भोपाल, 31 जुलाई (आईएएनएस)। हिंदू समाज की आस्था का केंद्र और जीवनदायिनी नर्मदा नदी में जारी उत्खनन, बढ़ते प्रदूषण और दोहन को लेकर पर्यावरण और नर्मदा प्रेमियों में लगातार नाराजगी बढ़ती जा रही है। उनका कहना है कि अगर नर्मदा का दोहन इसी तरह होता रहा तो यह नदी दूसरी यमुना बन जाएगी।
भोपाल, 31 जुलाई (आईएएनएस)। हिंदू समाज की आस्था का केंद्र और जीवनदायिनी नर्मदा नदी में जारी उत्खनन, बढ़ते प्रदूषण और दोहन को लेकर पर्यावरण और नर्मदा प्रेमियों में लगातार नाराजगी बढ़ती जा रही है। उनका कहना है कि अगर नर्मदा का दोहन इसी तरह होता रहा तो यह नदी दूसरी यमुना बन जाएगी।
वे सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं और उन्हें लगने लगा है कि सरकारें समाज और आस्था से आगे उद्योगपतियों और माफियाओं को ही बढ़ावा देने में लगी हैं।
ज्ञात हो कि नर्मदा नदी देश की उन नदियों में से एक है जिस पर कई बांध बनाए गए और यह क्रम आगे भी जारी है। इतना ही नहीं क्षिप्रा को प्रवाहमान बनाने के लिए नर्मदा के जल को लगभग 115 किलोमीटर तक पंप करके ओंकारेश्वर से उज्जैनी तक लाया गया।
इसके अलावा कई उद्योग लगातार नर्मदा के पानी का दोहन करने में लगे हैं। इन स्थितियों के चलते नर्मदा का प्रवाह लगातार कम हो रहा है।
नर्मदा नदी के जारी दोहन पर नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर ने तो यहां तक कह दिया कि ‘नर्मदा नदी को वेश्या बना दिया गया है और उसका उपभोग कंपनियों द्वारा किया जा रहा है।’
मेधा ने आगे कहा कि अगर यही हाल रहा तो नर्मदा दूसरी यमुना बन जाएगी। पहले नर्मदा का पानी क्षिप्रा में मिलाया गया और अब गंभीर से जोड़ने की योजना है। इससे सीधा असर नर्मदा पर ही पड़ने वाला है।
वहीं दूसरी ओर, 172 करोड़ लीटर पानी नर्मदा से कंपनियों को दिया जा रहा है। वहीं सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाकर हजारों लोगांे के जीवन को संकट में डालकर कंपनियों की पानी की जरूरत की कोशिशें जारी हैं। सरकार का यह चेहरा जनविरोधी है।
यहां बताना लाजिमी होगा कि राज्य सरकार ने उज्जैन में सिंहस्थ के लिए क्षिप्रा नदी को प्रवाहमान बनाने के लिए 432 करोड़ रुपये की नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना अमल मे लाई।
इसके तहत ओंकारेश्वर परियोजना से नर्मदा जल को चार बार पंप करके क्षिप्रा में मिलने के लिए उज्जैनी तक लाया गया। राज्य सरकार की आगामी योजना गंभीर व पार्वती नदियों में भी नर्मदा का जल मिलाने की है।
जलपुरुष के नाम से चर्चित राजेंद्र सिंह ने भी नर्मदा को क्षिप्रा से जोड़ने पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने इसे अव्यावहारिक और नदी के मूल चरित्र को प्रभावित करने वाली पहल करार दिया।
उनका मानना रहा है कि नदियों के संग्रहण क्षेत्र को बढ़ाने के लिए उनमें कुंड बनाए जाना चाहिए, न कि नदियों को जोड़ने की कोशिश हो।
सरकार की इन कोशिशों पर जल-जन जोड़ो अभियान के संयोजक और सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि देश की सबसे ज्यादा प्रवाहमान नदी नर्मदा के क्षेत्र में उत्खनन, उद्योगों के नाले मिलने और दोहन का दौर जारी रहा तो आने वाली पीढ़ी को हम नर्मदा को नदी नहीं नाले की शक्ल में सौंपेंगे।
सरकारों को नदियों की संग्रहण क्षमता और उन्हें प्रवाहमान बनाने के लिए कोशिशें करना चाहिए, न कि एक नदी का जल दूसरे में पहुंचाया जाए।
नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए 17 माह तक सत्याग्रह करने वाले नर्मदा मिशन के संस्थापक भैयाजी सरकार का कहना है कि नर्मदा हमारी आस्था का केंद्र है, इसको लेकर किसी तरह के अमर्यादित शब्दों (मेधा पाटकर की टिप्पणी पर) के प्रयोग से बचना चाहिए।
उन्होंने स्वीकारा कि यह बात सही है कि नर्मदा का दोहन हो रहा है, उसके संरक्षण और संवर्धन के प्रयास जरुरी है। राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संरक्षण और संवर्धन की पहल का वादा किया है, उसके लिए इंतजार करना चाहिए।
मुख्यमंत्री चौहान ने पिछले दिनों नर्मदा के संरक्षण और संवर्धन के लिए 1500 करोड़ रुपये की योजना का जिक्र करते हुए कहा था कि नर्मदा के दोनो तटों पर पौधरोपण किया जाएगा और गंदे नालों को मिलने से रोकने के प्रयास होंगे।