चेन्नई, 2 जून (आईएएनएस)। तमिलनाडु में फिर से उठे हिंदी विरोध के बीच विशेषज्ञों ने सरकार को आगाह किया है कि उसे पहले शिक्षा से जुड़ी मूलभूत बातों पर ध्यान देना चाहिए, इसके बाद गैर हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने जैसी गौण बातों की फिक्र करनी चाहिए।
के. कस्तूरीरंगन समिति ने हाल में केंद्र सरकार को सौंपे अपने राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले को लागू करने का सुझाव दिया है। इसके खिलाफ तमिलनाडु में राजनैतिक दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है।
कस्तूरीरंगन समिति ने राज्यों को हिंदीभाषी और गैर हिंदीभाषी में बांटा है और सुझाव दिया है कि गैर हिंदीभाषी राज्यों में त्रिभाषा प्रणाली के तहत अंग्रेजी और राज्य की क्षेत्रीय भाषा के साथ हिंदी पढ़ाई जानी चाहिए। समिति ने सुझाव दिया है कि हिंदीभाषी राज्यों में हिंदी और अंग्रेजी के साथ देश के अन्य हिस्सों की आधुनिक भारतीय भाषाओं में से किसी एक को पढ़ाया जाए।
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के पूर्व सदस्य और अन्ना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ई. बालागुरुसामी ने आईएएनएस से कहा, “आधुनिक भारतीय भाषा क्या है? क्या इसका मतलब यह है कि तमिल एक क्लासिकल भाषा होने के कारण हिंदीभाषी राज्यों में नहीं पढ़ाई जा सकती? यह सब बातें हिंदी थोपने के बहाने मात्र हैं।”
तमिलनाडु सरकार द्वारा स्कूली शिक्षा पर गठित उच्चस्तरीय समिति के सदस्य बालागुरुसामी ने कहा, “मैं हिंदी का विरोध नहीं कर रहा हूं। विद्यार्थियों के पास इस बात का विकल्प होना चाहिए कि वह सिर्फ हिंदी नहीं, जो भी भारतीय भाषा चुनना चाहें, चुन सकें।”
उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार कहे कि उत्तर, पूरब और पश्चिमी राज्य अपने विद्यार्थियों को एक-एक दक्षिण भारतीय भाषा पढ़ाएंगे, तब हम भी कहेंगे कि हिंदी पढ़ाई जा सकती है।”
उन्होंने कहा कि सरकार और इसकी नीतियों का फोकस शिक्षा की गुणवत्ता पर होना चाहिए, इस बात पर नहीं कि किसी विद्यार्थी को कौन सी भाषा पढ़नी चाहिए।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदा समिति का अध्यक्ष किसी शिक्षाविद को होना चाहिए था न कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के पूर्व चेयरमैन कस्तूरीरंगन को।
स्टेट प्लेटफॉर्म फॉर कॉमन स्कूल सिस्टम तमिलनाडु के महासचिव प्रिंस गजेंद्र बाबू ने आईएएनएस से कहा, “एक बच्चा जितनी चाहे, उतनी भाषा सीख सकता है लेकिन इसके लिए कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए। उस भाषा को सीखने का क्या तुक जिसका कोई इस्तेमाल उस वातावरण में होता ही नहीं है जिसमें बच्चा रहता है।”
उन्होंने कहा कि सरकार को सबसे पहले देश में सार्वभौम शिक्षा के लिए सभी को समान अवसर और धन पहुंचाना सुनिश्चित करना चाहिए।
केंद्र ने शनिवार को स्पष्ट किया कि त्रिभाषा फार्मूला एक सिफारिश मात्र है, कोई नीति नहीं। सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने भी कहा कि समिति ने नई शिक्षा नीति पर अपनी रिपोर्ट सौंपी है। सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है।
पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री जावडेकर ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं को प्रमुखता दी जाएगी।