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 धार्मिक उत्सवोंका वर्तमान स्वरूप | dharmpath.com

Tuesday , 15 April 2025

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धार्मिक उत्सवोंका वर्तमान स्वरूप

th (1)१. धार्मिक उत्सवोंका वर्तमान स्वरूप मनुष्य उत्सवप्रिय है और मूलत: व्यक्तिगत स्वरूपमें मनाए जानेवाले कई त्यौहारों, उत्सवोंको आज सार्वजनिक उत्सवोंका स्वरूप प्राप्त हुआ है । उत्सवोंको सामाजिक रीतिसे मनानेका उद्देश्य अच्छा है; परंतु देखनेमें आता है, कि इसमें आज अनेक बुराईयां आ गई हैं । उत्सवोंमें समाजके भिन्न घटक एकत्रित होते हैं । ऐसेमें केवल धार्मिक विधिकी ओर लक्ष्य केंद्रित नहीं होता, बल्कि बाह्य सजावट, सामाजिक संदर्भ इत्यादिकी ओर ध्यान जाता है । वास्तवमें उत्सवोंका उद्देश्य तो धार्मिक विधि है; इसीपर अपना लक्ष्य केंद्रित करना आवश्यक है । आज मनाए जा रहे उत्सवोंमें दुर्भाग्यवश इसपर अनदेखी की जाती है । अत: वर्तमान उत्सवोंमें हो रही अनिष्ट घटनाओंका स्वरूप व सार्वजनिक धार्मिक उत्सव मनानेकी योग्य पद्धति यहां दे रहे हैं ।

२. वर्तमान उत्सवोंमें हो रही अनिष्ट घटनाएं उत्सवके बहाने किया जानेवाला क्लेशदायक निधिसंकलन :

२.१ चंदा देनेवालोंपर दबाव कई बार उत्सवमंडलोंके कार्यकर्ता चंदा देनेवालोंपर दबाव डालते हैं । ऐसे कार्यकर्ता उन दानकर्ताओंकी कोई बात सुननेको तैयार नहीं होते । प्राय: चंदा देनेकी स्थितिमें न होते हुए भी जबरन देना पड़ता है । स्वाभाविक है, कि इससे लोगोंकी भावनाओंको ठेस पहुंचती है । उत्सवके बहाने ज़बरदस्ती की जाती है, एक प्रकारसे दानकर्ताओंपर उत्सव लादा जाता है ।

२.२ समाजविघातक कृत्य करनेवालोंसे निधि एकत्रित कर उत्सव मनाना अधिक मात्रामें काला धन कमानेवाले, पर्यावरणका नाश करनेवाले, शराब तथा गुटकाकी बिक्री करनेवाले लोग, उत्सवके बहाने उत्सव मंडलोंको बड़ी धनराशि देकर प्रतिष्ठा और पुण्य प्राप्त करनेके प्रयत्न करते हैं । उत्सवका बहाना बनाकर सिगरेट, गुटका जैसे अमली पदार्थोंके व्यापारी या उत्पादक अपने उत्पादोंके विज्ञापन देते हैं । इन विज्ञापनोंके संदेशद्वारा समाजमें अमली पदार्थोंका व्यसन बढ़ानेमें सहायता होती है । इस प्रकार अयोग्य मार्गोंद्वारा प्राप्त धनसे या केवल व्यावसायिक उद्देश्योंको साध्य करनेके दृष्टिकोणसे मनाया जानेवाला उत्सव, भगवानको कभी स्वीकार नहीं होता ।

२.३ मूर्तिशास्त्रका विचार न करना अध्यात्मशास्त्रकी दृष्टिसे प्रत्येक देवता एक विशिष्ट तत्त्व हैं । शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा तत्संबधित शक्ति एकत्रित होते हैं, इस सिद्धांतानुसार मूर्तिविज्ञानपर आधारित योग्य मूर्ति बनाएं, तो देवताकी उस मूर्तिमें उनके विशिष्ट तत्त्व आकृष्ट होते हैं । जो मूर्ति इस सिद्धांतका पालन किए बिना बनाई जाए, उसमें देवताके तत्त्व आकृष्ट नहीं होते । परिणामत: अध्यात्मशास्त्रकी दृष्टिसे मूर्तिके प्रति भावना रखनेवाले भक्तको लाभ नहीं हो पाता । मूर्तिविज्ञानकी ओर दुर्भाग्यवश कोई ध्यान नहीं दिया जाता; लोग अपनी पसंद और कल्पना-सौंदर्यपर ही ज़ोर देते हैं; विभिन्न आकारों, रूपोंकी मूर्तियोंका पूजन करते हैं । गणेशोत्सवमें प्राय: यही देखा जाता है ।

