आगरा, 5 फरवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार यहां स्थित लाल पत्थरों से बने ढांचे का जीर्णोद्धार कराएगी। यह ढांचा किसी जमाने में मुगल बादशाह औरंगजेब के भाई दारा शिकोह का समृद्ध पुस्तकालय हुआ करता था। दारा शिकोह को महान अध्येता माना जाता है जिन्होंने इस्लाम और हिंदू धर्म में समानता का पता लगाना शुरू किया था और उपनिषद सहित हिंदुओं के धर्मगं्रथों का फारसी में अनुवाद कराया था।
आगरा, 5 फरवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार यहां स्थित लाल पत्थरों से बने ढांचे का जीर्णोद्धार कराएगी। यह ढांचा किसी जमाने में मुगल बादशाह औरंगजेब के भाई दारा शिकोह का समृद्ध पुस्तकालय हुआ करता था। दारा शिकोह को महान अध्येता माना जाता है जिन्होंने इस्लाम और हिंदू धर्म में समानता का पता लगाना शुरू किया था और उपनिषद सहित हिंदुओं के धर्मगं्रथों का फारसी में अनुवाद कराया था।
इतिहासकारों का कहना है कि मुगल इतिहासकार जड़ता के कारण दारा शिकोह को भिन्न मत का मानते थे और यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो उनकी हत्या नहीं हुई होती। कट्टरपंथी मत के औरंगजेब की जगह उनकी ताजपोशी हुई होती।
इस ढांचे के जीर्णोद्धार परियोजना के लिए कोष विश्व बैंक के पर्यटन प्रयासों से आए। राज्य सरकार के मुख्य सचिव संजीव मित्तल पिछले सप्ताह यहां थे। उन्होंने विरासती पुस्तकालय के संरक्षण का आदेश दिया। आगरा के जिला दंडाधिकारी पंकज कुमार ने विशेषज्ञों से एक योजना तैयार करने को कहा है जिसे शीघ्र ही सरकार के पास भेजा जाएगा।
आगरा में दारा शिकोह के पुस्तकालय के संरक्षण और उसे खोले जाने की लंबे समय से मांग होती रही है। खंडहर बन चुका यह ढांचा ताज सिटी के मध्य में स्थित है।
इतिहासकार राज किशोर राजे ने कहा, “लोग संभवत: इसके अस्तित्व के बारे में भूल चूके हैं, लेकिन शाहजहां के कार्यकाल के दौरान यह अध्ययन और बेहतरी का केंद्र हुआ करता था।”
उन्होंने कहा, “सूफी संत और विद्वान नियमित रूप से मिलते थे और वहां रहस्यवाद व वेदांत पर चर्चा किया करते थे। दारा शिकोह स्वयं ही चर्चा आरंभ करते थे।”
दारा शिकोह (1615-59) के सबसे बड़े बेटे थे और उनके बाद बादशाह बनने के अधिकारी थे। लेकिन एक युद्ध में पराजय के बाद उनके भाई औरंगजेब के कहने पर उनकी हत्या कर दी गई। सत्ता के लिए यह लड़ाई शाहजहां की बीमारी के बाद शुरू हुई जिसके परिणामस्वरूप बादशाह को सन् 1658 में अपदस्थ कर दिया गया।
दारा शिकोह का नाम फारसी में था। उन्होंने दिल्ली सहित कई जगहों पर पुस्तकालय बनवाए थे। उनमें से सबसे बेहतरीन पुस्तकालय आगरा में था जिसे उनकी हवेली के नाम से भी जाना जाता था। सन् 1921 के आगरा गजेटियर के मुताबिक, ब्रिटिश ने 1881 में हथिया लिया और इसे टाउन हॉल बना दिया।
दारा शिकोह फारसी और संस्कृत के गहरे जानकार थे। शाहजहां की बीमारी के कारण वे राजनीतिक और घरेलू संकटों में लंबे समय तक फंसे रहे। इसके बावजूद उन्होंने अनुवाद और किताब लिखना बंद नहीं किया। उनका मुख्य अभियान हिंदू धर्म और इस्लाम के बीच अंतर और दोनों के बीच सेतु कैसे बनाया जाए इसका पता लाना था।
उपनिषद सहित कई पुस्तकों का फारसी में अनुवाद किया गया। पुस्तकालय में पुस्तक की जिल्दसाजी, नक्काशों (चित्रकार) और अनुवादकों की पृथक जगह थी। दारा ने अपने पुस्तकालय के लिए यूरोप से हजारों किताबें खरीदी थीं।
ब्रज मंडल विरासत संरक्षण सोसायटी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से भवन का अधिग्रहण करने और लोगों के लिए खोलने से पहले पुनरुद्धार कराने की मांग की थी।
सोसायटी के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा ने कहा, “इस ढांचे को सत्ता केंद्र या बादशाहत का खिताब तो हासिल नहीं था, लेकिन यह सुलह कुल, दीन-ए-इलाही और बाद के दिनों में धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बना। पुस्तकालय उच्चस्तर की बौद्धिकता और अध्यवसायिक उत्कृष्टता की स्वीकारोक्ति के रूप में खड़ा था।”
लाल पत्थरों से बना पुस्तकालय एएसआई की देखरेख और संरक्षण में रहना चाहिए था, अब आगरा नगरपालिका की जागीर का हिस्सा है। इसके हिस्से को मोती गंज मंडी में व्यापारियों को बेच दिया गया है जबकि दूसरे हिस्से को कब्जा कर लिया गया है। अपने उत्कर्ष के जमाने में यह एक खूबसूरत इमारत हुआ करती थी, जहां किताबों के लिए रमणीय खाने बने हुए थे, रोशनी और हवा के लिए व्यवस्था थी, एक बड़ा सभा कक्ष था और विद्वानों के लिए माहौल कायम था।
केंद्रीय कक्ष को रंगी हुई खिड़कियों से अत्यंत सजाया गया था, किताबों को रखने के लिए पत्थरों को काटकर खाने बनाए गए थे जहां हवा आने-जाने और पर्याप्त रोशनी आने की व्यवस्था थी। यह दारा शिकोह की पसंद थी।
इस बात का सबूत आज भी देखा जा सकता है हालांकि इलाका चावल, गुड़ और चीनी के थोक बाजार के रूप में सिमट चुका है।
ब्रितानी हुकूमत के दौर में इस भवन को पहले थोड़े दिन तक तो उच्च न्यायालय और फिर सरकारी दफ्तर उसके बाद स्थानीय निकाय के अधीन चला गया।
आगरा विश्वविद्यालय के के. एम. इंस्टीट्यूट के पास मौजूद इलाके के 300 वर्ष से ज्यादा समय के पुराने नक्शे से पुस्तकालय के रणनीतिक स्थिति का पता लगाया गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक अधिकारी ने कहा कि यह संपत्ति नगरनिगम के पास है और उसे इसे बहाल करना चाहिए। लेकिन लोग चाहते हैं कि एएसआई इसका अधिग्रहण कर ले और लोगों के लिए खोले ताकि दारा शिकोह का समृद्ध पुस्तकालय और उनकी अध्यवसायिक विरासत सबकी नजरों में फिर से आए।