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तमिलनाडु में शिक्षा ऋण लेने वाले छात्रों को डिफॉल्टर घोषित करने पर हंगामा

चेन्नई, 18 अप्रैल (आईएएनएस)। द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) के शिक्षा ऋण माफ करने के चुनावी वादे पर मिली जुली प्रतिक्रिया के बीच अकितर पक्ष का यह मानना है कि ऐसे अनुचित लोकलुभावन वादे के लिए बैंक ही जिम्मेदार हैं।

उल्लेखनीय है कि थेनी जिले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की बोदीनायकानूर शाखा ने ‘नेमिंग एंड शेमिंग’ कार्रवाई के तहत शिक्षा ऋण न चुका पाने वाले छात्रों व उनके अभिभावकों की तस्वीरें सार्वजनिक मंच पर लगा दी हैं।

ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉईज एसोसिएशन (एआईबीईए) के महासचिव सी.एच. वेंकटचलम ने कहा, “एसबीआई जैसे बैंक द्वारा शिक्षा ऋण नहीं चुका पाने वालों के नामों को सार्वजनिक कर उन्हें शर्मसार करने और शिक्षा ऋण योजना को सही तरह से लागू नहीं किए जाने के कारण इस मुद्दे ने राजनीतिक दलों का ध्यान खींचा है।”

एसबीआई के कदम की डीएमके, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), विदुथालाई चिरुथैगल काची (वीसीके) सहित कई अन्य राजनीतिक दलों ने निंदा की है।

डीएमके के अध्यक्ष एम. करुणानिधि ने कहा, “ऐसे में जबकि कई बड़ी मछलियां (बड़े उद्योगपति) ऋण की एक बड़ी राशि का भुगतान नहीं कर बैंकों को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं, बैंक द्वारा गरीब एवं मध्यमवर्गीय परिवार के ऋण न चुकाने वाले विद्यार्थियों के नाम सहित तस्वीरें जारी करना अपमानजनक है।”

वहीं, भाकपा ने कहा, “भारतीय उद्योगपतियों को सालाना करीब पांच हजार अरब रुपये की कर रियायतें मिलती हैं। बड़े औद्योगिक समूह ऋण नहीं चुकाते और ये बैड डेट (ऐसा ऋण जिसकी भरपाई की उम्मीद न हो) की तरह माफ कर दिए जाते हैं। वहीं, दूसरी ओर केंद्र सरकार और एसबीआई शिक्षा ऋण नहीं चुका पाने वाले विद्यार्थियों को शर्मसार कर रही हैं। यह बहुत निंदनीय है।”

वहीं, वेंकटचलम ने कहा, “यदि बैंक करोड़ों रुपये का ऋण ‘बैड डेट’ के तौर पर माफ कर सकते हैं और उद्योग जगत के दिग्गजों को खराब अर्थव्यवस्था के आधार पर ‘संदिग्ध ऋण’ (ऐसा ऋण जिसकी अदायगी को लेकर आशंकाएं हों) दिए जा सकते हैं, तो उन्हें शिक्षा ऋण लेने वालों पर भी यह नीति लागू करनी चाहिए।”

उन्होंने कहा, “जब कंपनियों का प्रदर्शन अच्छा नहीं हो, तब नए स्नातकों को नौकरी कैसे मिल सकती है? यदि आर्थिक हालात अच्छे नहीं हैं, तो रोजगार का सृजन भी प्रभावित होगा।”

उनके अनुसार, ऐसी स्थिति में बैंकों को शिक्षा ऋण भुगतान की अवधि बढ़ानी चाहिए और ऐसे ऋण पर ब्याज दर घटाई जानी चाहिए।

उनसे सहमति जताते हुए शिक्षा ऋण कार्य बल (ईएलटीएफ) के संयोजक के. श्रीनिवासन ने शिक्षा ऋण पर ब्याज दर घटाकर शून्य कर देने की वकालत की। हालांकि उन्होंने ऐसे चुनावी वादों को राजनीतिक रूप से गलत करार दिया, जिससे उनके अनुसार, युवाओं में गलत संदेश जा रहा है।

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