लखनऊ, 19 दिसंबर – भारत में हिंदू धर्म से संबंधित साहित्यों का प्रकाशन करने वाली सबसे बड़ी कंपनी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। धार्मिक साहित्यों का देश का सबसे बड़ा, पुराना, विश्वसनीय और प्रामाणिक गीता प्रेस हड़ताल और अनिश्चिकालीन बंद का सामना कर रहा है। वर्ष 1923 से धार्मिक साहित्यों का लगातार प्रकाश करने वाला गीता प्रेस मजदूरों से संबंधित मामलों के कारण अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है।
गीता प्रेस ऐसे समय में बंद हुआ है, जब नरेंद्र मोदी विदेशी नेताओं को गीता भेंट कर रहे हैं और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने के लिए आवाज उठा चुकी हैं।
पहचान जाहिर न करने की शर्त पर प्रबंधन के एक सदस्य ने आईएएनएस से कहा, “गीता प्रेस, गोविंद भवन कार्यालय की एक इकाई है, जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है। इसे सनातन धर्म, हिंदू धर्म को बढ़ावा देने तथा उसके प्रसार के लिए स्थापित किया गया था। यह गीता, रामायण, उपनिषद, पुरान, प्रख्यात संतों के विचार, चरित्र निर्माण संबंधी पुस्तकों तथा पत्रिकाओं का प्रकाशन करता है तथा उनका विपणन बेहद रियायती कीमत पर करता है।”
गोरखपुर जिला स्थित प्रेस को बंद करने पर निराशा प्रकट करते हुए अधिकारी ने कहा कि वीरेंद्र सिंह, राम जीवन शर्मा तथा मुनीवर मिश्रा को साथी कर्मचारियों को भड़काने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया है।
अधिकारी ने कहा, “तीनों कर्मचारियों को बर्खास्त करने तथा प्रेस को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने के फैसले से जिला प्रशासन, पुलिस तथा राज्य के श्रम विभाग को अवगत करा दिया गया है।”
इन वर्षो के दौरान 37 करोड़ गीता, रामायण, भागवत, दुर्गा सप्तशती, पुराण, उपनिषद, भक्त गाथा तथा अन्य चरित्र निर्माण संबंधित पुस्तकें संस्कृत, हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, बांग्ला, उड़िया, तेलुगू, कन्नड़ तथा अन्य क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में बेहद कम कीमत पर बेची जा चुकी हैं।
संस्थान के मासिक प्रकाशन हिंदी में कल्याण तथा अंग्रेजी में कल्याण-कल्पतरू तीन लाख ग्राहकों के साथ यह देश का सबसे बड़ा ग्राहक वर्ग रखने वाली धार्मिक पत्रिकाएं हैं।
श्रीमद्भागवतगीता के विभिन्न संस्करणों की 11.5 करोड़ प्रतियां, गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस तथा अन्य काव्यों की 9.22 करोड़ प्रतियां, उपनिषद तथा प्राचीन ग्रंथ की 2.27 करोड़ प्रतियां, बच्चों तथा महिलाओं के लिए खासकर छोटी-छोटी किताबों की 10.05 करोड़ प्रतियां, भक्त गाथा (संतों की जीवनी) तथा भजन की 12.24 करोड़ प्रतियां अब तक बेची जा चुकी हैं।
गीता प्रेस प्रकाशन की अब तक 58.25 करोड़ पुस्तकें बिक चुकी हैं।
कर्मचारियों के एक नेता ने कहा कि हड़ताल पर जाना हमारे लिए पीड़ादायक है। उन्होंने प्रबंधन को निरंकुश तथा उनकी मांगों को अनदेखी करने वाला करार दिया।
एक नेता ने कहा, “हम हर वर्ष अपने वेतन में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी, 30 दिनों की पेड लीव तथा 20 फीसदी मकान किराया भत्ता चाहते हैं। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों ने 1982 में भी हड़ताल की थी, जो लगातार 44 दिनों तक चली थी।”