२.४ हीन तथा अभिरुचिहीन कार्यक्रमोंका प्रस्तुतीकरण वर्तमानमें उत्सवके बहाने सिनेमा, वाद्यवृंद, रिकार्ड-डांस इत्यादि कार्यक्रम बहुत अधिक मात्रामें प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनका भारतीय संस्कृतिसे कोई संबंध ही नहीं होता । बहुत निकृष्ट स्तरके, बचकाने और अनेक बार कामुक गीत आजकल ऊंची आवाज़में सुनाए जाते हैं । वास्तवमें ऐसे गीत सुनाना या सिनेमा दिखाना धार्मिक तथा सामाजिक दृष्टिकोणसे भी अयोग्य है । धार्मिक उत्सवोंमें किस प्रकारके कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, इस हेतु अनुशासन तथा कानूनके बंधन हैं ।

२.५ खर्चीले उत्सव उत्सव मंडलोंद्वारा मंडप, मूर्ति, बिजली, सजावट, मनोरंजनके कार्यक्रमों, जुलूसोंपर अधिक मात्रामें खर्च किया जाता है । अनावश्यक सजावट, रोशनी इत्यादि करनेमें राष्ट्रीय संपत्तिकी हानि होती है ।

२.६ ध्वनिप्रदूषण तथा वायुप्रदूषण लगभग सर्व उत्सव मंडपोंमें दिन-रात ऊंची आवाज़में गाने बजाए जाते हैं । वर्तमानमें संगीतके तालपर थिरकनेवाली रोशनी बहुत प्रसिद्ध हुई है । इससे उत्सवकालमें बहुत ध्वनिप्रदूषण होता है । आतिशबाज़ीके कारण ध्वनिप्रदूषणके साथ वायुप्रदूषण भी होता है ।

२.७ जुआ और मद्यपान अनेक स्थानोंपर मंडपमें तथा उसीके परिसरमें जुआ खेला जाता है, लोग मद्यपान करते हैं । ऐसे अनाचारोंसे मंडपस्थल और उत्सवकी पवित्रता नष्ट होती है ।

२.८ जुलूससे संबंधित समस्या उत्सवमें मूर्तिका आवाहन तथा विसर्जन करते हुए बडे जुलूस निकाले जाते हैं । इन जुलूसोंके कारण निर्माण होनेवाली समस्याएं यहां दी गई हैं ।

२.९ धीमी गतिसे चलनेवाले जुलूस देवताके जुलूसोंमें लगनेवाले समयमें तो प्रति वर्ष वृद्धि देखी जाती है । लंबे जुलूसोंके कारण समग्र यातायात व्यवस्था बहुत समयतक पूर्णत: अस्त-व्यस्त हो जाती है । शहरसे बाहर जानेवाले प्रवासी वाहनों, मालवाहक ट्रक और अन्य वाहनोंको इस कारण कष्ट सहन करना पड़ता है । इस कालमें पुलिसपर शारीरिक तथा मानसिक तनाव रहता है । ऐसे समय, बड़ी संख्यामें अनेक स्थानोंपर पुलिस बंदोबस्तमें व्यस्त होनेके कारण पुलिस अपने अन्य उत्तरदायित्वसे न्याय नहीं कर पाती, जिससे समाजकंटक बहुत लाभ उठाते हैं ।

२.१० जुलूसके नामपर हो रहा तमाशा आजकल उत्सवोंके जुलूसका नाम लें, तो हिंदी फिल्मी गीतोंपर किए जानेवाले अश्लील नाच, जबरन गुलाल फेंकनेवाले युवक, मद्यपान कर जुलूसमें सम्मिलित होनेवाले लोग, अश्लील हावभाव और महिलाओंसे असभ्य वर्तन करनेवाले युवकोंकी टोलियां इत्यादिके दृश्य हमारी दृष्टिके समक्ष आ जाते हैं ।

३. आदर्श उत्सव किस प्रकार मनाएं? उत्सवमें होनेवाले खर्चका विभाजन: आगेकी सारिणीमें दर्शाया है, कि सार्वजनिक उत्सव मंडलोंद्वारा होनेवाले खर्चका विभाजन साधरणत: किस प्रकार होता है और वास्तवमें कितना योग्य है । संबंधित सारिणी नीचे देखें । एकत्रित की गई धनराशिका अधिकाधिक उपयोग अध्यात्मप्रसारके लिए किया जाना चाहिए, यही इस सारिणीद्वारा ज्ञात होता है

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