नई दिल्ली, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। ऊंची अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन और इसके लिए संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई अब सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ में होगी।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे, न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर तथा न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की पीठ ने मंगलवार को आयोग की वैधता और संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे बड़ी पीठ के पास स्थानांतरित कर दिया। पीठ ने कहा कि चूंकि उन्होंने यह मामला बड़ी पीठ के हवाले कर दिया है, इसलिए इसमें अंतरिम राहत का फैसला भी उसी पीठ द्वारा लिया जाएगा।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने चुनौती दी है। इस संबंध में दो याचिकाएं दायर की गई हैं।
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं चयन को लेकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता का हनन है। उनका यह भी कहना है कि यह अधिनियम अगस्त 2014 में पारित नहीं किया जा सका, क्योंकि संविधान में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं था। यह 31 दिसंबर के बाद लागू हुआ, जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संविधान संशोधन के लिए सहमति जताई।
दूसरी ओर, सरकार ने याचिकाओं के औचित्य पर सवाल खड़े करते हुए इन्हें अपरिपक्व तथा अकादमिक करार दिया और कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन के संबंध में अब तक न तो संवैधानिक प्रावधानों को अधिसूचित किया गया है और न ही यह अमल में लाया गया है।
सरकार ने दलील दी थी कि जब तक आयोग का कामकाज शुरू नहीं हो जाता और किसी के अधिकार प्रभावित नहीं होते, उनकी वैधानिकता को चुनौती देने का कोई कारण नहीं बनता।
उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन को सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन, गैर सरकार संगठन चेंज इंडिया, सेंटर फॉर पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन, बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया तथा अन्य ने चुनौती दी थी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के जरिए उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की निुयक्ति का समर्थन किया है।