भोपाल, 4 अप्रैल । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और ‘कर्मवीर’ के संपादक माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती मनाई। इस मौके पर न्यूज एंकर व वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने पत्रकारिता के छात्रों से कहा कि वे तकनीक को टूल की तरह तो उपयोग करें, मगर उसे ज्ञान का आधार कतई न बनाएं।
पुण्य प्रसून ने ‘तकनीक के दौर में मूल्यों की पत्रकारिता’ विषय पर विशेष व्याख्यान में अपनी बात रखी।
व्याख्यान के मुख्य अतिथि डॉ़ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ़ सुरेश आचार्य थे और अध्यक्षता कुलपति दीपक तिवारी ने की।
स्थानीय समन्वय भवन में गुरुवार को आयोजित व्याख्यान में बाजपेयी ने कहा कि तकनीक ने सूचनाओं का अंबार लगा दिया है। तकनीक ने परिवार और आपसी संबंधों को समाप्त कर दिया है। तकनीक ने संवाद के तरीकों को भी बदल दिया है। यहां तक कि उसने साहित्य सृजन को भी खत्म कर दिया है।
उन्होंने कहा कि आज की दिक्कत यह है कि तकनीक के जरिए आ रही सूचनाओं को ही हमने ज्ञान मान लिया है। भारत के भीतर तकनीक के जरिए फैक्ट रखे जा रहे हैं। उन्होंने अनेक उदाहरणों से समझाया कि डाटा आखिरी सच नहीं होता। पत्रकार को उस डाटा के पीछे जाना चाहिए। पत्रकार को सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण करना चाहिए।
बाजपेयी ने आगे कहा कि आज तकनीक का मतलब हमारे हाथ में स्मार्टफोन से है। स्मार्टफोन हमारी जरूरत बन गया है। उन्होंने कहा कि आज सत्ता और तकनीक के बीच पत्रकारों को खड़े होने की जरूरत है। भारत में तकनीक का विस्तार तो खूब हुआ है लेकिन पत्रकारों का विस्तार नहीं हुआ है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश आचार्य ने कहा कि भारत का अन्नदाता बहुत हिम्मतवाला है। उन्होंने कहा कि घर सबसे बड़ी पाठशाला है। यह देश निवृत्ति और प्रवृत्ति सहित सब प्रकार के विचार को समेटकर चलता है। इसलिए यहां लोकतंत्र अधिक ताकतवर है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति दीपक तिवारी ने कहा कि पत्रकारिता के विद्यार्थियों को सभी विचारधाराओं को पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि अच्छे विचार जहां से भी आएं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए।
कुलपति ने कहा, “विश्वविद्यालय ने अपनी 29 वर्ष की यात्रा में खूब विस्तार किया है, अब हम शिक्षा में गुणवत्ता के लिए कार्य करेंगे। आउटकम बेस्ड लर्निग पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार करेंगे, ताकि यहां से निकलने वाले विद्यार्थियों को आसानी से अवसर प्राप्त हों।”
दादा माखनलाल चतुर्वेदी का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को समझने के लिए दादा प्रतीक हैं। उन्होंने अपने जीवन के 12 वर्ष जेल में बिताए। माखनलाल ने जब ‘कर्मवीर’ का प्रकाशन शुरू किया तो उन्होंने अपने समाचार-पत्र के लिए आचार संहिता बनाई थी।