होस्ट पर पड़ता है। इसकी प्रतिक्रिया भी होती है। यह अच्छे और खराब दोनों रूपों में हो सकता है। जब कोई होस्ट अपने देश में आने वाले पर्यटनों से बेईमानी करता है, तो वह उसकी आदत का हिस्सा बन जाता है। फिर भी अपने देश के लोगों के साथ बेईमानी करने में संकोच नहीं करता।
पर्यटन से राष्ट्रीय एकता बढ़ती है। वैश्विक स्तर पर भी एक दूसरे को समझने का अवसर मिलता है। पर्यटन और राजनीति का भी संबंध है। पर्यटन से एक-दूसरे जगह लोग जाते हैं। पर्यटन जब कम था तब दक्षिण भारत में उत्तर के प्रति घृणा की बातें फैलाई गईं। हिंदी विरोधी आंदोलन चले। पर्यटन बढ़ा तो ऐसी संकुचित सोच कम होने लगी। पर्यटन स्थलों के व्यवसाइयों ने एक-दूसरे की भाषा सीखना शुरू किया।
पर्यटन भारत के गौरवशाली अतीत को विश्व प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण योगदान करता है। ताजमहल से लेकर सभी ऐतिहासिक धरोहरें हमारी पुरानी समृद्धता को बयान करती हैं। भारत में तीर्थाटन, देशाटन और पर्यटन तीन शब्द प्रचलित रहे हैं। चार आश्रमों का इनसे किसी न किसी रूप में संबंध रहा था। इसका मतलब है कि प्राचीन भारत में पर्यटन भी बहुत सुनियोजित था।
पर्यटन बढ़ाने के लिये ढांचागत सुविधाओं का विकास करना होगा। इसमें सड़क, होटल, हवाई अड्डे, अच्छी परिवहन की व्यवस्था करनी होगी। भारत विविधतापूर्ण पर्यटन स्थलों से समृद्ध है। विश्व में कई देश ऐसे हें जहां केवल रेगिस्तान हंै, कई ऐसे हैं जहां केवल पहाड़ है। फिर भी इन्होंने पयर्टन के मद्देनजर ढांचागत विकास किया। जबकि भारत में पहाड़ है, रेगिस्तान है, समुद्र है, इतना ही नहीं इतनी ऐतिहासिक इमारतें विश्व में कहीं नहीं हैं। हमारा खान-पान, उत्सव आदि सभी विविधताओं से भरे हैं।
उत्तर भारत में जब बर्फ पड़ती है, गोवा में गर्मी रहती है। अर्थात् मौसम भी विविधतपूर्ण है। कहीं घने जंगल हैं, कहीं नारियल पेड़ हैं, कहीं मैदान-दोआब हैं। हाथी और ऊंट की सवारियां हैं। इतनी विविधता के बाद विश्व पर्यटन में हमारी हिस्सेदारी मात्र एक प्रतिशत है। अरब देश अपना रेगिस्तान लेागों को दिखाकर बड़ी रकम कमाते हैं। यूरोप लगभग एक जैसा है, लेकिन उन्होंने ढांचागत सुविधाओं का ऐसा विकास किया, जिससे वहां पर्यटन उद्योग बन गया।
अमेरिका का कोई इतिहास नहीं, ऐतिहासिक इमारतें नहीं हैं, फिर भी वह पर्यटन का उद्योग चला रहा है। भारत की पिछली सरकारों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार ने पयर्टन स्थलों पर होटल बनाए, कुछ वर्ष बाद निजी क्षेत्र को बेच दिए। इसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगे।
पर्यटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। पर्यटन के लिये जब अच्छी सड़क बनती है तो उसका लाभ सभी व्यापारियों, उद्योगपतियों को होता है। कृषि उपज गांव तक पहुंचना आसान हो जाती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था इससे सुधरती है। बड़ी संख्या में लोगों को परोक्ष-अपरोक्ष रोजगार मिलता है। गांव के व्यापारी और किसान की अलग आर्थिक स्थित होती है।
किसान के लिए अपनी उपज बाजार तक ले जाना मुश्किल होता है। पयर्टन बढ़ेगा, तो अपरोक्ष रूप से पूरे समाज पर इसका प्रभाव पड़ेगा है। आजादी के बाद पयर्टन को उद्योग के रूप में विकसित करने का अभियान चलाया जाता तो आज देश का बड़ा हिस्सा गरीबी और बेरोजगारी से मुक्त हो जाता। सरकार को भी राजस्व का लाभ होता। (आईएएनएस/आईपीएन)