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नोटबंदी का मकसद सांस्थानिक पवित्रीकरण : विवेक देवरॉय (साक्षात्कार)

नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। नीति आयोग के सदस्य विवेक देवरॉय मानते हैं कि नोटबंदी (विमुद्रीकरण) से देश के आर्थिक विकास की रफ्तार को आघात पहुंचा, लेकिन उनका कहना है कि यह आघात क्षणिक था और अर्थव्यवस्था में अब सुधार दिखने लगी है।

नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। नीति आयोग के सदस्य विवेक देवरॉय मानते हैं कि नोटबंदी (विमुद्रीकरण) से देश के आर्थिक विकास की रफ्तार को आघात पहुंचा, लेकिन उनका कहना है कि यह आघात क्षणिक था और अर्थव्यवस्था में अब सुधार दिखने लगी है।

नोटबंदी के एक साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों में बतौर सलाहकार की भूमिका में रहे देवरॉय कहते हैं कि सबसे खराब समय बीत गया है और अब सुधार के संकेत दिखाई देने लगे हैं।

आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण को लागत-लाभ के आकलन की संकीर्ण मानसिकता से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह ‘सांस्थानिक पवित्रीकरण’ के उद्देश्य से उठाया गया एक कदम था।

देवरॉय ने कहा, “आंकड़े देखने पर आप पाएंगे कि आर्थिक विकास दर लगतार नीचे जा रही है। मैंने कोई आंकड़ा नहीं देखा है, दूर के आंकड़े भी नहीं जो बताते हैं कि विमुद्रीकरण से क्षणिक आघात से ज्यादा विकास को बल मिला है।” देवरॉय हाल ही में प्रधानमंत्री की ओर से फिर से गठित आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख हैं।

उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण को महज आर्थिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। उनका कहना था कि जब हम इसे सिर्फ आर्थिक नजरिये से देखेंगे, तो हम निश्चित रूप से इसमें लागत व लाभ की बात करते हैं, लेकिन राजनीतिक नजरिये से देखने पर तंत्र की शुचिता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं इसे कुछ अलग तरह से देखता हूं।

देवरॉय ने कहा कि विशुद्ध आर्थिक बात करें तो ज्यादा इंतजार करने की जरूरत नहीं है विमुद्रीकरण के बाद के प्रत्यक्ष कर संग्रह के आंकड़े आएंगे जिससे इसके असर समझ में आ जाएंगे।

उनका कहना था कि पिछले साल तक सिस्टम में अत्यधिक नकदी प्रचलन में थी, लेकिन विमुद्रीकरण के बाद जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात काफी कमी आई है और यह घटकर एक तिहाई रह गई है।

उन्होंने कहा कि विकसित देशों से मैं तुलना नहीं करता हूं। लेकिन भारत में दक्षिण एशिया के देशों की तुलना में भी ज्यादा नकदी प्रचलन में थी।

उनके मुताबिक , 2015 में नकदी-जीडीपी का अनुपात जहां बांग्लादेश में 5.8 फीसदी, श्रीलंका में 3.5 और पाकिस्तान 9.3 फीसदी था वहीं भारत में 13 फीसदी था।

देवरॉय अपने सहयोगी किशोर अरुण देसाई के साथ भ्रष्टाचार के प्रचलन और समाज व अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों का मूल्यांकन करते हुए लिखे गए विभिन्न लेखकों के आलेखों संकलन कर इसे ‘ऑन द ट्रेल ऑफ द ब्लैक’ नाम से एक पुस्तक का आकार प्रदान किया है।

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