नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट फेडरेशन जैसे संगठनों की ओर से कहा गया है कि पीआईबी की भूमिका मीडिया को सरकारी समाचार प्रदान करने की बनी रहनी चाहिए. इसे मीडिया की निगरानी, सेंसर करने और सरकार के लिए असुविधाजनक किसी भी जानकारी को फ़र्ज़ी समाचार के रूप में पहचानने का काम नहीं सौंपा जा सकता है.
नई दिल्ली: नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स (एनएजे) और दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) ने बीते शनिवार को एक संयुक्त बयान में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियम, 2021 में मसौदा संशोधन और आपातकालीन शक्तियों के उपयोग कर 2002 के गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को प्रसारित करने के प्रयासों को रोकने के लिए केंद्र सरकार की निंदा की.
बयान में डीयूजे के अध्यक्ष एसके पांडेय और महासचिव, सुजाता मधोक; एनएजे के महासचिव एन. कोंडैया और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट फेडरेशन (एपीडब्ल्यूजेएफ) के महासचिव जी. अंजनेयुलू ने जोर देकर कहा कि प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) को मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए ‘पुलिस सूचना ब्यूरो’ में नहीं बदला जा सकता, जैसा कि आपातकाल के दौरान किया गया था.
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के एक मसौदा संशोधन में कहा कि पीआईबी की फैक्ट चेक इकाई द्वारा ‘फर्जी’ मानी जाने वाली किसी भी खबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित सभी प्लेटफॉर्म से हटाना होगा.
बयान में कहा गया है, ‘पीआईबी की भूमिका मीडिया को सरकारी समाचार प्रदान करने की बनी रहनी चाहिए. इसे मीडिया की निगरानी, सेंसर करने और सरकार के लिए असुविधाजनक किसी भी जानकारी को ‘फर्जी समाचार’ के रूप में पहचानने का काम नहीं सौंपा जा सकता है.’
पत्रकार संगठनों ने सरकार के इस कदम को ‘अफसोसनाक’ बताया है.
बयान में आगे कहा गया, ‘आधिकारिक सूचना तक मीडियाकर्मियों की पहुंच को सुविधाजनक बनाना पीआईबी का काम है. यह चौंकाने वाला है कि पीआईबी ने कथित तौर पर कुछ मौकों पर मान्यता प्राप्त विशेष संवाददाताओं को वह जानकारी देने से इनकार कर दिया है, जो वे सरकारी मामलों पर मांगते हैं.’
कई विपक्षी दलों ने भी आईटी नियम, 2021 के मसौदे में संशोधन की आलोचना कर उन्हें ‘अत्यधिक मनमाना और एकतरफा’ कहा है.
इसके अलावा बयान में कहा गया है कि आईटी नियमों में हालिया संशोधन न केवल पीआईबी बल्कि केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को यह अधिकार देता है कि वे आपत्ति जताने वाली खबरों को सोशल मीडिया कंपनियों हटाने की मांग कर सकते हैं.
बयान में कहा गया है कि यह छोटे, स्वतंत्र डिजिटल मीडिया को सेंसर करने के उद्देश्य से उठाया गया कदम लगता है.
पत्रकार संगठनों ने कहा कि वे विभिन्न विश्वविद्यालयों में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को प्रसारित करने की कोशिश करने के लिए छात्रों और उनकी यूनियनों पर बढ़ते हमलों से भी बहुत व्यथित हैं. इनके अनुसार, यह प्रेस के अधिकारों और स्वतंत्रता पर हमलों की निरंतरता का हिस्सा है.
मालूम हो कि बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पाया गया था.
साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुसलमानों के बीच तनाव की भी बात कही गई है. यह 2002 के फरवरी और मार्च महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में दावों की पड़ताल भी करती है, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी.
दो भागों की डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड, केंद्र में मोदी के सत्ता में आने के बाद – विशेष तौर पर 2019 में उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद – मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनकी सरकार द्वारा लाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की बात करता है.
मालूम हो कि इससे पहले आईटी नियमों में प्रस्तावित बदलाव को लेकर संपादकों की शीर्ष संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर उनसे आईटी नियमों में संशोधन को ‘हटाने’ का आग्रह किया था, जो सरकार की मीडिया शाखा ‘पत्र सूचना कार्यालय’ (पीआईबी) की फैक्ट चेकिंग इकाई द्वारा ‘फर्जी’ के रूप में पहचाने गए समाचार या सूचना को हटाने का निर्देश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को देता है.
बीते 18 जनवरी को भी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान में इस प्रस्ताव पर गहरी चिंता जताई थी. गिल्ड ने कहा था कि फर्जी खबरों का निर्धारण सिर्फ सरकार के हाथ में नहीं सौंपा जा सकता है, क्योंकि इसका नतीजा प्रेस को सेंसर करने के रूप में निकलेगा.
दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बीते 17 जनवरी को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम) के मसौदे में संशोधन जारी किया, जिसे पहले सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया गया था.
इसमें सोशल मीडिया पर गलत, फर्जी या भ्रामक सामग्री की पहचान का जिम्मा पीआईबी या किसी अन्य सरकारी एजेंसी को देने का जिक्र है. इसे ऑनलाइन मीडिया के एक हिस्से ने सरकारी नियंत्रण की कोशिश बताया है.
इसमें कहा गया है कि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की फैक्ट-चेकिंग इकाई द्वारा ‘फर्जी (फेक)’ मानी गई किसी भी खबर को सोशल मीडिया मंचों समेत सभी मंचों से हटाना पड़ेगा.
ऐसी सामग्री जिसे ‘फैक्ट-चेकिंग के लिए सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य एजेंसी’ या ‘केंद्र के किसी भी कार्य के संबंध में’ भ्रामक के रूप में चिह्नित किया गया है, उसे ऑनलाइन मंचों (Intermediaries) पर अनुमति नहीं दी जाएगी.
गौरतलब है कि 2019 में स्थापित पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई, जो सरकार और इसकी योजनाओं से संबंधित खबरों को सत्यापित करती है, पर वास्तविक तथ्यों पर ध्यान दिए बिना सरकारी मुखपत्र के रूप में कार्य करने का आरोप लगता रहा है.
मई 2020 में न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे कई उदाहरण बताए थे, जहां पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई वास्तव में तथ्यों के पक्ष में नहीं थी, बल्कि सरकारी लाइन पर चल रही थी.
नए संशोधन प्रस्ताव को लेकर विभिन्न मीडिया संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अलावा इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस), न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए), प्रेस एसोसिएशन, डिजीपब फाउंडेशन ऑफ इंडिया जैसे मीडिया संगठनों ने भी सरकार से संशोधन को वापस लेने की मांग की है.