नई दिल्ली, 12 नवंबर (आईएएनएस)। दिवाली में पटाखे फोड़कर आप अपनी खुशियों को भले ही दोगुना-चौगुना कर लें, लेकिन सांस की तकलीफ वाले मरीजों के लिए आपकी यह खुशी बेहद परेशानियां लेकर आती हैं। हालात बिगड़ने पर कभी-कभी तो उन्हें शहर छोड़कर कुछ दिनों के लिए दूसरी जगह शिफ्ट होने की नौबत तक आ जाती है।
नई दिल्ली, 12 नवंबर (आईएएनएस)। दिवाली में पटाखे फोड़कर आप अपनी खुशियों को भले ही दोगुना-चौगुना कर लें, लेकिन सांस की तकलीफ वाले मरीजों के लिए आपकी यह खुशी बेहद परेशानियां लेकर आती हैं। हालात बिगड़ने पर कभी-कभी तो उन्हें शहर छोड़कर कुछ दिनों के लिए दूसरी जगह शिफ्ट होने की नौबत तक आ जाती है।
ठंड के शुरुआती मौसम में पड़ोसी राज्यों में खेतों में धान की खूंटी जलाने, लगातार बढ़ रहे प्रदूषण व हवा में उड़ते परागकण हालात को बद से बद्तर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। खासकर प्रदूषकों के प्रति संवेदनशील बच्चों पर इसका बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
बीएलके सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल के डॉ. संदीप नायर (श्वसन रोग विभाग) ने आईएएनएस से कहा, “हाल में एक बच्चा मेरे पास लाया गया, जो दवाओं के नियमित सेवन के बावजूद दमा से गंभीर रूप से पीड़ित था। उसके इलाज और लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए हमें उसे स्टेरॉयड तक देना पड़ा। शहर में बढ़ते प्रदूषण से प्रभावित यह अकेला बच्चा नहीं है।”
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के मुताबिक, श्वसन क्रिया को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला रेस्पाइरेबल सस्पेंडेड पर्टिकुलर मैटर (आरएसपीएम) दिवाली की रात 11 बजे 2,308 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (एमपीसीएम) दर्ज किया गया, जबकि मानक स्तर 100 एमपीसीएम है।
पीएम 2.5 (2.5 माइक्रॉन से ऊपर के कणिका तत्व) के लिए मानक स्तर 60 एमपीसीएम है, जो बीती रात 619 एमपीसीएम दर्ज किया गया।
अमेरिकी दूतावास के वायु गुणवत्ता ने गुरुवार सुबह चाणक्यपुरी में पीएम 2.5 की मात्रा 277 एमपीसीएम दर्ज की, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद हानिप्रद है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिरोलॉजी एंड इंडिया मीटियोरोलॉजिकल डिपार्टमेंट, दिल्ली यूनिवर्सिटी द्वारा संयुक्त तौर पर संचालित सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफएआर) इलाका शहर के सर्वाधिक प्रदूषित इलाकों में था, जहां पीएम 2.5 की मात्रा औसत तौर पर 430 तक पहुंच गई थी।
सर गंगाराम अस्पताल में श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ.बॉबी बल्होत्रा ने कहा कि दिल्लीवासियों के लिए हालात बद्तर हो गए हैं। उन्होंने कहा, “कल (बुधवार) प्रदूषण का स्तर वास्तविक रूप में बद्तर था। मैंने प्रदूषकों के प्रति संवेदनशील बच्चों व वयस्कों को घर में ही रहने और एयर प्यूरिफायर को चालू अवस्था में रखने की सलाह दी। दिवाली की रात के बाद सुबह और दिवाली के दिन शाम में उन्हें घर से बाहर न निकलने की सलाह दी गई, क्योंकि उस वक्त प्रदूषण स्तर सबसे उच्चतम स्तर पर होता है।”
बिगड़े हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि न्यूयॉर्क टाइम्स में दक्षिण एशिया के संवाददाता गार्डिनर हैरिस को इस साल दिल्ली छोड़ने का फैसला करना पड़ा, क्योंकि शहर के प्रदूषित वायु के कारण उनके आठ वर्षीय बेटे के फेफड़े की क्षमता में 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। उनके लेख ‘होल्डिंग योर ब्रीद इन इंडिया’ पर केंद्र व राज्य स्तर पर भले ही चिंतन-मनन हुआ, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाया गया।
कोलकाता के चित्तरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (सीएनसीआई)ने हाल ही में दिल्ली में यह दर्शाया कि शहर के आधे बच्चों (44 लाख) के फेफड़े खराब होने की कगार पर हैं, जिसका इलाज भी संभव नहीं है।
विशेषज्ञों ने तीन सालों तक दिल्ली के 36 स्कूलों के 11 हजार बच्चों निगरानी कर यह निष्कर्ष हासिल किया।
गुड़गांव स्थित कोलंबिया एशिया अस्पताल में श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. विवेक सिंह ने कहा, “शहर में प्रदूषण की बद्तर होती स्थिति केवल श्वसन रोग से पीड़ित मरीजों के लिए ही खतरनाक नहीं है, बल्कि यह स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी उतना ही नुकसानदायक है।”
डॉ. सिंह के पास खांसी से गंभीर रूप से पीड़ित 13 वर्षीय एक बच्चा इलाज के लिए लाया गया था। खांसी ऐसी कि वह न तो रात में सो पा रहा था और न ही घर के बाहर खेल पा रहा था।
उन्होंने कहा, “उसके फेफड़ों में संक्रमण पाया गया, जिसपर नियंत्रण के लिए उसे दवाएं दी गई। शहर में प्रदूषण की बिगड़ती हालत के मद्देनजर, अपने बच्चे की जान बचाने के लिए उसके माता-पिता उसे लेकर देहरादून चले गए जहां उस बच्चे की हालत अब बेहद सुधर गई है और वह घर के बाहर खेलता-कूदता भी है।”
दिवाली के दौैरान वायु में सामान्य तौर पर स्वास्थ्य के लिए खतरनाक गैसें जैसे नाइट्रिक ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड तथा कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बेहद बढ़ जाता है।
प्रदूषण केवल श्वसन अंगों ही नहीं, बल्कि त्वचा व आंखों सहित शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है।