योगशास्त्र में अष्टसिद्धि, नवनिधियों और अनेक सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से एक पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग भी है। इस योग की साधना करने पर अगले पिछले जन्मों का ज्ञान होने लगता है। अध्यात्म मार्ग में इस साधना की उपयोगिता यह है कि व्यक्ति कई उन कामों और उपलब्धियों पर श्रम करने से बच सकता है, जिन पर पिछले जन्मों मे काम किया था।
साधना कठिन, लेकिन परिणाम और उपयोगिता को देखते हुए सरल है। सर्व प्रथम चित्त को स्थिर करना आवश्यक है। ध्यान के जरिए जब मन भटकना छोड़कर एकाग्र होने लगे या श्वासों में ही स्थिर हो जाए तो जाति स्मरण का-पिछले जन्म में प्रवेश का प्रयोग करना चाहिए।
जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए सोते समय आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या को याद करें। जैसे सोने से पूर्व क्या कर रहे थे, फिर उससे पहले क्या कर रहे थे, इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।
दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए याददाश्त को पीछे ले जाने का क्रम बढ़ाते जाए। कुछ दिन बाद जहां अवधारणा शक्ति बढ़ेगी। उसके साथ नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म की घटनाओं के स्मृतियों के द्वार भी खुलने लगेगा।
ध्यान के अभ्यास में जो पहली क्रिया सम्पन्न होती है वह भूलने की, कचरा स्मृतियों को खाली करने की होती है। जब तक मस्तिष्क कचरा ज्ञान, तर्क और स्मृतियों से खाली नहीं होगा, नीचे दबी हुई मूल प्रज्ञा जाग्रत नहीं होगी। इस प्रज्ञा के जाग्रत होने पर ही जाति स्मरण ज्ञान (पूर्व जन्मों का) होता है।
सुबह और शाम के वक्त पंद्रह से चालीस मिनट का विपश्यना ध्यान करना जरूरी है। मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार हो तो जाति स्मरण का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह प्रयोग किसी योग शिक्षक से सीखकर ही करना चाहिए। सिद्धियों के अनुभव किसी आम जन के समक्ष बखान नहीं करना चाहिए। योग की किसी भी प्रकार की साधना के दौरान आहार संयम जरूरी रहता है।