नई दिल्ली, 24 मार्च (आईएएनएस)। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 की धारा 66ए रद्द करने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंटरनेट और मोबाइल समुदाय के हितधारकों ने स्वागत किया है। उन्होंने इसे भारत के 30.2 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की महत्वपूर्ण जीत करार दिया है।
भारतीय इंटरनेट और मोबाइल संघ (आईएएमएआई) के अध्यक्ष सुभो रे ने एक बयान में कहा, “यह ऐतिहासिक फैसला आईटी एक्ट के अनुच्छेद 79 में निहित मध्यस्थों के लिए सुरक्षित आश्रय प्रावधानों को मजबूत करेगा। खास तौर से यह फैसला छोटी कंपनियों, जैसे माउथशट डॉट कॉम के लिए ज्यादा सहायक होगा, जिन्हें अब बेवजह और गलत इरादे से किसी व्यक्ति की अवमानना का नोटिस नहीं दिया जाएगा।”
आईएएमएआई के 135 सदस्य हैं, जिनमें गूगल, फेसबुक, ट्विटर और अमेजन समेत कई अन्य कंपनियां शामिल हैं।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेमलेश्वर और आर.एफ. नरीमन की सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा, “सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 66ए को पूरी तरह रद्द कर दिया गया है।”
न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हमारा संविधान सोच, अभिव्यक्ति और विश्वास की स्वतंत्रता प्रदान करता है। लोकतंत्र में इन मूल्यों को संवैधानिक योजना के भीतर प्रदान किया जाना है। कानून (धारा 66ए) पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसला सुनाते हुए आईटी एक्ट के अनुच्छेद धारा 79(3)(बी) का बी उल्लेख किया।
रे ने कहा, “दोनों ही फैसले उपयोगकर्ताओं और मध्यस्थ संस्थाओं को व्यापार करने की स्वतंत्रता के लिए इंटरनेट की आजादी सुनिश्चित करेंगे।”
आईएएमएआई ने कहा कि उसे भरोसा है कि यह फैसला भारत में इंटरनेट के विकास और उसकी वृद्धि में एक नए चरण का सूत्रपात बनेगा।
बयान में कहा गया है, “इंटरनेट उपयोगकर्ता अवैध सेंसरशिप अथवा उत्पीड़न के डर के बिना ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम हो जाएगा। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों और छोटी भारतीय कंपनियां स्थापित करने के लिए अनुकूल माहौल तैयार होगा और ऑनलाइन कारोबार लाभ उठाने में सक्षम बनेगा।”