नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर गिरकर 7.1 फीसदी हो गई, जबकि साल 2015-16 में यह 7.5 फीसदी थी। इसका कारण मुख्य तौर से कृषि, खनन और निर्माण क्षेत्र की गिरावट है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) से जारी आंकड़ों के मुताबिक, योजित सकल मूल्य (जीवीए) के संदर्भ में वृद्धि दर थोड़ी अच्छी 7.3 फीसदी रही है, जो पिछले साल समान अवधि में 7.2 फीसदी थी। जीवीए को अर्थव्यवस्था को नापने का बेहतर पैमाना माना जाता है, क्योंकि इसमें कर और सब्सिडी की गणना नहीं की जाती है।
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर बेहतर मॉनसून को देखते हुए आठ फीसदी रखने का लक्ष्य रखा है। जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 7.6 फीसदी थी।
जीवीए में विनिर्माण गतिविधि में 9.1 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली, जो पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7.3 फीसदी थी। रक्षा सहित सरकारी सेवाओं में पिछले वित्त वर्ष की 5.9 फीसदी की तुलना में इस साल अच्छी तेजी देखी गई और यह 12.3 फीसदी रही।
लेकिन कृषि और मत्स्यपालन सहित प्राथमिक क्षेत्रों में कमजोरी देखने को मिली और यह पिछले साल की 2.6 फीसदी की तुलना में घटकर 1.8 फीसदी रह गई। जबकि निर्माण क्षेत्र में तेज गिरावट देखी गई और यह 5.6 फीसदी की तुलना में 1.5 फीसदी रही।
सकल घरेलू उत्पाद के इन आकंड़ों पर टिप्पणी करते हुए उद्योग मंडल फिक्की के अध्यक्ष हर्षवर्धन नेवतिया ने कहा, “पहली तिमाही के आज जारी आंकड़े संतुलित है, लेकिन वर्तमान वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में विकास दर के रफ्तार पकड़ने का अनुमान है। इस साल मॉनसून काफी बढ़िया रहा है, जो काफी सकारात्मक है। खरीफ फसलों की बुआई का रकबा भी बढ़ा है। कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन काफी बेहतर रहनेवाला है, इससे ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़ेगी।”
उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा सातवें वेतन आयोग के लागू होने से भी मांग में इजाफा देखने को मिलेगा। इससे औद्योगिक उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा।”
वहीं, उद्योग संगठन एसोचैम ने एक बयान जारी कर कहा कि इस साल विकास दर में पिछली तिमाही की तुलना में मामूली गिरावट आई है। संगठन के महासचिव डी. एस. रावत ने कहा, “सरकार और आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) द्वारा लागू की गई नीतियों और पहलों का आर्थिक विकास पर अच्छा असर पड़ा है और कमजोर और उथलपुथल की शिकार वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत में आर्थिक स्थिरता देखी जा रही है। निजी खपत असली जीडीपी दर को बढ़ावा देनेवाली मुख्य आधार बनी हुई है जैसा कि वित्त वर्ष 2014-15 में था और 2015-16 में भी यही मुख्य कारक है। जबकि तय निवेश और निर्यात नई व्यापार व्यवस्थाओं में सुस्ती और बाहरी मांग में कमी के कारण पीछे छूट गए हैं।”