धार्मिक मान्यताओं का पालन वही व्यक्ति कर सकता है जो सकारात्मक भावों से ओतप्रोत है। व्यक्ति के चेहरे पर सकारात्मक भाव एक विशेष प्रकार की कांति उत्पन्न करते हैं, जो उसे उन व्यक्तियों से अलग करते हैं जो ईष्र्यालु, क्रोधी और भ्रष्टाचारी होते हैं। जिस व्यक्ति के चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती है उसके चेहरे पर अध्यात्म का तेज भी प्रकट होता है। मुस्कान व्यक्ति को केवल धर्म और अध्यात्म की ओर ही प्रेरित नहीं करती, बल्कि यह उसे अनेक बीमारियों से भी दूर रखती है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि मुस्कराने से मस्तिष्क में कुछ ऐसे हार्मोस का स्नाव होता है, जो मस्तिष्क को सशक्त और खुशमिजाज बनाते हैं। अध्यात्म और धर्म की ओर व्यक्ति का मन तभी लगता है जब वह पूर्ण रूप से सुखी, प्रसन्न और निरोग रहता है। रोगी व्यक्ति को तो अपना ही होश नहीं रहता। ऐसे में वह अध्यात्म से कैसे जुड़ सकता है। मुस्कराहट को आप एक संपूर्ण व्यायाम भी मान सकते हैं। यह व्यायाम मन को स्वच्छ करके उसे अध्यात्म की ओर मोड़ता है और इससे शरीर की नाडि़यां भी खुलती हैं।
मुस्कान शरीर की थकान को दूरकर उसमें ऊर्जा का संचार करती है। ऊर्जा व प्रसन्नता से प्रफुल्लित मन के अंदर सदाचार के भाव उत्पन्न होते हैं और व्यक्ति को धार्मिक कार्यो में प्रवृत्त होने की प्रेरणा मिलती है। धार्मिक कार्यो के अंतर्गत गरीबों की मदद करना, रोगी की सेवा करना और जरूरतमंदों की सहायता करना आदि सभी कल्याणकारी कार्यो को शुमार किया जाता है। जब एक व्यक्ति ये सारे कार्य मुस्करा कर करता है, तो उसके जीवन में ढेर सारी खुशियों का समावेश हो जाता है। मुस्कान से तनाव पैदा करने वाले हार्मोस के स्तर में कमी आती है। इसके परिणामस्वरूप शरीर तनावमुक्त होकर ऊर्जावान हो जाता है। याद रखें, दिल से मुस्कराहट निकलनी चाहिए। जब आप मुस्कराएंगे तो आप के अपने साथ हर चीज मुस्कराती हंसती गाती नजर आएगी। ऐसी मनोदशा आपके जीवन में धर्म और अध्यात्म के स्तर को ऊंचा करके आपके जीवन में भी ढेर सारे रंग भर देगी