मध्यप्रदेश का एक गांव ऐसा है जहां होली का प्रसाद श्रृद्धा के साथ तिजोरियों में रखा जाता है ताकि भंडार भरा रहे, लक्ष्मी प्रसन्न हों। इतना ही नहीं यही प्रसाद कई असाध्य रोगों में दवा के रूप में उपयोग भी किया जाता है। यह हजारों साल पुरानी परंपरा आज भी बदस्तूर निभाई जा रही है।
म.प्र.के होशंगावाद जिले की सिवनी मालवा तहसील के आदीवासी अॅंचलों ग्रामों में सॉंभरधा, ढेकना, लोखरतलाई, नंदरवाडा, लही, भैरोंपुर, बिसौनी, बराखड, भरलाय आदी अनेक ग्रामों में झंडा तोडऩा वीर धुमाना, निशान चढानें की परम्परा के क्रम से एक दिन एक तिथि निश्चित होती है चाहे वह दिन पूर्णिमा हो या पड़बा, द्वितिया, रंगपंचमी या रामनबमीं यह क्रम पड़वा से गुडी पड़बा तक चलता रहता है. ग्रामों में परम्परागत होली जलाई जाती है. मेला भरता है, पूर्णिमा की रात्रि में धेरा गम्मत चलती रहती है. प्रात: होली जलनें के वाद रंग धुंलेंड़ी के दिन गांव में बुल्लावा कर गांव वालों को एकत्रित कर धेराबाजी कर होली गीत गाये जाते है. गांव में रंग गुलाल की टोलियॉं धूमकर फगुआ इक्कट्ठा करते है और गांव वालों में बांटते है. उसी दिन दोपहर वाद झंडा वाले के यहॉं झंडा गेरूआ, भगुआ रंग का कई मीटर लंबा लेकर खांण्डेराव के यहॉं ले जाते है जहॉं पूजा-पाठ की जाती है.
खाण्डेराव क्या है और किसे कहते है:
खांण्डेराव दो लंबे बडे मोंटे गोल खंबे होते है जो करीव पॉंच से पचास फुट तक लंबे दो से चार फुट मोटे जिसमें एक नर दूसरा मादा होता है गांव में यह निश्चित स्थान पर जमीन में गड़े होते है. नर व मादा दोनों पर गेरू व तेल का लेप चढ़ाया जाता है. गांव छड़ीदार खांण्डेराव के ऊपर नौ हाथ की डांडी लाल वस्त्र में लगाते है उस पर भूरा वॉंधा जाता है जिसे वीर धुमाते है और खाण्डेराव के चार सीधे तीन उल्टे कुल सात परिक्रमा लगाए जाते है.
गांब पडि़हर खांडेराव के ऊपर चढ्कर बैठ जाता है और पूजा कर वहां से भूरा काटकर नीचे फेंकता है बहां एकत्रित ग्रामीणों में वितरित किया जाता है जिसे बहां एकत्रित ग्रामीण अपने अपने हाथों में झेलते है वही प्रसाद ग्रांमबासी दबा के रूप में उपयोग करते है. ग्रामवासीयो के द्वारा इस प्रसाद को अपनी तिजोरी में बरकत के लिए रखा जाता है साथ ही अनेक बीमारियों में इसे दवा के रूप में उपयोग किया जाता है.
ग्रामीणों के अनुसार होली का प्रसाद अनेंक रोगों से मुक्ति दिलाता है. ग्राम भरलाय में तालाव के पास होली मेदान में परम्परागत होली जलाई जाती है. मेला भी भरता है रात्रि में पूर्णिमा को धेरा गम्मत रात्रि भर चलती है धुंलेंडी के दिन सुबह गांव में बुलावा कर गाव बालों को एकत्रित कर धेराबाजी कर होली गीत गाए जाते है. गांव में रंग गुलाल की टोलियों के द्वारा घूम घूमकर जश्र मनाया जाता है. उसी दिन 4 बजे झंडा वाले के यहॉं झंडा गेरूआ भगवा रंग का लगभग पॉंच मीटर का ले जाकर खांण्डेराव के यहॉं तालाब पर ले जाते है वहां पूजा पाठ की जाती है.
भारतीय किसान संध प्रांताध्यक्ष एवं ग्राम के वरिष्ठ किसान रामभरोस बसोतिया बतलाते है कि आज भी सती सिलोचना जीवित है वर्षों पूर्व गांव में होली पर्व पर प्रतियोगिता आयोजित होती थी. जिसमें कलगी, तुर्रा, लाबनी, सिंगारी, होली गीत आदि गाए जाते थे जिसमें से जो जवाब नहीं दे सका उसे प्रतियोगिता से बाहर कर धेरा झंडी छीन ली जाती थी. तभी से यह परंम्परा आज भी जारी है.गांव में वषों पूर्व जुगलकिशोर एवं मिश्रीलाल वीर धुमाते थे इनके पश्चात अमरसिंह एवं मिश्रीलाल ने वीर धुमाया पडि़हार भुम्मा का पोता रमेश आदीवासी खंाण्डेराव पर चढ़कर वहॉं भूरा काटकर नीचे डालता है जिसे गाव वाले हाथों में झेलते है बह प्रसाद दबा के रूप में उपयोग करते है. यह परंम्परा इस गांव में करीव ढेंड सौ वर्षों से निरन्तर चली आ रही हे.