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धर्म, रहस्य और रोमांच का संगम है पाताल भुवनेश्वर की गुफा (फोटो सहित)

लखनऊ, 7 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफा आज भी देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पिथौरागढ़ जिले में स्थित ये गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फुट अंदर है और इसकी खोज आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। यहां केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं।

लखनऊ, 7 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफा आज भी देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पिथौरागढ़ जिले में स्थित ये गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फुट अंदर है और इसकी खोज आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। यहां केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं।

पुराणों के मुताबिक पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं जहां चारों धामों के एकसाथ दर्शन होते हैं। स्कन्द पुराण में मानस खंड के 103 अध्याय से भी पाताल भुवनेश्वर की महिमा के बारे में पढ़ा जा सकता हैं। इसके साथ ही यह पवित्र गुफा जहां अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है, वहीं अनेक रहस्यों से भरपूर है।

गुफा का प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि पहली नजर में देखने पर ही डर लगता है, लेकिन जंजीर के सहारे आड़े-तिरछे पत्थरों पर पैर टिकाते हुए डरते, संभलते और झुकते हुए गुफा में उतरते ही आप अपने को पाते हैं 33 करोड़ देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक शिलाओं, प्रतिमाओं व बहते हुए पानी के मध्य और आपका दिल गदगद् हो उठता है।

इसके बाद चंद पलों में अचानक जैसे ही गाइड की आवाज गूंजती है कि आप शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर खड़े हैं और आपके सिर के ऊपर शेष नाग का फन है तो आपको कुछ समझ नहीं आएगा लेकिन जैसे ही उस गुफा के चट्टानी पत्थरों पर नजर जाती है तो शरीर में सिरहन सी दौड़ पड़ती है और वास्तव में अनुभव होता है कि कुदरत द्वारा तराशे पत्थरों में नाग फन फैलाये है।

वहीं इसके बाद तक्षक नाग की आकृति भी चट्टान में नजर आती है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला लेकिन तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है।

इसी तरह अगर गाइड के बताने पर देवराज इन्द्र के ऐरावत हाथी का शरीर उन चट्टानों में नहीं दिखने पर जब जमीन में बिल्कुल झुक कर भूमि से चन्द इंच की दूरी पर चट्टानों में हाथी के तराशे हुए पैर नजर आते हैं, तो यकीन हो उठता है कि भगवान विश्वकर्मा के अलावा कोई भी मूर्तिकार इन पैरों को नहीं खड़ा कर सकता है। स्कन्द पुराण के मानस खण्ड 103 अध्याय के 155 वें श्लोक में इसका वर्णन है। श्लोक 157 में वर्णित पारिजात व कल्पतरू वृक्ष भी यहां नजर आते हैं।

इसके बाद पर्यटक और श्रद्धालु शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर चल कर पहुंचते हैं उस जगह जहां भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काट कर रख दिया था। आदि गणेश की सिर विहीन मूर्ति लोगों को स्तब्ध कर देती है। इस मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है। जहां से दिव्य जल की बूंदें टपकती हैं। मुख्य बूंद तो श्री गणेश के गले में पहुंचती है जबकि पंखुड़ियों से बाजू में टपकती है। भगवान शंकर की लीला स्थली होने के कारण इस जगह उनकी विशाल जटाएं इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव की तपस्या के कमंडल, खाल सब नजर आते हैं।

थोड़ा आगे चलकर भगवान केदारनाथ नजर आते हैं। उनके बगल में ही बद्रीनाथ विराजमान हैं। ठीक सामने बद्री पंचायत बैठी है जिसमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरुड़ शोभायमान हैं। बद्री पंचायत के ऊपरी तरफ बर्फानी बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। आगे बढ़ते ही काल भैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी मनुष्य काल भैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

इसी के समीप त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा महेश्वर सुशोभित हैं। उनके बगल में भगवान शंकर की झोली यानी भिक्षा पात्र तथा बाघम्बर छाला के दर्शन होते हैं। गुफाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। ये कामधेनु गाय का स्तन है, कलयुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है (मानस खण्ड 103 अध्याय के श्लोक 275-276 में भी ये वर्णन है।)।

कहा जाता है कि पूर्व काल में यहां दूध की धारा सतत प्रवाहित रहती थी, जो ठीक नीचे ब्रह्मा जी के पांचवें सिर पर गिरती थी, अब वर्तमान में जल से ही इस पंचानन का अभिषेक होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने कहा है कि पितृ पक्ष से संबंधित श्राद्ध कर्म बद्रीनाथ धाम में, मातृ पक्ष से सम्बन्धित श्राद्ध कर्म पवित्र गया धाम में, भातृ पक्ष वाले कर्म पुष्कर में तथा ननिहाल पक्ष वाले श्री रघुनाथ मंदिर धाम में करना श्रेष्ठकर हंै, लेकिन पाताल भुवनेश्वर में सभी पक्षों से संबंधित श्राद्ध कर्म तथा तर्पण आदि किया जाना चमत्कारिक व फलदायी है। यही वजह है कि यहां छूटे हुए श्राद्ध उठाए भी जाते हैं। अमावस्या के मौके पर तर्पण विशेष महत्व रखता है।

कुछ और आगे जाकर नजर आती है हंस की टेढ़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जूठा कर दिया था। यहां ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां भी साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्चर्यचकित होता है जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है।

चारों युगों के प्रतीक पिंड भी यहां पर स्थित हैं, जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षो में 1 इंच बढ़ती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि दोनों पिंडो के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जाएगा।

19वीं सदी में शंकराचार्य द्वारा स्थापित ताम्रपत्र से सुशोभित एक त्रिलिंगी (ब्रहा, विष्णु, शंकर) बना है। जिसमें ऊपर गुफा की छत से जटाओं की तरह बनी हुई संरचनाओं पर से बूंद-बूंद करके टपकते जल से तीनों लिंगों का रुद्राभिषेक होता है। गुफा की शुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुंड है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मनोकामना पूरी होती है।

इस तरह इन अद्भुत नजारों का दर्शन करने के बाद वापस भी उसी रास्ते से जाना होता है, जहां से प्रवेश किया गया था। बाहर आने पर महसूस होता है, जैसा कि सच में कुछ देर पहले हम एक दूसरी दुनिया या परलोक में थे।

धर्म, रहस्य और रोमांच का संगम है पाताल भुवनेश्वर की गुफा (फोटो सहित) Reviewed by on . लखनऊ, 7 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफा आज भी देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का कें लखनऊ, 7 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफा आज भी देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का कें Rating:
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