नई दिल्ली, 22 मार्च (आईएएनएस)। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मौजूदा केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा बढ़ाकर पूर्ण राज्य किए जाने का मुद्दा इस समय गर्मागर्म बहस का विषय बना हुआ है।
नई दिल्ली, 22 मार्च (आईएएनएस)। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मौजूदा केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा बढ़ाकर पूर्ण राज्य किए जाने का मुद्दा इस समय गर्मागर्म बहस का विषय बना हुआ है।
राष्ट्रीय राजधानी में 16 दिसंबर, 2012 को हुए सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद यह बहस और तेज हो गई, क्योंकि कानून व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए दिल्ली पुलिस का नियंत्रण राज्य सरकार को सौंपने की मांग उठने लगी।
वर्तमान समय में दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के नियंत्रण में काम करती है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले वर्ष अपने 49 दिन के कार्यकाल के दौरान पुलिस का नियंत्रण राज्य सरकार को सौंपे जाने को लेकर धरना प्रदर्शन भी किया। केजरीवाल का तर्क था कि इससे राजधानी वासियों को बेहतर सुरक्षा मुहैया कराई जा सकेगी।
आम आदमी पार्टी (आप) ने फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए पूरी ताकत लगाने का वादा किया था।
केजरीवाल ने विधानसभा में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करने की राह निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और नगर विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू से मुलाकात भी की।
हालांकि कुछ लोग इस मांग के खिलाफ भी हैं और उनका तर्क है कि राजधानी में इस तरह दो शक्ति केंद्र बन जाने से हितों के टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है जो और भी मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
संविधान विशेषज्ञ एवं प्रख्यात वकील राम जेठमलानी का कहना है कि दिल्ली ‘केंद्रशासित प्रदेश’ के रूप में कहीं बेहतर है।
जेठमलानी ने आईएएनएस से कहा, “दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने से क्या हासिल होगा? मुझे इसमें कोई तर्क नजर नहीं आता।”
जेठमलानी ने कहा कि राजधानी में अनेक बेहद महत्व वाले कार्यालय, कारोबार एवं अन्य प्रतिष्ठान हैं, जिन्हें राज्य सरकार को नहीं दिया जा सकता।
उन्होंने कहा, “अगर ऐसा होता है तो इससे हितों के टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है..आप इसे कैसे चलाएंगे?”
संविधान मामलों के एक अन्य विशेषज्ञ वकील के. टी. एस. तुलसी ने भी जेठमलानी के विचारों से समर्थन जाहिर करते हुए कहा कि यदि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाता है तो दो सरकारों के बीच टकराव की स्थिति आ सकती है, जो देश हित में नहीं है।
तुलसी ने आईएएनएस से कहा, “यदि एक ही जगह दो शक्ति केंद्र बन जाते हैं तो इसके कारण कई गड़बड़ परिस्थितियां पनप सकती हैं। केंद्र और राज्य के बीच विवाद के कई मामले सामने आ चुके हैं तथा इसे आप राष्ट्रीय राजधानी में नहीं होने दे सकते।”
लगातार तीन कार्यकाल पूरा करने वाली दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस की शीला दीक्षित भी इसके पक्ष में नहीं दिखतीं।
दीक्षित ने आईएएनएस से कहा, “चूंकि यह राष्ट्रीय राजधानी है इसलिए इसे पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।”
हालांकि इसका पक्ष लेने वाले लोगों की भी कमी नहीं है और इसके पीछे उनका तर्क राजधानी में ‘सुशासन’ लाने का है।
केंद्र सरकार के कार्यालयों की सुरक्षा के संबंध में उनका कहना है कि उन्हें केंद्र सरकार के नियंत्रण में छोड़ दिया जाए।
एक विश्लेषक के अनुसार, राजधानी में वीआईपी हस्तियों की सुरक्षा के लिए राज्य में चुनकर आई सरकार द्वारा संचालित सुरक्षा बल पर भरोसा नहीं किया जा सकता सही नहीं है, क्योंकि इस तरह की हस्तियों की सुरक्षा व्यवस्था विशेष सुरक्षा दल (एसपीजी), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और केंद्रीय औद्योगिकी सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) जैसे अर्धसैनिक बल करते हैं।
वरिष्ठ वकील के. के. वेणुगोपाल के अनुसार, “दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज देने में कोई हर्ज नहीं है। यह एक राजनीतिक मसला है और इसे राजनीतिज्ञों द्वारा सुलझाया जाना चाहिए।”
वेणुगोपाल ने आईएएनएस से कहा, “दिल्ली को पूर्ण राज्य बनने से कोई नहीं रोक सकता। सिर्फ जन प्रतिनिधियों को आवाज उठाने की जरूरत है। पूर्ण राज्य बनने की स्थिति में मुझे दिल्ली में कोई नुकसान नजर नहीं आ रहा, बल्कि इसके कई फायदे हैं।”
लोकसभा में पूर्व महासचिव टी. के. विश्वनाथन ने कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने में किसी तरह की कानूनी अड़चन नहीं है, क्योंकि संसद के पास इसकी शक्ति है, लेकिन क्या ऐसा होगा, देखने वाली बात है।
विश्वनाथन ने आईएएनएस से कहा, “इसे कभी भी किया जा सकता है, लेकिन कब होगा इसे लेकर संदेह है।”
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, “इस तरह के मुद्दों पर गहन चर्चा की जरूरत है और इस मुद्दे पर तो खासकर लंबी प्रक्रिया की जरूरत होगी।”