नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)। अनुभवी फिल्मकार महेश भट्ट का कहना है कि ‘पीके’, ‘हैदर’, ‘गोलियों की रासलीला : राम-लीला’ और ‘ओएमजी-ओह माई गाड!’ जैसी फिल्मों को लेकर विरोध की वजह परंपरा है, जहां एक भारत के अंदर यहां कई अलग अलग भारत मौजूद हैं।
नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)। अनुभवी फिल्मकार महेश भट्ट का कहना है कि ‘पीके’, ‘हैदर’, ‘गोलियों की रासलीला : राम-लीला’ और ‘ओएमजी-ओह माई गाड!’ जैसी फिल्मों को लेकर विरोध की वजह परंपरा है, जहां एक भारत के अंदर यहां कई अलग अलग भारत मौजूद हैं।
उन्होंने कहा हर तरह की फिल्मों के बेरोक-टोक प्रदर्शन को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार पर है।
भट्ट ने आईएएनएस को मुंबई से फोन पर बताया, “इस बात से इंकार नहीं है कि यहां परंपरा महत्वपूर्ण बात है। तो एक ऐसे राष्ट्र में जहां परंपरा और परिवर्तन के विचार के बीच तगड़ा संघर्ष है और उसके ऊपर सेंसर बोर्ड का प्रमाण भी है, तो सरकार की यह जिम्मेदारी है कि फिल्म का प्रदर्शन किसी भी समूह की वजह से बाधित न हो।”
भट्ट से जब पूछा गया कि धर्म पर आधारित फिल्मों को क्यों देश के अंदर कुछ संप्रदायों की आलोचना झेलनी पड़ती है, तो उनका जवाब था, “यहां एक भारत के अंदर कई सारे भारत मौजूद हैं।”
कई बॉलीवुड फिल्मों पर धर्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए धार्मिक समूहों का आक्रोश सहना पड़ा है, जिनमें सबसे ताजा नाम अभिनेता आमिर खान की ‘पीके’ का है। फिल्म 19 दिसंबर को प्रदर्शित हुई थी, जिस पर हिंदू दक्षिणपंथी धड़े ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाकर विरोध किया था।
सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने वाले फिल्मकारों में अग्रणी रहे भट्ट ने यह भी कहा कि बहादुरी कपड़े उतारने या कामुक बनने में नहीं है, बल्कि स्वछंद भावना का पक्षधर बनने में है।
‘जख्म’ और ‘अर्थ’ जैसी अर्थपूर्ण फिल्में बना चुके भट्ट जल्द ही ‘खामोशियां’ लेकर आ रहे हैं, जो एक परालौकिक रहस्य-रोमांच से भरी फिल्म है। उनका कहना है कि फिल्म नई पीढ़ी की संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
भट्ट ने कहा, “बीते 3,000 सालों की तुलना में पिछले 10 सालों में देश में बहुत तेजी से बदलाव हुए हैं, तो जाहिर रूप से यह आवश्यक था कि हम ऐसी विषयवस्तु पर फिल्म बनाएं जो आज के लोगों को पसंद आए।”
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।