छत्तीसगढ के रायगढ जिले में एक ऎसा गांव स्थित है, जहां अब तक एक भी ग्रामीण की मौत सर्प दंश से नहीं हुई है। अब इसे आस्था कहें या दोस्ती, ग्रामीण और जहरीले सर्प घर के अंदर एक साथ रहते हैं और दोनों एक-दूसरे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते
रायगढ जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर पुसौर विकासखंड क्षेत्र में स्थित गांव सोडेकेला एक ऎसा ‘नागलोक’ है, जहां बारिश की बूंदें पडते ही गांव के अंदर ही नहीं, बल्कि हर घर में नाग विचरण करने लगते हैं। रोचक बात यह है कि इस गांव में अब तक एक भी सर्पदंश का गंभीर मामला नहीं देखा गया है। गौरतलब है कि जिले के इस क्षेत्र में सर्वाधिक तौर पर नाग व अन्य जहरीले सर्प पाए जाते हैं। ग्रामीणों के अनुसार यहां कोई भी सांप से नहीं डरता और बच्चे भी उन्हें अपना साथी ही समझते हैं।
ग्रामीणों का मानना है कि इस क्षेत्र में भगवान शिव की विशेष कृपा है। यही कारण है कि आजकल अन्य क्षेत्रों में जहां नाग के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं, वहीं इस क्षेत्र में भारी संख्या में नागों का वास है। ग्रामीण इन नागों को अपने इष्ट देव का रूप मानते हैं। बारिश की बूंद के साथ जब ये बाहर निकलते हैं, तो ग्रामीण इनकी पूजा करके इन्हें दूध पिलाते हैं। क्षेत्र के कई ग्रामीण इसे आस्था का प्रतीक मानते हैं तो कई दोस्ताना संबंध।
सपेरों पर है प्रतिबंध
‘नागलोक’ के नाम से जाने जाने वाले इस गांव में पहले कई बार सपेरों ने सांप पकडने के प्रयास किए, लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें गांव से बाहर खदेड दिया। क्षेत्र के लोगों का मानना है कि सपेरे इन सर्पों को पकडकर अपना व्यवसाय करेंगे, जो उन्हें मंजूर नहीं है। क्षेत्र के लोग इन सर्पो को अपना भगवान मानते हैं और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट होते नहीं देख सकते।
आस्था का रूप
सोडेकेला निवासी लोचन साव का कहना है कि पडोसी गांव में भी भारी मात्रा में नाग और अन्य सर्प थे, लेकिन ग्रामीणों द्वारा नुकसान पहुंचाने से वहां संख्या कम हो गई। हेमसागर साव व पुनीराम सारथी का कहना है कि जिले में इस क्षेत्र में सर्वाधिक सर्प पाए जाते हैं। ग्रामीण इसे आस्था का रूप मानते है और यही कारण है कि वे किसी को नुकसान नही पहुंचाते। अन्य ग्रामीणों का भी कहना है कि दुर्लभ प्रजाति के नाग इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिन्हें वे भगवान शिव का रूप मानते हैं।