इलाहाबाद। आज के दौर में गद्दी के लिए लोग कोई भी षड़यंत्र करने में तत्पर रहते हैं। घर में ही एक-दूसरे की जान लेने को अमादा रहते हैं। छल-कपट में कुछ सफल भी हो जाते हैं परंतु उनका अस्तित्व नहीं बचता। त्याग वह माध्यम है जिससे इंसान युगों-युगों तक याद किया जाता है, भरत ने वही किया था। भरत ने भाई के प्रेम में राज सिंहासन को ठुकराकर आज भी सबके आदर्श बने हैं। महर्षि भरद्वाज वेद विद्या समिति की ओर से महावीर भवन में आयोजित श्रीराम कथा में आचार्य शांतनु जी महाराज ने यह विचार व्यक्त किया। रामकथा में भरत प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भरत को जारा बनने के लिए स्वयं गुरु विशष्ठ ने कहा था बावजूद इसके उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। बल्कि श्रीराम की भक्ति को प्रमुखता दी।
आचार्य शांतनु ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भरत की उदारता से प्रेरणा लेने की सीख दी। कहा कि पद के अहंकार में डूबने से खुद का विनाश हो जाता है, जबकि भरत का त्याग आज भी अनुकरणीय बना है। कथा में डॉ. विजय सिंह, प्रो. जीसी त्रिपाठी, अरविंद, पवन श्रीवास्तव, शिवनंदन गुप्त, डॉ. चंद्र प्रकाश, राजीव मिश्र, गौरीश आहूजा, अमित आलोक, पंकज शर्मा, मोहित, सूरज, देवेंद्र मौजूद रहे।
श्री निम्बार्क आश्रम में चल रहे श्रीमद्भागवत ज्ञान महायज्ञ सप्ताह के छठे दिन मंगलवार को डॉ. गिरजाकांत शुक्ल ने कहा कि भोग इच्छा का अंत होता है। इसी से जिज्ञासा की पूर्ति होती है। प्रेम का न तो अंत होता है और न ही पूर्ति। वह सिर्फ बढ़ता ही जाता है। कहा कि मनुष्य को संसार में विवेक लगाना चाहिए एवं ईश्र्र्वर में विश्र्वास। महंत स्वामी राधा माधव दास ने श्रद्धालुओं को आशीष वचन दिया।