नई दिल्ली, 8 नवंबर- भारत की सदियों पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली को कई देशों में स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली के भीतर एक प्रभावी वैकल्पिक पद्धति के रूप में मान्यता मिलने लगी है और यह लगभग हर महाद्वीप में अपना प्रभुत्व कायम कर रही है।
राष्ट्रीय राजधानी में शुक्रवार को शुरू हुई छठी विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में दुनियाभर में आयुर्वेद के महत्व पर आधारित एक पूर्ण सत्र के दौरान स्लोवेनिया, त्रिनिदाद और टोबैगो, उज्बेकिस्तान और भूटान जैसे देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों और अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
‘आयुर्वेद पर वैश्विक परिप्रेक्ष्य’ शीर्षक वाले एक पूर्ण सत्र में भाग लेने वाले विदेशों के स्वास्थ्य विशेषज्ञों और अधिकारियों ने मौजूदा आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली के पूरक के तौर पर अपने-अपने देशों की जनता के स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में आयुर्वेद को एकीकृत करने की जरूरत का आह्वान किया।
विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में अपनी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने वाली नतालिया मारजोआ सिल्वा ने कहा, “आयुर्वेद क्यूबा की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में शामिल हो।”
सिल्वा ने कहा, “आयुर्वेद का इस्तेमाल हमारे देश में कैंसर के इलाज के लिए किया जा सकता है जो कि मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन चुका है।” सिल्वा ने कहा कि क्यूबा में भी सरकार प्राथमिक और उच्च चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को शामिल करने के लिए उत्सुक है।
स्लोवेनिया के स्वास्थ्य मंत्रालय के ग्रेगर कोस ने प्रभावी विनियमन की मांग करते हुए कहा, “काफी संख्या में लोग आयुर्वेद का अध्ययन करने के लिए भारत पहुंचते हैं, लेकिन केवल तीन महीने तक अध्ययन करने के बाद वे डिप्लोमा की डिग्री लेकर लौटते हैं।”
यूरोपीय संघ के एक पूर्ण सदस्य, स्लोवेनिया ने पहले से ही देश की राजधानी, लजुबलजाना में एक आयुर्वेद सूचना केंद्र खोल रखा है। कोस ने कहा, “हम इस क्षेत्र में गुणवत्ता नियंत्रण के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन कार्यरत आयुष विभाग के साथ काम करेंगे।”
जब मालदीव के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मोहम्मद हबीब ने घोषणा की कि “वह उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब आयुर्वेद मेरे देश की स्वास्थ्य प्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा होगा” तो वहां उपस्थित देश-विदेश के प्रतिनिधियों की भारी भीड़ ने खुशी प्रकट की।
पूर्ण सत्र में प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य देशों में मलेशिया, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल भी शामिल थे।
सत्र की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने की। उन्होंने अपने मंत्रालय की ओर से प्रस्तुति दी।
भारत ने पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में मलेशिया के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है, जिसके तहत दोनों देशों के स्वास्थ्य मंत्रालय सहयोग बढ़ाने के लिए पहले ही दो द्विपक्षीय तकनीकी बैठकों का आयोजन कर चुके हैं।
भारत ने भारतीय शिक्षण संस्थानों में आयुर्वेद का अध्ययन करने के लिए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के छात्रों के लिए 20 सीटें आरक्षित की है।
डॉ. वर्धन ने कहा, “हम अनुसंधान के क्षेत्र में सहयोग प्राप्त करने के लिए और चिकित्सा प्रणाली और प्रैक्टिस के मानकीकरण के लिए अन्य देशों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर पारंपरिक चिकित्सा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।”
मलेशियाई सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा उप महानिदेशक डॉ. जेयेन्दन सिन्नदुराई ने कहा, “हम पूरे मलेशिया में सरकारी अस्पतालों में पारंपरिक चिकित्सा देखभाल का विस्तार करने के लिए संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं।”
श्रीलंका सरकार के स्वदेशी चिकित्सा मंत्रालय के सलाहकार डॉ. न्यूटन ए. पीरिस ने कहा कि उनका देश दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है, जहां स्वदेशी चिकित्सा के लिए एक कैबिनेट मंत्री है। डॉ. पीरिस ने कहा, “हमारे पारंपरिक चिकित्सा विशेषज्ञों ने यहां तक कि डेंगू के लिए भी इलाज का आविष्कार किया है।”
अन्य वक्ताओं में नेपाल स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से खगराज अधिकारी, त्रिनिदाद और टोबैगो से लॉरेंस जय सिंह और बांग्लादेश के स्वास्थ्य राज्य मंत्री जाहिद मलेकी ने अपने विचार रखे।