कोलकाता, 21 जनवरी (आईएएनएस)। केंद्र सरकार नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 120वीं जयंती (23 जनवरी) पर उनसे जुड़ी गुप्त फाइलों को सार्वजनिक करने की तैयारी में है। इस बीच उन तमाम लोगों के बीच दावों-प्रतिदावों की बाढ़ आई हुई है जो नेताजी के आकस्मिकनिधन से जुड़े रहस्यों पर अलग-अलग राय रखते हैं।
कोलकाता, 21 जनवरी (आईएएनएस)। केंद्र सरकार नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 120वीं जयंती (23 जनवरी) पर उनसे जुड़ी गुप्त फाइलों को सार्वजनिक करने की तैयारी में है। इस बीच उन तमाम लोगों के बीच दावों-प्रतिदावों की बाढ़ आई हुई है जो नेताजी के आकस्मिकनिधन से जुड़े रहस्यों पर अलग-अलग राय रखते हैं।
एक थ्योरी कहती है कि नेताजी का निधन 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में एक विमान हादसे में हुआ था। इस बात को न मानने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है। इनमें केंद्र गठित मुखर्जी आयोग भी है।
कुछ लोग कहते हैं कि नेताजी उत्तर प्रदेश में 1985 तक ‘गुमनामी बाबा’ नामक साधु के रूप में रहे। कुछ कहते हैं कि उन्होंने विमान हादसे में अपनी मौत की कहानी खुद गढ़ी थी और वह तत्कालीन सोवियत संघ चले गए थे।
अब ब्रिटेन स्थित वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट बोसफाइल्स डॉट इन्फो ने एक पूरी श्रृंखला इस थ्योरी के पक्ष में दी है कि नेताजी का निधन विमान हादसे में हुआ था। नेजाती के परिजन, इतिहासकार और शोधार्थी वेबसाइट के इन सनसनीखेज दावों के समय और उद्देश्य पर सवाल उठा रहे हैं।
वेबसाइट को बनाने वाले आशीष रे लंदन स्थित पत्रकार और नेताजी के रिश्तेदार हैं। उन्होंने पांच ऐसे लोगों द्वारा दिए गए सबूतों का उल्लेख वेबसाइट पोस्ट में किया है जो नेताजी के आखिरी वक्त में उनके साथ थे। इनमें नेताजी का इलाज करने वाले दो जापानी डॉक्टर और एक ताइवानी नर्स, नेताजी के निजी अनुवादक और अभिन्न सहयोगी कर्नल हबीबुर रहमान खान शामिल हैं।
लेकिन, रे के दावों को नेताजी के परिजनों द्वारा गठित मंच ‘ओपेन प्लेटफार्म’ और एक स्वयंसेवी संस्था ‘मिशन नेताजी’ ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है।
मिशन नेताजी के प्रमुख अनुज धर हैं। उन्होंने नेताजी की गुमशुदगी पर कई किताबें लिखी हैं। उनका कहना है कि वेबसाइट के खुलासे ‘घिसे-पिटे, मामूली और यहां तक कि गुमराह करने वाले हैं।’
धर का कहना है कि नेताजी के बारे में रहस्य के बने रहने के लिए कांग्रेस की सरकारें जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा, “खुलासे (वेबसाइट के) 1956 की शाहनवाज खान कमेटी की बेकार रिपोर्ट पर आधारित हैं। खान एक कांग्रेस सांसद थे और उन्होंने कांग्रेस सरकार को खुश करने वाली रिपोर्ट दी थी। डॉक्टरों की बातें उस ब्रिटिश सैन्य अफसर जेजी फिगेस की रिपोर्ट से ली गई हैं, जिसका चरित्र विश्वसनीय नहीं है।”
धर ने कहा कि फिगेस ने 1946 में रिपोर्ट दी थी कि नेताजी और आईएनए के कोषाध्यक्ष की मौत विमान हादसे में हुई है। ऐसा साबित करने में उसे सर्वाधिक लाभ था। ऐसी भी बातें सामने आई थीं, जिनसे संकेत मिला था कि फिगेस और कुछ अन्य समर्थकों ने आईएनए के खजाने को लूटा था।
नेताजी के रिश्तेदार और ओपेन प्लेटफार्म मंच के संयोजक चंद्र कुमार बोस ने वेबसाइट के खुलासों के समय पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि यह फाइलों को सार्वजनिक करने के अभियान को पटरी से उतारने की कोशिश है।
चंद्र कुमार ने कहा, “फाइलों के सार्वजनिक होने से कई लोगों के राज पर से पर्दे हटेंगे। इसी डर से इसे रोकने की कोशिश हो रही है। रे के खुलासों का मकसद सच्चाई को सामने आने से रोकना है।”
धर का मानना है कि उत्तर प्रदेश के फैजबाद में नेताजी भेस बदलकर गुमनामी बाबा के रूप में रह रहे थे। लेकिन, इस बात के मुखर विरोधी भी कम नहीं हैं। नेताजी की रिश्तेदार माधुरी बोस ने कहा कि नेताजी अपनी मातृभूमि की सेवा करने के बजाय संन्यास को कभी नहीं चुनते। नेताजी ने खुद अपनी किताब ‘पेबल्स ऑन द सीशोर’ में लिखा है कि जब देश को आपकी जरूरत हो और आप संन्यास ले लें तो फिर यह और कुछ नहीं, बल्कि विश्वासघात का एक परिष्कृत रूप ही है।
मोदी सरकार 23 जनवरी से नेताजी से जुड़ी गुप्त फाइलों को चरणबद्ध रूप से सार्वजनिक करने जा रही है। कई लोगों का कहना है कि जब तक विदेशी खुफिया एजेंसियों, खासकर तत्कालीन सोवियत संघ की केजीबी और ब्रिटिश एमआई5 की नेताजी से संबद्ध फाइलें सार्वजनिक नहीं होंगी, तब तक नेताजी का निधन एक रहस्य बना रहेगा।
कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि नेताजी की फाइलों को सार्वजनिक करने की मुहिम शुरू होने से काफी पहले ही बेहद अहम सबूतों को अपने में समेटे कई गोपनीय फाइलें नष्ट हो चुकी हैं। ऐसे में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के इर्द-गिर्द पड़ा रहस्य का पर्दा शायद ही कभी हट पाए।