नई दिल्ली– सेना के दिग्गज मानद कैप्टन और देश के एकमात्र जीवित परमवीर चक्र पुरस्कार विजेता बाना सिंह ने कहा है कि देश को अग्निपथ योजना के लिए ‘बड़ी कीमत चुकानी’ होगी, जो सेना को ‘बर्बाद करेगी और पाकिस्तान व चीन को फायदा पहुंचाएगी.
द टेलीग्राफ के मुताबिक, जम्मू में अपने घर में इस अख़बार से बात करते हुए 73 वर्षीय सिंह ने कहा, ‘चार साल के अनुबंध वाली अग्निपथ योजना भारतीय सेना को बर्बाद कर देगी. इसे बिल्कुल भी लागू नहीं किया जाना चाहिए था.’
‘सियाचिन हीरो’ के तौर पर मशहूर सिंह ने जून 1987 में 21,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर पाकिस्तान के क़ायदे-आज़म पोस्ट पर हमले का नेतृत्व किया था. इस हमले में छह पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और चौकी पर कब्जा कर लिया गया था. इसके बाद चौकी का नाम बदलकर ‘बाना पोस्ट’ कर दिया गया था.
सिंह को इस वीरता के लिए 1988 में देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र मिला था. एक सूबेदार मेजर के रूप में सेवानिवृत्त हुए सिंह को कप्तान की मानद रैंक दी गई थी.
उल्लेखनीय है कि सिंह के ट्विटर हैंडल से अग्निपथ योजना की आलोचना करने वाले एक ट्वीट ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी थी. उन्होंने कहा, ‘फिर मुझे फोन आने लगे, जिसके बाद इसे हटा दिया.’ उनका कहना है कि वे अपने मन की बात कहना जारी रखेंगे, ‘मैं हमेशा सेना और उसके भले के लिए बोलूंगा.’
सिंह ने अग्निपथ योजना को सभी पर थोपे जाने के तरीके की तुलना ‘तानाशाही’ से की. उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में इस तरह के आमूलचूल बदलाव वाले फैसले सभी हितधारकों और सैन्य दिग्गजों, जो सैनिकों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं क्योंकि उन्होंने जमीन पर युद्ध लड़े हैं, से परामर्श किए बिना नहीं लिए जा सकते हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.’
सिंह ने कहा, ‘यह एक तानाशाही की तरह है- यानी कोई कह दे कि बस ‘मैंने निर्णय ले लिया है और इसे लागू किया जाना है’. यह जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसी बात है.’
गौरतलब है कि बीते 14 जून को केंद्र सरकार ने दशकों पुरानी रक्षा भर्ती प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए थलसेना, नौसेना और वायुसेना में सैनिकों की भर्ती संबंधी अग्निपथ योजना की घोषणा की थी, जिसके तहत सैनिकों की भर्ती सिर्फ चार साल की कम अवधि के लिए संविदा आधार पर की जाएगी.
योजना के तहत तीनों सेनाओं में इस साल करीब 46,000 सैनिक भर्ती किए जाएंगे. योजना के तहत 17.5 साल से 21 साल तक के युवाओं को चार साल के लिए सेना में भर्ती किया जाएगा और उनमें से 25 फीसदी सैनिकों को अगले 15 और साल के लिए सेना में रखा जाएगा.
बाद में सरकार ने 2022 में भर्ती के लिए अधिकतम आयु सीमा को बढ़ाकर 23 साल कर दिया. इस नई योजना के तहत भर्ती रंगरूटों को ‘अग्निवीर’ कहा जाएगा.
अग्निपथ योजना के तहत रोजगार के पहले वर्ष में एक ‘अग्निवीर’ का मासिक वेतन 30,000 रुपये होगा, लेकिन हाथ में केवल 21,000 रुपये ही आएंगे. हर महीने 9,000 रुपये सरकार के एक कोष में जाएंगे, जिसमें सरकार भी अपनी ओर से समान राशि डालेगी. इसके बाद दूसरे, तीसरे और चौथे वर्ष में मासिक वेतन 33,000 रुपये, 36,500 रुपये और 40,000 रुपये होगा. प्रत्येक ‘अग्निवीर’ को ‘सेवा निधि पैकेज’ के रूप में 11.71 लाख रुपये की राशि मिलेगी और इस पर आयकर से छूट मिलेगी.
यह भर्ती ‘अखिल भारतीय, अखिल वर्ग’ के आधार पर की जाएगी. इससे उन कई रेजींमेंट की संरचना में बदलाव आएगा, जो विशिष्ट क्षेत्रों से भर्ती करने के अलावा राजपूतों, जाटों और सिखों जैसे समुदायों के युवाओं की भर्ती करती हैं.
