धर्मशाला, 15 मई (आईएएनएस)। तिब्बत के निर्वासित प्रधानमंत्री लोबसांग सांग्ये ने अमेरिका में चीन के 40 विद्वानों और छात्रों से मुलाकात की और उनसे तिब्बत के मुद्दे पर चर्चा की। शुक्रवार को एक बयान जारी कर यह जानकारी दी गई।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के एक प्रवक्ता ने आईएएनएस से कहा कि प्रधानमंत्री ने इस बैठक में अपनी सरकार के ‘मध्यस्थिति दृष्टिकोण’ और चीन की सरकार द्वारा तिब्बत पर जारी किए गए श्वेत-पत्र पर स्पष्टीकरण दिया।
उन्होंने कहा कि बैठक इस सप्ताह अमेरिका के वाशिंगटन में आयोजित वार्ता के दौरान हुई, जिसका आयोजन इनिशिएटिव फॉर चाइना ने किया था। इनीशिएटिव फॉर चाइना, चीन में लोकतंत्र की दिशा में एक जमीनी स्तर का आंदोलन है, जिसका संचालन इसके संस्थापक अध्यक्ष यांग जियान्ली ने किया था।
‘मध्यस्थिति दृष्टिकोण’ पर चर्चा करते हुए सांग्ये ने कहा कि इसे दलाई लामा द्वारा परिकल्पित किया गया और सीटीए द्वारा लागू किया गया। इसका उद्देश्य दो लोगों के बीच स्थायी अविश्वास से सामना करना है।
उन्होंने बताया, “मध्यमार्गीय रुख चीनी संविधान के अंतर्गत तिब्बती लोगों के लिए एक वास्तविक स्वायत्ता की मांग करता है। चीन की सरकार हमेशा आरोप लगाती है कि तिब्बत की सरकार देश को विभाजित करना चाहती है, इसीलिए हमने चीन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को चुनौती न देने का विचार किया है।”
तिब्बत पर हाल ही में जारी हुए श्वेतपत्र के एक बयान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “श्वेतपत्र में कहा गया है कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का हिस्सा है। हालांकि 2004 में तिब्बत पर इसी प्रकार के एक श्वेतपत्र में चीन ने कहा था कि तिब्बत 13वीं शताब्दी से चीन का हिस्सा है।”
उन्होंने कहा, “तिब्बत पर चीनी सरकार के विवरण में बहुत विरोधाभास हैं।”
सांग्ये ने कहा कि श्वेतपत्र चीन की सरकार द्वारा दुनिया को गुमराह करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है।