नई दिल्ली, 2 दिसम्बर (आईएएनएस)| संगीत में सुर सात होते हैं, लेकिन ताल की चाल अलग है, कोई गिनती नहीं है। लेकिन तबला वादक शरद दांडगे ने अपने नए प्रयोग का नाम पंचनाद रखा है, ‘ऊं पंचनाद’!
महाराष्ट्र के औरंगाबाद निवासी शरद का ‘पंचनाद’ संगीत में अपने तरह का अनोखा प्रयोग है, इसलिए भी कि वह 10 तबले और एक ढोल के माध्यम से देश के सभी ताल वाद्यों और कुछ विदेशी ताल वाद्यों की प्रस्तुति देते हैं और इस प्रयोग के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दो बार (2006, 2011), एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड (2011), इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड (2010) और वर्ल्ड अमैजिंग रिकॉर्ड्स (2011) में दर्ज हो चुका है।
शरद के ‘पंचनाद’ में दक्षिण के मृदंग, उत्तर की ढोलक और पखावज, पंजाब के ढोल, राजस्थान के नगाड़े जैसे 20 भारतीय ताल वाद्यों और पांच विदेशी ताल वाद्यों की थाप सुनी जा सकती है।
शरद (44) पिछले दिनों दिल्ली आए थे। भारत सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में हिस्सा लेने। इस दौरान आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने ‘पंचनाद’ के बारे में विस्तार से बातचीत की।
दांडगे ने कहा, “इस धरती पर जो कुछ है, सब पंचतत्व है, पंचतत्व में समाहित है, हम भी और संगीत भी।”
बकौल दांडगे वह अपने इस प्रयोग के माध्यम से देश के सभी राज्यों को एक सूत्र में पिरोना चाहते हैं, राष्ट्रीय एकता का संदेश देना चाहते हैं।
दांडगे ने कहा, “रिदम (ताल) संगीत की भाषा होती है। कोई व्यक्ति दुनिया की कोई भाषा भले न समझ पाए, लेकिन संगीत की भाषा समझने में किसी को कोई कठिनाई नहीं होती। धरती का संगीत एक है। संगीत वसुधव कुटुंबकम भी है।”
दांडगे ने आगे कहा, “अगर तबला उत्तर की कव्वाली, पंजाब की शब्दावली और दक्षिण के भजन में समां बांध सकता है तो हम एक-दूसरे से अलग कैसे हो सकते हैं।”
दांडगे ने पहली बार यह प्रयोग 2003 में किया था। तबले पर पांच वाद्य बजाए थे – पखावज, नाल, मृदंग, खंजीरी, ढोल।
उन्होंने कहा, “औरंगाबाद के देवगिरि कॉलेज में एक कंसर्ट था। विभिन्न ताल वाद्य बजाने वाले कलाकार उपलब्ध न हो पाने के कारण कार्यक्रम रद्द होने की नौबत आ गई। फिर मैंने तबले से ही सभी वाद्य बजाने की कोशिश की।” शरद की इस कोशिश को अपार सराहना मिली। फिर क्या, शरद इस प्रयोग में नई कड़ियां जोड़ते गए।
शरद के इस प्रयोग की आवाज टाइम्स म्यूजिक तक पहुंची, और संगीत कंपनी ने ‘पंचनाद’ की सीडी बाजार में उतारी, जिसे संगीत प्रेमियों का अच्छा प्रतिसाद मिला है।
वाराणसी के प्रसिद्ध तबलावादक पंडित प्रकाश महाराज (अब दिवंगत) के शिष्य दांडगे कहते हैं, “पाश्चात्य संगीत हावी हो रहा है। ऐसे में स्वदेशी संगीत में नए प्रयोग की जरूरत है, ताकि श्रोताओं का रुझान भारतीय संगीत के प्रति बना रहे।”
दांडगे अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरुओं, और मित्रों को देते हैं, जिन्होंने अपनी सीखों, आलोचनाओं के जरिए उन्हें तराशा, निखारा।
दांडगे को तबले से परिचय उनके दादाजी ने कराया था। इसलिए वह अपना प्रथम गुरु दादाजी को ही मानते हैं। लेकिन तबले की विधिवत बारीकियां उन्होंने वाराणसी जाकर प्रकाश महाराज से सीखी।
दांडगे ने पंचनाद के माध्यम से दुनिया के सात अजूबों में ताज को अहम स्थान दिलाने के लिए एसएमएस के जरिए अधिक से अधिक वोट जुटाने का प्रयास किया था।
दांडगे ने 2007 के क्रिकेट विश्व कप के दौरान पंचनाद के जरिए भारतीय टीम का उत्साह बढ़ाया था। उन्होंने सचिन के लिए तबले पर लांवणी के साथ बजने वाली ढोलकी नाल बजाई, धोनी के लिए ढोल, अनिल कुंबले के लिए मृदंग और सौरव गांगुली के लिए बंगाली खोल बजाई थी।
दांडगे अपने प्रयोग को यहीं तक सीमित नहीं रखना चाहते। वह इसमें देश में लुप्त हो रहे ताल वाद्यों को भी अपने तबले के माध्यम से जुबान देना चाहते हैं, वह इसमें जुटे हुए हैं।