(खुसुर-फुसुर)— भोपाल मध्य के एक छुटभैय्ये स्वयंभू नेता जी जिनके पास कोई कार्य नहीं था तो ठलुओं के साथ बैठते-बैठते वे नेता बन गए,जब बन गए तो आस जागी और पहले पार्षद फिर विधायक के ख़ास बन गए,विधायक जी भी कुछ महीनों पहले नेताजी के जन्मदिन में आये जो रोड पर ही मनाया गया और उसकी उधारी अभी तक नहीं चुकी है खैर विधायक जी ने नेताजी को आगामी पार्षद प्रत्याशी घोषित कर दिया नेता जी ने इस कार्य के लिए सबसे प्रिय वस्तु यानी शराब का परित्याग कर दिया क्योंकि उन्हें लगा की उनकी छवि खराब हो रही है.
लेकिन इस राजनीति ने उन्हें दुखी कर दिया जब पार्षद प्रत्याशी की घोषणा हुई तो कोई और ही नाम था,और वह नाम दिन में भी टल्ली में रहता है,सब की फिकरेबाजियों से बचने के लिए नेताजी पलायन कर गए और अब कहाँ हैं किसी को नहीं पता.सुना है गम गलत करने के लिए गला तर कर रहे है,ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे की ये राजनीति है भैय्या.