सशस्त्र बलों द्वारा समय-समय पर घोषित की गई संगठनात्मक आवश्यकता और सेना की नीतियों के आधार पर चार साल की सेवा पूरी होने पर ‘अग्निवीर’ को सशस्त्र बलों में स्थायी नामांकन के लिए आवेदन करने का अवसर प्रदान किया जाएगा.
सेना में नौकरी के इच्छुक युवा देश भर में यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इस योजना के तहत भर्ती से वे चार साल बाद बेरोजगार हो जाएंगे. सेवानिवृत्त जनरलों ने भी कहा है कि यह योजना सशस्त्र बलों की प्रकृति, व्यावसायिकता और मनोबल को नुकसान पहुंचाएगी.
सिंह के ट्विटर हैंडल से मंगलवार रात को की गई एक पोस्ट में कहा गया था, ‘देश को बचाओ, अग्निपथ योजना हमें बुरी तरह से नुकसान पहुंचाएगी, भारत एक नाजुक दौर से गुजर रहा है. युवा हमारी मातृभूमि का भविष्य हैं.’
सोशल मीडिया पर योजना की आलोचना को लेकर इस ट्वीट की खासी चर्चा हुई. कई सैन्य दिग्गजों ने इस विषय पर बोलने के लिए सिंह को धन्यवाद दिया. हालांकि बुधवार सुबह ट्वीट को डिलीट कर दिया गया.
इस बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा, ‘मैंने अपने बेटे को ट्वीट करने के लिए कहा था… मुझे फोन आने लगे. इसलिए मैंने उसे डिलीट करने को कहा. मैंने सोचा, क्या ही फर्क पड़ता है जब सरकार ने योजना को लागू करने का मन बना ही लिया है.’
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी बाना सिंह के ट्वीट के साथ एक अख़बार की खबर साझा करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा था.
गांधी ने ट्विटर पर लिखा, ‘एक तरफ देश के परमवीर हैं और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री का घमंड और तानाशाही. क्या ‘नए भारत’ में सिर्फ़ ‘मित्रों’ की सुनवाई होगी, देश के वीरों की नहीं?’
ज्ञात हो कि सरकार ने यह कहते हुए योजना का बचाव किया है कि यह बलों में औसत आयु को कम करने के लिए है और सैन्य अधिकारी 1980 के दशक से इस तरह के उपायों के बारे में सोच रहे थे.
सिंह ने कहा कि अग्निपथ योजना से भारत के दुश्मनों को फायदा हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘सैनिक बनना कोई खेल नहीं है, यह बरसों की ट्रेनिंग के साथ आता है. छह महीने में उन्हें किस तरह का प्रशिक्षण मिलेगा?’
उन्होंने कहा, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक व्यक्ति (वे) क्या कहता है. पूरे देश को यह कहना चाहिए. देश को इसकी (अग्निपथ योजना की) बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.’
उन्होंने जोड़ा, ‘जिन लोगों ने योजना का फैसला लिया है, उन्हें सशस्त्र बलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. सेना के साथ खिलौनों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता. चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश इसका फायदा उठाएंगे. चीनी सैनिक हमारे क्षेत्रों में और घुसपैठ करेंगे.’
उल्लेखनीय है कि जून 1987 में सियाचिन में तैनात 8वीं जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री ने पाया था कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों ने ग्लेशियर पर घुसपैठ की थी. उन्हें बाहर निकालना आवश्यक लेकिन इ मुश्किल भरा काम था, इसलिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया गया था. तब सिंह- जो उस समय एक नायब सूबेदार थे- ने स्वेच्छा से इसमें शामिल होने की इच्छा जाहिर की थी.
दुश्मन की चौकी लगभग अभेद्य ग्लेशियर के किले की तरह थी जिसके दोनों ओर 457 मीटर ऊंची बर्फ की दीवारें थीं. इससे पाकिस्तानियों को 21,000 फीट ऊंचाई- जो क्षेत्र में भारतीय सेना बटालियन मुख्यालय से 5,000 फीट अधिक था- पर से ग्लेशियर पर स्पष्ट नजर रखने का रणनीतिक फायदा मिला था. सिंह ने दल की अगुवाई की थी और रेंगते हुए वहां पहुंचकर दुश्मन को घेरा था.
सिंह को हर साल गणतंत्र दिवस परेड और सेना दिवस समारोह में सेना के रोल मॉडल के तौर पर विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है.